Disadvantages of Online Gaming: बच्चों और युवाओं में वर्चुअल वर्ल्ड में हीरो बनने का चस्का बढ़ रहा है. आमतौर पर वे वर्चुअल वर्ल्ड के किरदार में जिंदगी से भी दूरी बना रहे हैं. चिड़चिड़े और आक्रामक होकर मां-बाप के लिए समस्या बन रहे हैं. शराब मादक पदार्थों की नशे से भी खतरनाक है इंटरनेट गेमिंग का नशा. इसके लत के शिकार बच्चे शहर में मनोचिकित्सकों के पास रोज आ रहे हैं.
रोज पहुंच रहे दस केस
इंटरनेट पर उपलब्ध रोमांचक ऑनलाइन गेम्स बच्चों के दिलोदिमाग पर हावी हो रहे हैं. रंग-बिरंगी थीम और म्यूजिक के कॉम्बिनेशन के साथ हर पल बदलती दुनिया और पल-पल बढ़ता रोमांच मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर वर्चुअल वर्ल्ड में युवाओं और किशोरों को एडिक्शन का शिकार बना रहे हैं और अंतत: यह अवसाद में तब्दील हो रहा है. शहर के मनोचिकित्सकों के पास औसतन रोज ऐसे दस केस पहुंच रहे हैं.
Rajasthan: पुलिस अधिकारी के घर में चोरों का धावा, लाखों के जेवर और नगदी पर किया हाथ साफ
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ. संजय गहलोत के मुताबिक ऑनलाइन गेम्स ने बच्चों का बचपन छीन लिया है. पार्क में खेलकूद बंद हो चुका है और उन्हें इंटरनेट की दुनिया भाने लगी है. आभासी दुनिया में उनके हाथ तरह-तरह के गेम लग चुके हैं. घंटों ऑनलाइन गेम खेलने में व्यस्त रहने वाले बच्चों में खाना-पीना तक भूलने की प्रवृत्ति विकसित होने लगी है. ऑनलाइन गेम बच्चों को चिड़चिड़ा और आक्रामक भी बना रहे हैं. ज्यादातर अभिभावकों का इस पर ध्यान तब जाता है जब देर हो चुकी होती है. चिंता की बात यह है कि ऑनलाइन गेम का चस्का युवाओं के साथ किशोरों में भी बढ़ रहा है. 12 से 18 वर्ष की उम्र तक के बच्चों में सबसे ज्यादा यह एडिक्शन बढ़ रहा है.
लैपटॉप के लिए किडनी बेचने चला गया बच्चा-मनोचिकित्सक
डॉ. संजय गहलोत ने कहा, इंटरनेट गेमिंग का असर अब शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में तेजी से फैल रहा हैं. एक 16 साल के बच्चे का केस सामने आया था जिसे जानकर में हैरान हो गया. बच्चे के पिता ने बताया कि बच्चा अकेला ही गांव से निकलकर एक नर्सिंग होम पहुंच गया और वहां पर जाकर कहा कि मेरी किडनी निकाल लो और मुझे रुपए दो जिससे मैं लैपटॉप खरीदूंगा. नर्सिंग होम के डॉक्टर ने उसके पिता को फोन कर बताया फिर उस बच्चे को लेकर उसके पिता मेरे पास आए थे. संजय गहलोत ने बताया कि मैंने ऐसा सुना तो मैं भी चौंक गया. बच्चों का भविष्य खतरे में है.
डॉ. संजय गहलोत ने कहा, अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेम की लत लग जाए तो फिर बिना इंटरनेट रहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. बच्चे इंटरनेट की जिद करते हैं. माता-पिता के मना करने पर कई बार आक्रामक तक हो जाते हैं. यह एडिक्शन बच्चों के विकास के लिए बड़ा खतरा है.
डॉक्टर का क्या कहना है
डॉ. हेमा खन्ना कहती हैं कि एक-दूसरे को हराने की होड़ में बच्चे लगातार खेलते रहते हैं. दस मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटे में बदल जाता है, बच्चों को पता ही नहीं चलता. यहीं से गेमिंग एडिक्शन शुरू होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है. बच्चों को लगता है कि वे वर्चुअल वर्ल्ड के हीरो हैं और उनके आसपास के लोग कुछ भी नहीं हैं. वर्चुअल वर्ल्ड के हीरो बनने के चक्कर में वे वास्तविक जीवन से दूर हो जाते हैं. कई ऐसे केस भी आए हैं जब बच्चे खुद को कमरों में बंद कर लेते हैं और माता-पिता तक से बात नहीं करते.
एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन ज्यादा
एक अध्ययन के मुताबिक 12 से 20 साल के बच्चों और युवाओं में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर आम है. उत्तरी अमेरिका और यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के केस ज्यादा आम हैं. अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के बढ़ते मामलों पर स्टडी कर रहा है इसलिए अब तक इसे बीमारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है. हालांकि जिस तेजी से इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के केस दुनिया भर में बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए विशेषज्ञों को डर है कि कहीं जल्द ही इसे बीमारी का दर्जा न मिल जाए.
Rajasthan ने बेरोजगारी के तोड़े रिकॉर्ड, देश में पहला स्थान, जानें- अन्य राज्यों का हाल
यह एडिक्शन क्यों है खतरनाक-:
-ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की एकाग्रता कम हो जाती है.
-ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर हो जाता है.
-बच्चों में धैर्य कम होने लगता है और वे पावर में रहना चाहते हैं.
-सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है, कई बार हिंसक होने लगते हैं.
-सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं.
-बच्चों के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर होता है.
ऐसे किया जा सकता है बचाव-:
इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन से बचने के उपाय आसान हैं. बच्चों का मन जिस काम में लग रहा है, उसे करने दें. उन्हें रचनात्मक कार्यों में लगाएं. उनके साथ सुबह-शाम खेलें. इससे वे तनाव का शिकार नहीं होंगे. उनसे छोटे-छोटे सामाजिक मुद्दों पर भी बात करें. अपने बचपन के दिनों को उनके साथ साझा करें. यदि मूल रूप से किसी ग्रामीण परिवेश से हैं तो महीने में एक दिन उन्हें गांव ले जाएं और वहां के लोगों से मिलवाएं.