Jodhpur: प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण पाकर भावुक हुआ कारसेवक का परिवार, कहा- 'हमारे पिता मंदिर की एक ईंट के रूप में मौजूद हैं'
Ram Mandir: कारसेवक डॉक्टर महेंद्र नाथ अरोड़ा की बेटी ने कहा हमने सोचा कि इमरजेंसी में जब जेल गए थे, तब वापस आ गए थे, इस बार भी आ जाएंगे, लेकिन हमें नहीं पता था कि वहां पर गोलियां चल जाएंगी.
Rajasthan News: अयोध्या में 22 जनवरी को भगवान श्री राम के भव्य मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में तैयारी चल रही है. इस दौरान विशेष लोगों को निमंत्रण भी दिया जा रहा है. इस बीच प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम का विशेष निमंत्रण जोधपुर के एक कार सेवक के परिवार को भी मिला है. जोधपुर (Jodhpur) के प्रोफेसर डॉक्टर महेंद्र नाथ अरोड़ा 1990 और 1992 में पुलिस के खूब डंडे खाएं. साथ ही संघर्ष के दौरान पुलिस की गोली लगने से उनकी मौत हो गई थी. अब उनके परिवार को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण मिला है.
एबीपी न्यूज़ ने कारसेवक प्रोफेसर डॉ. महेंद्र नाथ अरोड़ा के परिजनों से खास बातचीत की. कारसेवक प्रोफेसर डॉ. महेंद्र नाथ अरोड़ा की बेटी ने भावुक होते हुए बताया कि 'हमारे पिता विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस से जुड़े हुए थे. देश मे जब इमरजेंसी लगी थी उस दौरान उन्हें 6 महीने तक जेल में बंद रखा गया था. जब राम मंदिर का आंदोलन चल रहा था तब मेरे पिता पूरे राजस्थान से राम मंदिर का आंदोलन कर रहे कारसेवकों का नेतृत्व कर रहे थे.'
'हमारे पिता भी मंदिर की एक ईंट के रूप में मौजूद हैं'
'हमने और परिवार के लोगों ने सोचा कि इमरजेंसी में जब जेल गए थे, तब जेल से वापस आ गए थे, इस बार भी आ जाएंगे, लेकिन हमें नहीं पता था कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान वहां पर गोलियां चल जाएंगी. वहां गोलियां चली और मेरे पिता को गोली लगी और वह शहीद हो गए. अब हमें निमंत्रण मिला है, तो हम लोग जरूर जाएंगे. हमें खुशी है कि हमारे पिता भी मंदिर की एक ईंट के रूप में मौजूद हैं.'
'हर कहीं लिया जा रहा है हमारे पिता का नाम'
वहीं डॉक्टर महेंद्र नाथ अरोड़ा के बेटे नरेंद्र नाथ अरोड़ा ने बताया कि आज पूरे देश में राम मंदिर को लेकर उत्साह है. हर कहीं हमारे पिता का नाम लिया जा रहा है. हमें बहुत खुशी होती है, लेकिन एक बात हमें परेशान कर रही है. हमारे पिता के नाम पर एक सर्कल और एक सड़क मार्ग का शिलान्यास किया गया था. सर्कल तो है, लेकिन मार्ग का शिलान्यास करने के दौरान वहां लगी शिलालेख की पट्टी हटा दी गई है. जब भी हम उसे रास्ते से गुजरते हैं, तो हमें दुख होता है कि जिन्होंने अपनी जिंदगी धर्म के नाम पर लगा दी. ऐसे शाहिदो के नाम के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जा रहा है. इसके लिए मैंने स्थानीय पार्षद और नगर निगम में कई बार शिकायत की, लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है.
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