Rajasthan News: राजस्थान का कत-बाफला पूरे देश में प्रसिद्ध, जानिए- क्यों है पर्यटकों की पहली पसंद?
Rajasthan का कत-बाफला पूरे देश में प्रसिद्ध है. जिसको दाल बाटी चूरमा कहा जाता है. राजस्थान घूमने आने वाले लोगों की यह पहली पसंद बना हुआ है. इसे बनाने के लिए 5 घंटे से अधिक का समय लगता है.
Jaipur News: राजस्थान अपने शानदार इतिहास महलों के लिए भी पूरे देश भर में जाना जाता है. इसके साथ ही यहां के व्यंजनों (Recipes) का स्वाद भी लोगों को भाता है. ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई पर्यटक राजस्थान (Rajasthan) घूमने आए और इस व्यंजन को ना चखे तो उसको राजस्थान जाना ही फीका रहता है. उस व्यंजन का नाम है दाल- बाटी, चूरमा (Dal Bati Churma). इसका नाम सुनते ही अच्छे अच्छे लोगों के मुंह में पानी आने लगता है. बड़ी मात्रा में इसके बनाने वाले हलवाई जिन्हें राजस्थान की भाषा में पंडित कहा जाता है वह इस दाल बाटी चूरमा को बनाते हैं.
ऐसा माना जाता है कि यह खाना शुद्ध रूप से घी और शुद्ध सामानों से बना हुआ होता है जो शरीर में काफी एनर्जी देता है. साथ ही पाचन क्रिया में भी काफी मजबूत यह दाल बाटी चूरमा माना गया है. राजस्थान के बूंदी में दाल बाटी चूरमा को कत बाफला कहा जाता है और राजस्थानी भाषा में इसे कच्चा खाना कहा जाता है. क्योंकि इस खाने को गैस पर ना बनाकर गोबर से बनने वाले छाने में मनाया जाता है ताकि इसका स्वाद बरकरार रहे. हमारी पड़ताल में सामने आया कि राजस्थान का यह कत बाफला पूरे देश भर में अपना स्वाद बटोर रहा है. अकेले बूंदी में मौजूद 500 से अधिक पंडित पूरे देश भर में इस खाने को बनाने के लिए जाते हैं.
आखिर क्यों है खास राजस्थान की दाल बाटी
देश के अलग अलग राज्य अपनी विशेष व्यंजनों के लिए जाने जाते हैं लेकिन राजस्थान अपने इतिहास के साथ-साथ दाल बाटी के लिए भी मशहूर है. इस दाल बाटी को बनाने के लिए विशेष रुप से हलवाई होते हैं जो इस खाने को बनाते हैं. जिन्हे राजस्थान में पंडित भी कहा जाता है. बताया जाता है की इस खाने को पहले ब्राह्मण खाते थे और वही बनाते थे. लेकिन वक्त के साथ अब यह डिश सभी खा रहे हैं. इसी वजह से इस खाने के हलवाई को पंडित कहा जाता है या पंडितो का खाना कहा जाता है. इसके पीछे माना जाता है कि यह शुद्ध रूप से पवित्र होता है और खाने के दौरान तमाम प्रक्रिया अपनाई जाती है जो उस खाने को शुद्ध करती है. इसलिए इस खाने को बनाने वाले कारीगर को पंडित कहा जाता है.
आमतौर पर दाल बाटी घरों में भी बनती है साथ में होटलों में भी इन्हें बनाया जाता है लेकिन राजस्थान की दाल बाटी चूरमा की बात अलग ही है. क्योंकि इस कत-बाफले को गाय के गोबर से बनने वाले चरणो में मनाया जाता है ताकि यह व्यंजन पूरी तरह से पक कर तैयार हो सके. इस खाने को बनाने के लिए शुद्ध देसी घी का प्रयोग किया जाता है ताकि स्वाद बरकरार रहे. दाल बाटी बनाने के लिए अलग-अलग हलवाई बनाते हैं और वक्त बापला स्वादिष्ट बनता है.
