Rajasthan Holi Process of Making Gulal: होली (Holi) का त्योहार आ रहा है. रंग-बिरंगे रंगों के बिना होली के त्योहार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. होली आते ही रंग का कारोबार भी तेजी के साथ बढ़ने लगता है. बाजारों में रंगों की मांग भी बढ़ जाती है. होली खेलने के लिए अब हर कोई गुलाल (Gulal) को ही पसंद करता है. रंग-बिरंगे गुलाल को जब आप बाजार में देखते होंगे तो आपके भी मन में भी ख्याल ये जरूर आता होगा कि आखिर ये गुलाल बनता कैसे है. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि ये गुलाल जिससे आप होली खेलते हैं वो बनता कैसे है.
ऐसे बनता है गुलाल
गुलाल अरारोट के पाउडर से बनता है, इसके अंदर रंग मिलाकर एक प्रोसेस के जरिए निकाला जाता है और इसमें सेंट का भी प्रयोग किया जाता है. हर वर्ष होली के दौरान करोड़ों में रंगों का कारोबार होता है. बाजार में अभी लाल, हरा, गुलाबी, पीला, बैंगनी गुलाल उपलब्ध हैं जिनकी कीमत100 रुपए प्रति किलो तक है. स्ट्रॉस का गुलाल यानी अरारोट के पाउडर से बना गुलाल बेहद सॉफ्ट होता है. सफेद कलर के आरारोट के पाउडर में (नॉर्मल ड्राइंग के रंग) रंग मिलाया जाता है और मशीनों से इसकी पिसाई की जाती है. पिसाई की वजह से रंग पाउडर में मिक्स हो जाता है और इसकी सॉफ्टनेस भी बढ़ जाती है.
इस बार बढ़ी है मांग
जोधपुर के व्यापारी महेश राजोरिया ने बताया कि वो 1984 से गुलाल बनाने का काम कर रहे हैं. उनके यहां पर खासतौर पर अरारोट के पाउडर से गुलाल बनाया जाता है जिसकी बाजार में बहुत ज्यादा मांग है. 2 साल से कोरोना के चलते कारोबार नहीं हुआ लेकिन इस बार बाजार से भारी मांग आ रही है जिसके चलते दिनरात काम चल रहा है. उन्होंने बताया कि, हमारे यहां गुलाल के 12 रंग बनाए जाते हैं इस गुलाल से होली खेलने पर त्वचा को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है और ना ही एलर्जी होती है. इसे आसानी से साफ किया जा सकता है.
इस काम से जुड़े हैं कई लोग
अरारोड के पाउडर में रंग मिलाकर उसे मशीन में डाला जाता है जिससे कि पाउडर में रंग मिल जाए. इस दौरान ये पाउडर गीला हो जाता है जिसको सुखाया जाता है. इसके बाद इसको फिर मशीन में डालकर पिसाई की जाती है और जिससे गुलाल मुलायम रहता है. इसके बाद अलग-अलग पैकिंग में पैक किया जाता है. ये एक लघु उद्योग की तरह है और इस काम से कई लोग जुड़े हुए हैं.
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