Rajasthan: राजस्थान में निजी स्कूलों से प्रतिस्पर्धा के चलते शिक्षा विभाग ने प्रदेश की सरकारी स्कूलों का ट्विटर हैंडल (अकाउंट) बनाने के निर्देश जारी किए थे. निर्देश देने के 4 साल बाद भी आदेशों की पालना नहीं होने से विभाग के आदेश हवा हवाई हो रहे हैं. 4 साल के बाद विभाग की लंबी नींद खुली है. राजस्थान समग्र शिक्षा अभियान के निर्देशक ने सभी जिलों के ब्लॉक शिक्षा अधिकारी से सूचना मांगी है.
सूचना में कहा गया है कि स्कूल का नाम, कुल राजकीय विद्यालय और उसके ट्विटर अकाउंट खोलने वाली स्कूलों की संख्या मांगी गई है. बताया जा रहा है कि संभाग मुख्यालयों को छोड़कर प्रदेश के किन जिलों में इस आदेश पर कोई काम नहीं किया गया.
ये आदेश किया गया था जारी
शिक्षा विभाग ने 2018 में प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों को निर्देश जारी किए गए थे. जिसमें कहा गया था की निजी स्कूलों की तर्ज पर ट्विटर पर सरकारी स्कूलों के अकाउंट बनाये जाएं. हालांकि सरकारी स्कूल की जानकारी शाला दर्पण, शाला दर्शन, शाला सिद्धि, विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इस पर स्कूलों की जानकारी विद्यालय के शिक्षक या अधिकारी ही देख सकते हैं. विभाग का मकसद था की स्कूल का ट्विटर अकाउंट खुलने के बाद आमजन भी स्कूलों की जानकारी ले सकेंगे.
स्कूल के ट्वीटर पर आने से निजी स्कूलों की तरह व्यापक प्रचार-प्रसार होने के साथ ही स्कूल टेक्नोलॉजी से भी जुड़ेंगे. साथ ही सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों के नामांकन में वृद्धि, भौतिक व्यवस्था में बदलाव, दूरदराज के स्कूलों की जानकारी आमजन तक पहुंचाई जा सकेगी. साथ ही किसी भी जगह से कोई भी व्यक्ति सरकारी स्कूलों में होने वाली गतिविधियों और भौतिक सुविधाओं का पता लगा सकेगा.
निजी स्कूल ट्विटर पर एक्टिव
राजस्थान में जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, कोटा संभाग में सरकारी स्कूल के ट्विटर हैं जबकि प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूल के ट्विटर पर अकाउंट नहीं हैं. इसकी तुलना में राजस्थान के कई निजी स्कूल अपनी गतिविधियों को सोशल मीडिया के इस प्लेटफार्म का बखूबी उपयोग कर रहे हैं.
इन स्कूलों में शिक्षकों और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं ने इस प्लेटफार्म के माध्यम से होने वाली गतिविधियों को देश-दुनिया तक पहुंचाने का प्रयास किया है. निजी स्कूल के संचालक यह भी मानते हैं कि ट्विटर सहित अन्य सोशल साइटों पर किये गए प्रचार से लोगों का रुख हमारी तरफ बढ़ता है.
2018 का आदेश आज भी खा रहा है धूल
शिक्षा विभाग की ओर से सभी जिलों में वर्ष 2018 में इसे नवाचार के रूप में लागू करना था. इसमें मुख्य रूप से स्कूल में प्रतिवर्ष होने वाली गतिविधियां, स्कूल में उपलब्ध सुविधाएं, शैक्षणिक स्तर, शिक्षकों के नाम, विद्यार्थियों की संख्या, संपर्क नंबर, कक्षा 12वीं और 10वीं का परीक्षा परिणाम, खेल मैदान आदि की जानकारी अपलोड करनी थी, ताकि सरकारी स्कूल भी निजी स्कूल की तरह बराबरी कर सके.
उस समय उच्चाधिकारियों ने आदेश तो जारी कर दिया किंतु यह आया-गया हो गया. इसका चार साल बाद भी अमल नहीं हो पाया है. अब इस धूल खाये हुए आदेश की पालना कराने में जिले के अधिकारी जुटे हुए हैं.
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