Rajasthan Additional Advocate General: राजस्थान के विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल ने भाई-भतीजावाद के अरोपों के बाद आखिरकार राजस्थान हाई कोर्ट के अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) पद से इस्तीफा दे दिया है. मनीष पटेल की अतिरिक्त महाधिवक्ता पद पर नियुक्ति को लेकर बीते दिनों राजस्थान की सियासत कई दिनों तक गरमाई हुई थी. इस मसले पर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ था. हंगामे के बाद लाडनूं के कांग्रेस विधायक मुकेश भाकर को विधानसभा से छह माह के लिए निलंबित कर दिया गया था. 


इसके विरोध में कांग्रेस विधायकों ने सदन में धरना दिया. उन्होंने पूरी रात वहीं बिताई थी. यह मसला अभी भी चर्चा में बना हुआ है. उम्मीद जताई जा रही थी कि अब मुद्दा शांत हो जाएगा, लेकिन ऐसा लग नहीं रहा है. अब राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) की नियुक्ति की है. इस पद पर सरकार ने पांच साल के अनुभव वाले अधिवक्ता (वकील) पदमेश मिश्रा को नियुक्त किया है.


पदमेश मिश्रा की नियुक्ति पर उठे सवाल
पदमेश मिश्रा सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश के बेटे हैं. पदमेश मिश्रा की नियुक्ति के लिए सरकार ने राजस्थान की लिटिगेश पॉलिसी में भी संशोधन किया है. पहले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में एएजी की नियुक्ति के लिए 10 साल की वकालत का अनुभव होना जरूरी था, लेकिन सरकार ने पदमेश मिश्रा को नियुक्ति देने के लिए इन नियमों को बदलकर अनुभव की बाध्यता को हटा दिया है.


राज्य सरकार ने अधिवक्ता पदमेश मिश्रा को 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार का पैनल लॉयर नियुक्त किया था, लेकिन उसके तीन दिन बाद ही 23 अगस्त को सरकार ने नया आदेश निकालकर पदमेश मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति दे दी. राजस्थान लिटिगेशन पॉलिसी-2018 के अनुसार पैनल लॉयर के लिए पांच साल का अनुभव जरूरी है. इसमें पदमेश मिश्रा पात्रता रखते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति के लिए 10 साल के अनुभव की बाध्यता थी. ऐसे में उन्हें नियुक्ति देने के लिए सरकार ने पहले नियमों में संशोधन किया, उसके बाद उन्हें एएजी के पद पर नियुक्ति दे दी.


सरकार ने स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी-2018 में किया संशोधन
सरकार ने स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी-2018 की धारा 14 में संशोधन करते हुए एक नया पॉइंट 14.8 जोड़ा है. इसके अनुसार अब राज्य सरकार किसी भी अधिवक्ता को किसी भी पद पर किसी भी समय नियुक्ति दे सकती है. यह नियुक्ति अधिवक्ता की विशेषज्ञता के आधार पर होगी. इस संशोधन के लिए सर्कुलेशन के माध्मय से मंत्रिमंडल की मंजूरी ली गई है. वहीं मंत्रिमंडल की मंजूरी के अगले दिन 23 अगस्त को ही विधि विभाग ने इसे लेकर अधिसूचना भी जारी कर दी.


हालांकि, बीजेपी प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा कि दोनों नियुक्तियां नियमों के अनुसार की गई हैं. किसी भी नियुक्ति में किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है और नियुक्तियां व्यक्तियों की योग्यता को ध्यान में रखते हुए और मानदंडों के अनुसार की गई हैं. अगर कोई किसी का रिश्तेदार है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति अयोग्य है. अगर कोई मंत्री का बेटा है या किसी और का रिश्तेदार है, तो यह कोई दोष नहीं है.


राज्य सरकार में विधि मंत्री जोगाराम पटेल के बेटे मनीष पटेल को भी सरकार ने 12 मार्च को हाई कोर्ट जोधपुर पीठ में अतिरिक्त महाधिवक्ता के पद पर नियुक्ति दी थी. इसका भी जमकर विरोध हुआ था. कांग्रेस ने इस मामले को विधानसभा में भी उठाया था, लेकिन विधि मंत्री और सरकार ने इस नियुक्ति को सही ठहराया था. तीन दिन पहले 24 अगस्त को अधिवक्ता मनीष ने इस पद से इस्तीफा दे दिया था.


कौन हैं जोगाराम पटेल?
बता दें अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता जोगाराम पटेल अब तक विवादों से दूर रहे हैं. उन्होंने पहली बार 2003 में जोधपुर जिले की लूणी विधानसभा सीट से राजस्थान सामाजिक न्याय मंच के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, जिसे करणी सेना के संस्थापक और राजपूत नेता लोकेंद्र सिंह कालवी और पूर्व राज्य मंत्री देवी सिंह भाटी ने बनाया था. हालांकि जोगाराम सिर्फ 1,356 वोटों से चुनाव हार गए थे, लेकिन कुछ महीने बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी.


जोगाराम ने 2013 और 2023 के विधानसभा चुनावों में फिर से सीट जीती. जबकि 2008 और 2018 के चुनावों में वह कांग्रेस से हार गए थे. 2023 के चुनावों के बाद उन्हें बीजेपी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और एक वकील के रूप में उनकी पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कानून और न्याय और संसदीय मामलों का विभाग दिया गया. जोगाराम बीजेपी किसान मोर्चा से भी जुड़े रहे हैं और पार्टी से बाहर भी विभिन्न पदों पर रह चुके हैं, जिनमें पश्चिमी राजस्थान किसान विकास समिति के अध्यक्ष का पद भी शामिल है.




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