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Rajasthan: सड़क पर ही बच्चे को जन्म देने को मजबूर हुई थी महिला, दोनों की गई जान, अब हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

Rajasthan HC: राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि खेड़ली में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में तैनात कर्मचारियों के लापरवाह रवैये के कारण महिला ने अपने 2 बच्चों को खो दिया.

Rajasthan News: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने 2016 के एक मामले में सड़क पर बच्चे को जन्म देने वाली महिला को मुआवजा देने का आदेश दिया है. अदालत ने मंगलवार (20 फरवरी) को केंद्र और राजस्थान सरकार को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया. साल 2016 में एक महिला ने मजबूरी में सड़क पर ही दो बच्चों को जन्म दिया था. बाद में रोड पर ही नवजात बच्चों की जान चली गई थी.

जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने कहा कि खेड़ली में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में तैनात कर्मचारियों के लापरवाह रवैये के कारण महिला ने अपने दो बच्चों को खो दिया. कोर्ट ने इसे 'मानवता की मौत' करार दिया है. अदालत ने अधिकारियों को कानून के अनुसार दोषी व्यक्तियों के खिलाफ विभागीय जांच खत्म करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने इस संबंध में निष्क्रियता की निंदा की. 

क्या था पूरा मामला?

7 अप्रैल, 2016 को फूलमती नाम की महिला (याचिकाकर्ता) को ममता कार्ड के अभाव में इलाज से इनकार कर दिया गया था. ये कार्ड गर्भवती महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए शुरू किया गया था. बाद में उस महिला ने सड़क पर ही बच्चों को जन्म दिया. उनमें से एक की अस्पताल ले जाते समय रास्ते में मौत हो गई, जबकि दूसरे की इलाज के अभाव में मौत हो गई थी. 

पीड़ित महिला ने हाईकोर्ट का किया था रुख

'बार एंड बेंच' की रिपोर्ट के मुताबिक पीड़ित महिला ने दोषी स्वास्थ्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई और गर्भवती महिलाओं के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग करते हुए 2016 में हाईकोर्ट का रुख किया था. कोर्ट ने ने शुरुआत में कहा कि महिलाओं को लाफ पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना (NMBS), राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (NFBS), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM), जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम है. इन्हें शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से बनाई गई है.

राजस्थान हाईकोर्ट ने क्या की टिप्पणी?

कोर्ट ने आगे कहा कि गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के कल्याण के लिए कई लाभकारी योजनाएं होने के बावजूद याचिकाकर्ता और उसके नवजात शिशुओं को इन योजनाओं का लाभ देने में और अपने कर्तव्यों का पालन करने में स्वास्थ्य कर्मी बुरी तरह विफल रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार केंद्र सरकार की ओर से शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत संघ के कंधों पर होनी चाहिए. हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य पर निर्भर है. ऐसे कार्यक्रमों की सफलता के लिए राज्य सरकार के साथ केंद्र का सहयोग जरुरी है.

ये भी पढ़ें: कोटा में 10 साल में 124 छात्रों ने की आत्महत्या: बच्चे आखिर क्यों ले रहें अपनी जान?

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