Shravani Teej fair 2023: राजस्थान की कला और संस्कृति अपने आप में अनूठी है. इस संस्कृति को बचाए रखने का काम विभिन्न संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है. राजस्थान की पर्व व उत्सवों में तीज का अपना ही महत्व है. सज-धज कर महिलाएं तीज सवारी में जाती हैं. तीज माता का पूजन करती हैं और अपने सुहाग की लंबे उम्र की कामना करती हैं. कोटा में स्टेशन क्षेत्र स्थित राष्ट्रीय श्रावणी तीज मेले का आयोजन पिछले 55 साल से लगातार किया जा रहा है. सन 1968 में शुरू किया गया तीज मेला आज अपना विशाल रूप ले चुका है. 


मेला आयोजक वसंत भरावा ने बताया कि 1968 में महज तीन-चार दुकान आई थी और मेला एक व्यक्ति द्वारा शुरू किया गया. उसके बाद लगातार धीरे-धीरे प्रयास किए गए और आज 125 दुकानों का विशाल मेला भरने लगा है. यह मेला ग्रामीण क्षेत्र की याद तो दिलाता ही है. साथ ही युवाओं के लिए भी आकर्षण का केन्द्र रहता है. अपनी भारतीय और राजस्थानी कला संस्कृति को जीवंत रखने का एक माध्यम है.


चौथी पीढ़ी संभाल रही मेले को 
वसंत भरावा ने बताया कि उनके परिवार द्वारा यह तीज मेला 1968 से आयोजित किया जा रहा है. इस मेले के आयोजन में चौथी पीढ़ी काम कर रही है और अपनी संस्कृति को बचाने का पुरजोर प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि उनके दादाजी स्व. नंदकिशोर भरावा ने यह मेला शुरू किया जिसमें पुराने जमाने की मशीनों से फिल्म दिखाई जाती थी.उसके बाद कागज की तीज माता की सवारी लकड़ी के माध्यम से बनाई और हाथों में निकली. 


उसके बाद ठेले पर सालों तक निकाली और आज घोड़े और बग्गियों के साथ यह सवारी निकाली जाती है. 1989 में उनकी मृत्यु के बाद यह जिम्मा उनके पुत्र भंवरलाल भरावा ने संभाला और 1999 तक यह मेल भव्य रूप ले चुका. उनकी भी मृत्यु हो गई तो उनके पुत्र बसंत भराव व उनके भी पुत्र अब यह व्यवस्था संभाल रहे हैं.


व्यापारियों को निशुल्क मिलती है दुकान
उन्होंने कहा कि यहां पर मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से व्यापारी आते हैं, यहां मूल रूप से छोटे व्यापारी ही आते हैं. 13 दिन लगने वाले इस मेले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, कई विधायक सांसद, मंत्री यहां आते रहे हैं. इसके साथ ही यहां 13 दिन तक अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम खेल प्रतियोगिताएं, भजन, कीर्तन, जागरण का आयोजन किया जाता है.


वसंत भरावा ने बताया कि यहां लगने वाले मेले में व्यापारियों को दुकाने लगाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता. व्यापारियों की भी कई पीढ़ी यहां लगातार आ रही है. बाद में व्यापारी सीधा बूंदी तीज मेले में जाता है और वहां से यह बारां डोल मेले में जाते हैं और उसके बाद कोटा का राष्ट्रीय दशहरा मेला इन व्यापारियों के लिए जीविका का एक माध्यम है. करीब 3 से 4 महीने यह व्यापारी हाड़ौती संभाग में ही रहते हैं.


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