Rajasthan News:  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) ने बजट में कई घोषणा की थी इसमें पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) लागू करने की घोषणा को मास्टरस्ट्रोक माना गया था. जिसके बाद राजस्थान में कांग्रेस पार्टी नेता व कार्यकर्ता फुल जोश में नजर आए. लेकिन पांच राज्यों में हुए चुनाव में करारी हार के बाद राजस्थान कांग्रेस मिशन 2023 कमजोर पड़ता नजर आ रहा है.

 

इतना ही नहीं  राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी से पार्टी कि कलह भी सामने आ रही है जिसके चलते पार्टी कमजोर हो रही है. दरअसल कई नेता व मंत्री ही सरकार को घेर रहे हैं. इसी के चलते मिशन 2023 से पहले गुटबाजी व कलह को लगातार हवा मिल रही है.  वहीं कांग्रेस कुनबे में बढ़ती कलह ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है. 

 

राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी और अंदरुनी कलह खुलकर आ रही सामने

बता दें कि राजस्थान में वर्ष 2023 में चुनाव होने हैं. लेकिन संगठन और सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. कांग्रेस के विधायकों की आए दिन हो रही बयानबाजी से पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर रहा है. कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा, अमीन खान और राम नारायण मीणा खुलकर सरकार और संगठन पर निशाना साध चुके हैं.  जोधपुर के ओसियां से कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने जलदाय मंत्री महेश जोशी को रबर स्टैंप बता दिया. जबकि विधायक अमीन खान ने कांग्रेस पर मुस्लिमों की अनदेखी करने का आरोप लगा दिया. इधर वरिष्ठ विधायक राम नारायण मीणा ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी पर उनकी आवाज दबाने का आरोप लगाया है. 

 

सीएम गहलोत के मंत्री भी सरकार की किरकिरी कराने में लगे हुए है. यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास पर पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है. उन्हें कोटा का विकास पच नहीं पा रहा है.  हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में मंत्री लालचंद कटारिया और प्रताप सिंह खाचरियावा ने धारीवाल की मनमानी पर सवाल उठा दिए. इतना ही नहीं इन मंत्रियों ने बाकी शहरों के विकास का पैसा काटकर कोटा ले जाने का आरोप भी लगाया था.

 

पायलट के हाथ अभी भी हैं खाली

गौरतलब है कि राजस्थान में 2020 में गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करने पर सचिन पायलट समेत 3 मंत्रियों  रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को 14 जुलाई 2020 को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था. उसके बाद से ही पायलट के हाथ खाली हैं. हालांकि इस दौरान गहलोत और पायलट कैंप में सुलह भी हो गई.  कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने पायलट समर्थक विधायकों को मंत्री भी बना दिया. वहीं समर्थकों को बंपर राजनीतिक नियुक्तियां भी दी गई लेकिन पायलट के हाथ खाली रहे. 

 


 

2020 में सीएम के खिलाफ जाने पर सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था

उल्लेखनीय है कि सचिन पायलट राजनीति में आने के बाद किसी न किसी पद  पर रहे हैं. वर्ष 2004 में सचिन पायलट पहली बार दौसा से सांसद बने.  इसके बाद अजमेर से सांसद बनकर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने. लेकिन वर्ष 2020 में सीएम गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद उन्हें  प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था.  गहलोत एवं पायलेट कैंप में सुलह होने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को एडजस्ट करेगा.

 

वहीं हाल ही में पांच राज्यों में कांग्रेस के निराशाजनकर प्रर्दशन के बाद पायलट को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की चर्चा चली थी.  पार्टी के निलंबित प्रवक्ता संजय झा ने यह मांग की थी.  इसके बाद कांग्रेसी नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने पायलट के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी. 

 

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