जाने-अनजाने हर किसी से कोई न कोई पाप हो ही जाता है. जीसस (Jesus) को जब सूली पर चढ़ाने से पहले पत्थर मारे जा रहे थे तो उन्होंने कहा था कि पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी पाप न किया हो. फिर पत्थर फेंकने वाले हजारों हाथ जहां के तहां रुक गए. यानी ऐसा व्यक्ति ढूंढना मुश्किल है जिसने कभी पाप न किया हो. जान बूझकर करें या अनजाने में पाप तो पाप है. लेकिन हमारे ऋषि-मुनियों ने इसका भी प्रबंध किया है कि अगर आप पाप से मुक्त होना चाहें तो भक्ति के मार्ग से यह असंभव भी नहीं है. इसके लिए शास्त्रों में बताया गया है कि पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर उनको प्रसन्न कर पापों और सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हुआ जा सकता है. 


इस पूजा के क्या हैं फायदे


पंडित सुरेश श्रीमाली ने कहा कि यह चैत्र माह है जिसकी शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत प्रारंभ होगा. लेकिन इससे पहले सोमवार 28 मार्च चैत्र माह के कृष्ण पक्ष को ‘पापमोचनी एकादशी’ व्रत पूजा विशेष है. इससे व्रती के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. मन, विचार, जीवन निर्मल होने के साथ-साथ सदगति प्राप्त होती है. शास्त्रों में इस एकादशी को श्रेष्ठ और कामना पूरक माना गया है. पुराणों के अनुसार पापमोचनी एकादशी का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली एकादशी. इस दिन निंदित कर्म न करें और न ही झूठ बोलें. चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है. साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है.


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क्या है इसका तरीका


भ्रूण और ब्रह्म हत्या से मुक्ति-पापों का नाश करने वाली इस एकादशी तिथि को रात्रि में भी निराहार रहकर भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करने की प्राचीन परंपरा आज भी भारत में अनवरत जारी है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है. जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है. समस्त पाप नाशक और सुख-समृद्धि प्रदायक पापमोचनी एकादशी के विषय में भविष्योत्तर पुराण के अनुसार इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है. व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाना चाहिए.


एकादशी के दिन सूर्याेदय काल में स्नान कर व्रत का संकल्प करना चाहिए और संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा कर धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए. द्वादशी के दिन प्रातः स्नान कर विष्णु भगवान की पूजा कर फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही स्वयं भोजन करने का विधान है.


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