Jodhpur News: पूरी दुनिया में बिजली के संकट से बचने के लिए सोलर पैनल से बिजली उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है. सोलर पैनल से बिजली उत्पादन के दौरान आने वाली सबसे बड़ी समस्या प्लेटो की क्लीनिंग का खर्च बना हुआ है. इस समस्या को लेकर आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने सोलर पैनल की सतहओं की सफाई के लिए एक कोटिंग टेक्नोलॉजी का विकास किया है. यह कोटिंग पारदेसी स्केलेबल टिकाऊ वस्तु पर हाइड्रोलिक है. यह सोलर पैनल पर धूल जमना कम करता हैं और बहुत कम पानी से अपने आप साफ होने की सुविधा देता है. इन्हें सोलर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है.
इस कोटिंग से सोलर पैनल की बिजली उत्पादन क्षमता बरकरार रहती हैं. पश्चिमी राजस्थान में अधिकतर सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है. इन क्षेत्रों में चलने वाली आंधी और तेज हवाओं के कारण डस्ट सोलर पैनल पर जम जाती है. इस कारण बिजली उत्पादन क्षमता कम हो जाती है. सोलर कंपनियों ने अधिकतम बिजली उत्पादन लेने के लिए इस चैनल को लगातार साफ करना पड़ता है. यह काफी महंगा पड़ रहा था, क्योंकि पैनल को साफ करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी भी उपलब्ध नहीं था, लेकिन इस टेक्नोलॉज के बाद उनका काम काफी आसान हो जाएगा. इस सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग को प्रमुख अन्वेषक, डॉ. रवि के.आर., एसोसिएट प्रोफेसर और हेड, मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर और टीम के सदस्यों मेइग्ननमूर्ति जी, प्रोजेक्ट असिस्टेंट और मोहित सिंह, रिसर्च स्कॉलर और प्राइम मिनिस्टर रिसर्च की ओर विकसित किया गया है.
खर्च कम करने के लिए तैयार किया गया सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग
सोलर पैनल उद्योगों का दावा है कि ये पैनल 20 से 25 वर्षों तक अपनी 80 से 90 प्रतिशत क्षमता से काम कर सकते हैं. हालांकि हम सभी यह जानते हैं कि सोलर पैनलों पर धूल और मिट्टी जमा होने से उनका काम प्रभावित होता है. इस वजह से चंद महीनों में धूल जमा होने के कारण सोलर पैनल अपनी क्षमता शुरुआती क्षमता से 10 से 40 प्रतिशत तक खो देते हैं. यह निर्भर करता है कि सौर ऊर्जा संयंत्र कहां है और वहां जलवायु कैसी है. सोलर पैनल साफ करने की प्रचलित विधियां महंगी और अधिक कारगर नहीं हैं. इस तरह सोलर पैनल के उपयोग में कई व्यावहारिक समस्याएं और पैनल की खराबी को ठीक करना कठिन होता है. आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने इस वास्तविक समस्या से प्रेरणा ली और सुपर हाइड्रोफोबिक सामग्री का उपयोग कर सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग का विकास किया.
क्या कहा एसोएिट प्रोफेसर डॉ रवि के ?
मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग के हैड और एसोएिट प्रोफेसर डॉ रवि के अनुसार 'इस प्रौद्योगिकी को वास्तविक उपयोग में शामिल करने के लिए शिक्षाविदों और उद्योग जगत की भूमिका महत्वपूर्ण है. शिक्षा और उद्योग जगत का संबंध केवल प्रौद्योगिकी देने-लेने का नहीं है, बल्कि परस्पर संवाद, सहयोग और भागीदारी के साथ एक-दूसरे के काम और योगदान को महत्व देना भी है. इसलिए हमारी शोध टीम चाहती है कि उद्योग के साथ मिलकर काम करते हुए पीवी मार्केट में इस आसान कोटिंग प्रौद्योगिकी को पेश करे और व्यापक लाभ के लक्ष्य से बड़े पैमाने पर उत्पादन करे.
शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि आने वाले समय में देश के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे शुष्क और अर्ध-शुष्क रेगिस्तानी, तटीय क्षेत्रों और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में यह अध्ययन हो कि, सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग कितना टिकाऊ है. शोधकर्ता कोटिंग के अन्य विकल्पों पर भी काम कर रहे हैं, ताकि उपयोग के दौरान किसी नुकसान का निदान करना भी आसान हो. आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ता सोलर पैनल पर धूल-मिट्टी जमा होने से सौर ताप के उपयोग में आई कमी कम करने पर भी काम करेंगे.
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