Rajasthan News: ढूंढ हिंदू धर्म को मानने वालों की एक सामाजिक रस्म है. यह बच्चे के जन्म से जुडी हुई है. जब किसी हिंदू परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो बच्चे के जन्म के तुरंत बाद जो भी पहली होली आती है तब ढूंढ पूजन की रस्म की जाती है. यह होली से पूर्व आने वाली ग्यारस या होलिका दहन वाले दिन की जाती है. अब जानते हैं कि ये क्यों की जाती है, इस रस्म में क्या होता है.


क्या है रस्म 
इस रस्म में नवजात शिशु की माता चुंदरी पीला ओढ़ कर बैठती है. यह पीला या बेस बच्चे के ननिहाल पक्ष से भेजा जाता है. पूजा के लिए सामग्री चावल और जावर के फूलिए, सूखे सिंघाड़े, पतासे और बूंदी के लड्डू बच्चे के ननिहाल से आता है. ननिहाल के अलावा कई स्थानों पर यह सामग्री बच्चे की बुआ के घर से भी लायी जाती है. इसके अलावा बच्चे के लिए सफेद कपडे भेजे जाते हैं. ढूंढ पूजन के दौरान बच्चे को यही कपडे पहनाए जाते हैं.


बदली है सोच
रंगों का पर्व होली शहर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया तो वहीं परंपरागत रूप से चली आ रही ढूंढ परंपरा का भी निर्वहन किया जाता है. हालांकि ऐसी मान्यता है कि घर में किसी बच्चे का जन्म होने पर उसकी ढूंढ करवाई जाती है. लेकिन बदलते सामाजिक सोच के साथ लड़कियों के जन्म पर भी ढूंढ परंपरा निभाई जा रही है. 


लड़की का भी हुआ 
शहर के बडलों का चौक में होली के पर्व पर 6 माह की रिया शर्मा की ढूंढ करवाई गई. रिया शर्मा के पिता गिरीश शर्मा ने बताया कि पहले घर में लड़के का जन्म होने पर ढूंढ परंपरा होती थी. लेकिन अब लड़का और लड़की में कोई भी फर्क नहीं है. बेटियां आज हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही है. इसी सोच के साथ बच्ची के लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की शुभकामनाओं को लेकर ढूंढ परंपरा की गई. ढूंढ परंपरा के बाद उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद भी वितरित किया गया.


कैसे होती है रस्म 
एक बजोट पर सफेद कपडा या लाल कपडा बिछा कर उस पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है, फिर उस बजोट पर तेरह स्थानों पर थोड़े-थोड़े फूलिए, सिंघाड़े और एक एक लड्डू रखे जाते हैं. उन तेरह की स्थानों पर श्रद्धा के अनुसार रूपये रखे जाते है. एक थाली में रोली, कुमकुम, चावल, हल्दी, मौली, जल से भरा लोटा और अन्य पूजा सामग्री रखी जाती है, फिर बच्चे की माता एक अन्य चौकी या बाजोट पर अपने पीहर या ननद के घर से आया बेस या पीले की चुंदरी पहन कर बच्चे को गोद में लेकर पूजा के लिए बैठती है.


क्या है खास 
इस रस्म की सबसे खास बात यह है कि बच्चे के जन्म से लेकर घर परिवार में जब भी कोई शुभ कार्य पूजा आदि की जाती है तब बच्चे को तिलक लगाया जाता है. वो सीधा नहीं लगा कर आडा तिलक लगाया जाता है और ढूंढ पूजन की रस्म के बाद से बच्चे को सीधा तिलक लगाना शुरू करते हैं, तो बच्चे की माता एक अन्य चौकी या बाजोट पर अपने पीहर या ननद के घर से आया बेस या पीले की चुंदरी पहन कर बच्चे को गोद में लेकर पूजा के लिए बैठ जाती है. पूजा के समय ढोल बजाया जाता है. आस पड़ोस के लोगो और रिश्तेदारों की उपस्थिति में ढोल धमाके के साथ ढूढ़ पूजन शुरू किया जाता है.


कैसे पूरी होती है रस्म
बजोट पर तेरह स्थानों पर रखी गयी सामग्री पर हल्दी कुमकुम के छांटे लगाये जाते है और कुमकुम रोली से बच्चे के सीधा तिलक टिका लगाया जाता है. बच्चे के सफ़ेद कपड़ो पर हल्दी कुमकुम के छांटे लगाये जाते हैं, फिर बच्चे की माँ खुद का तिलक लगाती है. यह पूजा बच्चे की माँ के द्वारा की जाती है फिर बच्चे की माँ उस बजोट को धोक देकर पाटे पर रखी हुई सामग्री अपनी सास को देती है. उपस्थिति महिलाओ के द्वारा ढूंढ के पारम्परिक गीत गाये जाते हैं.


क्या है लोकमान्यता 
सास के द्वारा यह सामग्री को अन्य सामग्री में मिला कर उपस्थित महिलाओं में बाटा जाता है और होली की शुभकामनाओ के साथ सभी को विदा किया जाता है. लोकमान्यता है कि जब तक बच्चे का ढूंढ़ पूजन नहीं हो जाता है तब तक बच्चे को सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनाए जाते और बच्चे की सर पर सीधा तिलक भी नहीं लगाया जाता. ढूंढ पूजन पर ही सबसे पहले बच्चे को सफेद रंग के नए कपड़े पहनाए जाते हैं.


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