Kota News: राजस्थान सरकार ने विधानसभा में स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पेश किया है. जिसमें ये कहा गया है कि राजस्थान के हर नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकार कानूनी तौर पर मिलेगा. इसके बाद राजस्थान 8 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा. प्रदेश सरकार अब आम लोगों को शिक्षा के अधिकार के बाद स्वास्थ्य का अधिकार भी देने जा रही है. इसके लिए विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल को रखा गया लेकिन इसमें कुछ खामियां और विपक्ष और चिकित्सकों के विरोध के बाद सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया है.


अस्पताल का किराया है 5 स्टार होटल से महंगा
कोटा संभाग में करीब दो दर्जन ऐसे अस्पताल हैं जो सुपर स्पेशियलिटी के तौर पर काम करते हैं. कोटा संभाग सहित आसपास की करीब 25 लाख से भी अधिक जनसंख्या को ये अस्पताल कवर करते हैं. ऐसे में जब इन अस्पतालों में हड़ताल की पड़ताल की गई तो सामने आया कि यहां इसमें उपचार कराना आमजन की पहुंच में नहीं है. मजबूरी में यदि किसी मरीज को लाना भी पडे तो दो दिन निकालना भारी पड जाएंगे. आप सुनकर चौंक जाएंगे की इन अस्पतालों में एक कमरे का एक दिन का किराया एक 5 स्टार होटल के कमरे से महंगा है, लेकिन इस बिल के बाद लूट की छूट नहीं होगी.


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आईसीयू की फीस 18 हजार प्रतिदिन
कोटा सहित प्रदेश के बड़े अस्पतालों में दवा इलाज और जांच के लिए मनमाने तरीके से पैसे वसूले जाते हैं. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग सीसीआई के महानिदेशक ने 4 साल चली जांच के बाद आयोग को रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के कमरे का किराया, दवाओं और चिकित्सा उपकरणों से अधिक है और अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया है. अस्पतालों के कमरे के किराए 3 स्टार 4 स्टार और 5 स्टार होटलों के किराए से भी अधिक पाए गए हैं. यही हाल कोटा के कई बड़े अस्पतालों का भी है.


इसमें किराया एक आम आदमी की पहुंच से कहीं दूर है. आईसीयू 12 से 18 हजार रुपये प्रतिदिन, कॉटेज 5 से 6 हजार रुपये प्रतिदिन वहीं सामान्य वार्ड 2 हजार से 4 हजार रुपये प्रतिदिन है. इसमें केवल चिकित्सक की फीस शामिल है, बाकी सुविधाएं अलग हैं. इसकी शिकायत की जाए तो बड़े अस्पतालों के निदेशक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कहीं ना कहीं बच जाते हैं, आम आदमी की पहुंच से सुपर स्पेशलिटी चिकित्सा सेवाएं दूर की कोडी साबित होती है. ऐसे में कई मरीजों की जान तक चली जाती है. जिसका निजी अस्पतालों को कोई फर्क नहीं पडता.


विसंगतियां होगी दूर
सरकारी अस्पतालों का हाल किसी से छुपा नहीं है. ऐसे में राइट टू हेल्थ बिल पास होने पर आमजन को बडी राहत मिलेगी. लेकिन इसमें जो विसंगतियां हैं वह जल्द दूर होनी चाहिए. यदि ऐसा हुआ तो ये बिल राजस्थान कि चिकित्सा सेवाओं के लिए संजीवनी साबित होगा. हालाकी चिकित्सक इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं.  देश में पहली बार स्वास्थ्य का अधिकार देने वाला बिल राजस्थान विधानसभा में अटक गया है इसे सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया गया है बिल के विरोध में डॉक्टरों के उतरने से साथ ही इसमें कई विसंगतियों को लेकर भी चर्चा जोरों पर चल रही है.
 
