Chaitra Navratri 2022: जानिए इस चैत्र नवरात्र पर कैसे करें मां दुर्गा की आराधना, क्या हैं इसके लाभ?
Chaitra Navratri 2022: इस बार चैत्र नवरात्र शनिवार 2 अप्रैल से शुरू होकर 10 अप्रैल तक तक चलेगी. नवरात्र में मां दुर्गा की साधना के लिए शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का सैलाब उमड़ता है.
Chaitra Navratri 2022: आप सभी को दुर्गुणों का नाश करने वाली मां दुर्गा (Maa Durga) के पावन पर्व चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri ) की मंगल-कामनाएं. इस शुभ अवसर पर पंडित सुरेश श्रीमाली (Pandit Suresh Shrimali) ने बताया कि, "नवरात्र (Navratri) नौ दिन मनाए जाते हैं और नौ ही ग्रह हैं, नौ ही हमारी इन्द्रियां है, नौ ही उपनिषद है और नौ ही दुर्गा के रूप हैं. नवरात्र में मां दुर्गा की साधना-आराधना से हम तन को तंदुरूस्त बनाए रखने, मन को प्रसन्न रखने के साथ सभी ग्रहों को अपने अनुकूल बना सकते हैं." शनिवार 2 अप्रैल, चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से वासन्तिक-चैत्री नवरात्र प्रारंभ होंगे, जिसका मुख्य आधार आद्याशक्ति देवी दुर्गा के नौ शक्ति रूप हैं.
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का सैलाब उमड़ता है. जो उपासक शक्ति पीठों पर नहीं पहुंच पाते, वह अपने निवास स्थल पर ही शक्ति का आव्हान करते हैं. देवी भक्त आराधक-साधक अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए कई प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं. माना जाता है कि, नवरात्र की नौ देवियों में से किसी एक भी देवी की कृपा के रक्षा कवच को विश्व का कोई भी शक्तिशाली परमाणु अस्त्र नहीं भेद सकता. इसकी आध्यात्मिकता, वैज्ञानिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती है.
हर साल चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं. इनमें चैत्र का वासन्तिक नवरात्रा और आश्विन माह का शारदीय नवरात्रा अधिक महत्वपूर्ण है, इसमें आद्याशक्ति देवी दुर्गा उसके नौ रूपों की विशेष आराधना की जाती है. अन्य दो गुप्त नवरात्र हैं. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक वर्ष की चार संधियां हैं. उनमें मार्च और सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में वर्ष के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं. इस समय रोगों से ग्रस्त होने की सबसे अधिक संभावना होती है. ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं.
ऐसे में उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए, तनमन को निर्मल और पूर्णतः स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम "नवरात्र" है. तन रहता है तंदुरूस्त- हमारे शरीर में 9 इंदियां हैं- आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, वाक, मन, बुद्धि, आत्मा. जब हम नौ दिन निरंतर देवी की पूजा-आराधना जप-तप करते हैं तब हमारी सारी इन्द्रियां जागृत होकर कार्य करने लगती हैं. इससे हमारे भीतर स्फूर्ति का संचार होता है और तन तंदुरूस्त बना रहता है. तन तंदुरूस्त तो मन प्रसन्न होगा ही होगा।
ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने की यह है विधि
नौ ग्रह होते हैं अनुकूल- नौ ग्रह हैं जो हमारे सभी शुभ अशुभ के कारक होते हैं- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि यह सात प्रत्यक्ष और दो राहु और केतु अप्रत्यक्ष ग्रह हैं. इन नौ में से कोई ग्रह आपके प्रतिकूल है अशुभ फल दे रहा है. तो उसे आप अपने अनुकूल कर शुभ फल पा सकते हैं. जैसे सूर्य ग्रह के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए शैलपुत्री की उपासना से लाभ मिलता है. चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कुष्मांडा देवी की विधि विधान से नवरात्रि में साधना करें.
मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्कंदमाता, बुध ग्रह की शांति और अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी, गुरू ग्रह के अनुकूलता के लिए महागौरी, शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्रि और शनि के दुष्प्रभाव को दूर कर शुभता पाने के लिए कालरात्रि की उपासना सार्थक रहती है. राहु की शुभता प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए और केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चंद्रघंटा की साधना अनुकूलता देती है.
चैत्र नवरात्र से ही विक्रम संवत का आरंभ
धर्म में नौ ही दुर्गा और नौ उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्र, मूंडक, मांडूक्य, एतरेय, तैतिरीय और श्वेताश्वतर. नौ ही दुर्गा यानी 9 देवियां हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुश्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री. चैत्र नवरात्र से ही विक्रम सम्वत् का आरंभ होता है. ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था, इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी.
नौ दिन की यह आराधना आपका तन-मन स्वस्थ रखने के साथ ग्रहों की शुभता भी प्रदान करती है. आपदा, आघात, जटिल रोग, शत्रु आदि के भय-दुष्प्रभाव से सुरक्षा चाहिए तो पूर्ण विश्वास, निष्ठा, समर्पण भाव से नवरात्रा में नौ देवियों की पूजा, साधना, व्रत, सच्चे मन से आराधना करके देखिए, खुद को इन्हें सौंप दीजिए, विश्वास रखिए, शुभ फल अवश्य मिलेगा.
नई फसल के आगमन पर मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष की शुरुआत के साथ उनका सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार आता है- गुड़ी पड़वा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को महाराष्ट्र में उगादि कहा जाता है. इसी दिन यहां गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है, इस त्यौहार को मनाने के पीछे मुख्य वजह नई फसल का आगमन होता है. महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी इस दिन का विशेष महत्व है और वो इसे त्यौहार के रूप में मनाते है. जहां महाराष्ट्र और दक्षिण भारत इस दिन गुड़ी पड़वा का त्यौहार मना रहा होता है, वहीं उत्तर भारत में इस दिन से चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ होता है.
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