राजस्थान में हर कार्यक्रमों में बनता है दाल बाटी चूरमा
एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए हलवाई पंडित कल्याण ने बताया कि राजस्थान में हर दिन दाल बाटी चूरमा किसी न किसी कार्यक्रमों में बनाए जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक माह में दिन 30 होते है लेकिन दाल बाटी चूरमा बनाने का कार्यक्रम 40 दिनों तक होता है. इससे साफ पता लगता है कि इतने शौकीन लोग है जो कत बाफला खा रहे हैं और बना रहे हैं. पंडित कल्याण ने बताया कि हलवाई के साथ-साथ उनके समूह में लोग होते हैं जो बनाने के लिए उनका साथ देते हैं. अकेला व्यक्ति कत बाफले को बना नहीं सकता क्योंकि यह काफी लंबी विधि और काफी टेढ़ी खीर है. वह बताते हैं कि अकेले बूंदी में 500 से अधिक हलवाई पंडित मौजूद हैं जो केवल दाल बाटी चूरमा बनाने का ही काम करते हैं.
हालांकि यह पंडित किसी होटल में काम नहीं करते. इन्हें स्पेशल तौर पर किसी भी व्यक्ति को खाना बनवाना होता है वह उन्हें बुला लेते हैं और संख्या के अनुसार दाल बाटी बना देते हैं. दाल बाटी के शौकीन निर्मल मालव ने बताया कि दाल बाटी चूरमा को बनाने का मकसद यह है कि क्योंकि यह मूल रूप से शुद्ध के साथ बनाया जाता है और सबसे ज्यादा धार्मिक कार्यक्रमों में यह भोग के रूप में भगवान को अर्पित किया जाता है. राजस्थान सहित देश भर के सभी राज्यों में इसका प्रचलन है. खास तौर पेड़ के पत्तो पर इसकी थाली में खाने का कुछ अलग ही आनंद है. राजस्थान में इसे चुरेरे के पत्तल कहा जाता है.
बूंदी के पंडित सभी राज्यों में बनाने जाते हैं दाल बाटी चूरमा
हलवाई पंडित कल्याण ने बताया कि राजस्थान ही नहीं देश के कई राज्यों में राजस्थान के मशहूर व्यंजन को बनाने के लिए हम लोग जाते हैं. कल्याण बताते हैं कि वह अब तक 20 हजार से अधिक लोगों के लिए भी कत बाफला बनाकर तैयार कर चुके हैं. राजस्थान के सभी जिलों में उन्हें बुलाया जाता है. यही नहीं मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात सहित कई राज्यों में वह खाना बना कर आ चुके हैं. हलवाई पंडित श्री कल्याण ने बताया कि यह तो उनका निजी अनुभव है जबकि जिले में और भी हलवाई पंडित है जो कई राज्यों में जाकर खाने को बना रहे हैं. हलवाई पंडित कल्याण ने बताया कि बड़े-बड़े धार्मिक आयोजनों से लेकर शादी पार्टियों में स्थित खाने की डिमांड रहती है. खुद ब खुद लोग इस खाने के बनाने के लिए उनके पास चले आते हैं एक दिन भी ऐसा नहीं जाता जब वह राजस्थान की इस दाल बाटी को नहीं बनाते हो.
दाल बाटी के साथ यह व्यंजन भी बटोरते हैं स्वाद
राजस्थान अपने मसालेदार खाने के लिए दुनिया भर में मशहूर है. यहां कई प्रकार के खाने को चखने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं लेकिन दाल बाटी चूरमा राजस्थान की सबसे मशहूर डिश मानी जाती है यह डिस अलग-अलग तरह के आइटम के साथ परोसी जाती है. इसमें मसालेदार दाल, कड़ी, बाफला जिसे बाटी कहा जाता है, कट जिसे चूरमा कहा जाता है, साथी मीठे के रूप में पचधारी कत बनाई जाती है जो कई प्रकार के ड्राई फूड से बनी हुई होती है. बाफला बनाने के लिए बड़े थाल में आटे का घोल तैयार किया जाता है फिर उसे गोल गोल कर बाफला बनाया जाता है और गाय के गोबर से बनने वाले छाने में उसे हल्की आंच में सीखा जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को करने में 5 से 6 घंटे का वक्त लग जाता है.
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