Global Positioning System : जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) एक ग्लोबल नेवीगेशन सेटेलाइट सिस्टम है. अंडरग्राउंड सर्वे के लिए इसे सबसे बेहतर माना जाता है. जो इमारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता हैं. राजस्थान आर्कोलॉजी विभाग में जयपुर सर्किल के अधीक्षक नीरज त्रिपाठी का कहना है कि किसी भी जगह का सर्वे करना है उसमें दो तरह के सर्वे होते हैं.


बिल्डिंग या साइट का सर्वे अंडरग्राउंड करने के लिए सबसे सुरक्षित और बेहतर जीपीएस (Global Positioning System ) तरीका माना जाता है. इससे बिल्डिंग को कोई नुकसान नहीं होता है. इस तरीके में बिल्डिंग का एक तरह से एक्स-रे हो जाता है. और जब ऊपर से सर्वे करना है तो 50 प्रतिशत सुपर-स्ट्रक्चर यदि होता है तो वहां से ही चीजें क्लीयर हो जाती. उसमें रिलेटिव स्टडी होती है और सबकुछ साफ़ हो जाता है. 


इन बातों को रखा जाता है ध्यान 


त्रिपाठी का कहना है कि सर्वे से पहले साइट को देखा जाता है. सर्वे के लिए बाहरी तौर पर इमारत की बनावट को देखा जाता है. जैसे उसमें यूज किये गए इंसर्ट कम्पोनेंट, उसकी स्टाइल और डिजाइन आदि पर ध्यान दिया जाता है. उसके बाद यह देखा जाता है कि इमारत जोमेट्रिकल या कोई धार्मिक बिल्डिंग हैं. धार्मिक है तो किस टाइप की धार्मिक है. किस धर्म से वो बिल्डिंग जुड़ी है. इस टाइप के सर्वे जब होते है तो उसकी फोटोग्राफी होती है. उसे कोट किया जाता है. इसका तुलनात्मक अध्ययन किये जाते है. दूसरी बिल्डिंग से उसकी तुलना होती है. 


साइट सर्वे के लिए ये जरूरी है


किसी भी साइट के सर्वे से पहले उस स्थान को देखा जा जाता है. समय को निर्धारित किया जाता है. साइट के ऊपर जो पॉटरी होती है उससे भी एक अंदाजा लग जाता है. उस साइट की सांस्कृतिक थीम पता चल जाती है कि हड़प्पन साइट है या हिस्टोरिक या मॉर्डन है. जब आइडेंटिफाइड टफ होता है तो आकर के बुक्स या अन्य तरीके से परसेप्शन तय की जा जाती है. बाहर से सब कुछ दिख रहा होता है. बस बिल्डिंग में नीचे क्या है उसकी जानकारी के लिए जीपीएस सर्वे किया जाता है. राम मंदिर में भी जीपीएस सर्वे किया गया था. इससे साइट और बिल्डिंग दोनों को सेफ माना जाता है. 


ये भी पढ़ें: Udaipur News : अब उदयपुर में पिंजरे जैसी जीप से शेरों को देख सकेंगे करीब से, लॉयन सफारी की मिली मंजूरी