Rajasthan News: राजस्थान (Rajasthan) में गोवंश में फैले लंपी वायरस (Lumpy Virus) का कहर अभी थमा भी नहीं था कि इसी बीच एक और गंभीर बीमारी ने पशु चिकित्सा महकमे के हाथ पैर फैला दिए हैं. दरअसल ग्लैंडर्स बीमारी घोड़ों में पाई जा रही है और इसका संक्रमण फैलने का खतरा मंडराने लगा है. ये बीमारी ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि संक्रमण घोड़े के संपर्क में आने वाले इंसानों को भी अपनी चपेट में ले सकती है. हालांकि राजस्थान में इस बीमारी के चपेट में आने के दो ही मामले सामने आए हैं. दोनों की जांच में ग्लैंडर्स पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है और ये दोनों घोड़े राजस्थान के झुंझुनू (Jhunjhunu) जिले के हैं.


संक्रमित होने पर नहीं होता घोड़ा का इलाज


दरअसल घोड़ों को चपेट में लेने वाली इस बीमारी को ग्लैंडर्स कहा जाता है, जो घोड़ा इसके संक्रमण की चपेट में आ जाता है,उसका कोई उपचार नहीं होता. निदेशक यशपाल शर्मा ने बताया कि यदि घोड़ा ग्लैंडर्स पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसे मार दिया जाता है. उस इलाके के 5 किलोमीटर तक के एरिये में रहे जानवरों की भी ग्लैंडर्स जांच की जाती है. ऐसे में संक्रमित घोड़े की देखभाल करने वाले पालक की भी जांच की जाती है. गधा, खच्चर आदि में इसका संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा रहता है.


झुंझुनू जिले में हुई दो केसों की पुष्टि


राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के निदेशक यशपाल शर्मा ने बताया कि लगातार घोड़ों में घाव होने और स्किन पर डिजीज होने की बढ़ती घटना के चलते स्थानीय प्रशासन ने राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र हिसार को झुंझुनूं के दोनों घोड़ों के ब्लड के नमूने जांच के लिए भेजे गए थे. जहां जांच रिपोर्ट में दोनों घोड़ों के ग्लैंडर्स पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है. शर्मा ने कहा कि ग्लैंडर्स एक तरह की खतरनाक बीमारी है. इसका कोई इलाज भी नहीं है. संक्रमित घोड़े को मार दिया जाता है. फिर करीब दस फीट गहरे गड्ढे में घोड़े के शव को दफनाया जाता है. जिससे अन्य कोई जानवर इसकी चपेट में नहीं आए.


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क्या है ग्लैंडर्स बीमारी


ये ग्लैंडर्स वायरस जनित बीमारी है अगर किसी घोड़े को ये बीमारी होती है तो उसके नाक से तेज पानी बहने लगता है. शरीर में फफोले हो जाते हैं. सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है साथ ही बुखार आने के कारण घोड़ा चुस्त हो जाता है. यही बीमारी की पहचान है. एक जानवर से दूसरे जानवर में ये बीमारी फैल सकती है। यह बीमारी आमतौर पर घोड़ों में होती है. इस बीमारी से मुकाबला करने के लिए अभी तक दुनिया में कोई दवा इजाद नहीं हुई है.


जांच की सुविधा नहीं, 25 हजार का मुआवजा


किसी घोड़े को ग्लैंडर्स वायरस का संदिग्ध माना जाता है तो उसके ब्लड की जांच करने के लिए राजस्थान में कोई उचित व्यवस्था नहीं है. इसके सैंपल को हरियाणा के हिसार में स्थित अश्व अनुसंधान केंद्र भेजा जाता है. वहां दो चरणों में इसकी जांच की जाती है. उसके बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर जारी किया जाता है. स्थानीय प्रशासन ने बताया कि अगर कोई घोड़ा ग्लैंडर्स संक्रमित होता है, तो उसे मार दिया जाता है.इसके बाद मालिक को केन्द्र सरकार मुआवजे के तौर पर 25 हजार रुपए देती है. जबकि संक्रमित गधा और खच्चर की मौत होने पर उसके मालिक को 16 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाता है.


संक्रमण के कारण और बचने के उपाय


निर्देशक यशपाल शर्मा ने बताया कि यदि किसी घोड़े में घांव, खरोच, कट लगा होने से 1 से 5 दिन में संक्रमण हो सकता है. ऐसा होने पर पशुओं से दूर रहें. घोड़ो को निमोनिया, पल्मोनरी एबसिसेस, प्लुरल इफ्युजन होने की स्थिति में फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है. बीमार होने पर पशुओं से दूर रहें. मास्क लगाकर काम करें. उन्होंने ने कहा कि ग्लैंडर्स का समय पर इलाज नहीं किया जाए तो 7 से 10 दिन में यह मौत का कारण बन सकता है. इसलिए पशुओं में लक्षण दिखते ही डॉक्टर से जांच करवाएं.


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