स्वास्थ्य का अधिकार मिलने से यह होगा लाभ
स्वास्थ्य का अधिकार मिलने से समस्या का 30 दिन के भीतर निस्तारण किया जा सकेगा. इस बिल के लागू होने के बाद इलाज के दौरान मरीज की अगर अस्पताल में मौत हो जाती है और मरीज के परिजन बकाया पैसा नहीं चुकाते हैं, तो अस्पताल की ओर से शव को रोक लिया जाता था, इस बिल के अनुसार ऐसे मामलों में बकाया राशि होने के बाद भी परिजनों को मृतक का शरीर प्राप्त हो सकेगा. इसके अलावा प्रदेश के सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिल सकेगा.


 स्वास्थ्य से सम्बंधित सभी जानकारी देनी होगी
इंश्योरेंस स्कीम में चयनित अस्पतालों में निशुल्क उपचार का अधिकार होगा. इस बिल में मरीज और उनके परिजनों को लेकर भी कुछ कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं. जिसके तहत इलाज के लिए आए मरीज को अपने स्वास्थ्य संबंधित सभी जानकारी देनी होगी.  इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के साथ मरीज या उसके परिजन दुर्व्यवहार नहीं करेंगे साथ ही अप्राकृतिक मृत्यु के मामले में पोस्टमार्टम करने की अनुमति देनी होगी. इसके साथ ही चिकित्सकों द्वारा दिए जा रहे इलाज की जानकारी अब मरीज और उसके परिजन ले सकेंगे, किसी भी तरह की महामारी के दौरान होने वाले रोगों के इलाज को इसमें शामिल किया गया है.


चिरंजीवी में शामिल है यह इलाज
चिरंजीवी योजना के अंतर्गत छोटी से छोटी और गंभीर बीमारियों का इलाज शामिल है. जिसमें तकरीबन 18 नए पैकेज और जोड़े गए हैं. कुल मिलाकर अब 1633 हेल्थ पैकेज पर चिरंजीवी योजना का लाभ दिया जा रहा है. जिसमें कोविड-19 से लेकर न्यूरो सर्जरी, कैंसर, ह्दय रोग, किडनी ट्रांसप्लांट शामिल के साथ अन्य बीमारियों को शामिल किया गया है. लेकिन निजी अस्पताल इसमें इंटरेस्ट नहीं रहते क्योंकि सरकार का पैसा सही समय पर नहीं आता और पैकेज की प्रक्रिया में जटिलताएं हैं. 


किसी भी कारण से पैकेज को कम कर दिया जाता है. लेकिन फिर भी कई जगह सरकार संवेदनशीलता दिखाती है और 10 लाख तक का उपचार करवाती है. इसमें किडनी ट्रांस्प्लांट में 6 लाख 13 हजार 823 रु, मेडिकल आंकोलॉजी सीटी फॉर सीए ऑवरी 13900, यूरोलॉजी, मेडिकल आंकॉलोजी 30 हजार, स्पेशल पैकेज के रूप में भेजी गई रिक्वेस्ट पर ऑर्थोपेडिक में 30500, न्यूरो सर्जरी 55000 सहित कई बीमारियों को शामिल किया गया है, वैसे तो किसी भी एक बीमारी के ही दर्जनों पैकेज हैं, एक-एक जांच और दवाएं ऐड होती चली जाती है और पैकेज बदलता जाता है.


चिकित्सकों की समस्या
सरकार जो पैकेज दे रही है वह मात्र एक तिहाई है. आईएमए के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक शारदा ने बताया कि सरकार आईसीयू के 4 हजार देती है, जबकी प्राइवेट में 8 हजार से शुरू हैं, जनरल वार्ड का 1400 रुपये देती है, जबकी प्राइवेट में 2 हजार से शुरू हैं, अस्पतालों का ग्रेड के अनुसार चयन नहीं किया गया है, सभी के समान पैकेज हैं, इसके साथ ही पेमेंट 3 माह में होता है वह भी कोई कमी रहने पर अटक जाता है, बिल टू बिल पेमेंट होना चाहिए, अस्पतालों को ए बी और सी केटेगिरी में बांटा जाना चाहिए. ऑपरेशन चार्ज 50 से 80 प्रतिशत तक बढाई जाने चाहिए. लोकल लेवल पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं है, समस्या राज्य सरकार के स्तर पर होती है जो काफी जटिल है. विसंगतियां ज्यादा है, जिसमें सरलता होनी चाहिए.


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