जोधपुर: राजस्थान में पर्यटन की दृष्टि से जोधपुर पर्यटकों के लिए खास केंद्र बन चुका है. जोधपुर में कई प्राचीन मंदिर किले और महल बने हुए हैं. उनमें खासतौर से मेहरानगढ़ किले में स्थित मां चामुंडा का मंदिर है जो 560 साल पहले विक्रम संवत 1517 में बनाया गया था. मां चामुंडा के मंदिर में मां लक्ष्मी मां सरस्वती और बछराज जी की मूर्तियां स्थापित है. इस मंदिर की स्थापना के साथ ही मंदिर के प्रति जोधपुरवासी और देशभर के लोगों की आस्था भी जुड़ गई. इस आस्था के चलते देशभर से श्रद्धालु मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं. श्रद्धालु की ये मान्यता है कि मां के दर पर पहुंचकर जो भी मांगते हैं वो उन्हें मिलता है. मां चामुंडा को जोधपुरवासियों का रक्षक माना जाता है. जोधपुर रियासत के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से मां चामुंडा की मूर्ति को लाकर मेहरानगढ़ किले की प्राचीर पर स्थापित किया. मां चामुंडा पड़िहारो की कुलदेवी थी. मां चामुंडा को राव जोधा ने अपनी भी कुलदेवी स्वीकार किया था. बता दें ति मां चामुंडा के प्रति लोगों की अटूट आस्था है


लोगों की मां चामुंडा में है गहरी आस्था


आदिशक्ति मां चामुंडा की स्तुति में कहा गया है कि जोधपुर किले पर पंख फैलाने वाली माता हमारी रक्षक है. रियासत काल से भारत गणराज्य में विलय से पहले मंदिर में नवरात्रा की प्रतिपदा को महिषासुर के प्रतीक माने जाने वाले भैंसे की बलि देने की परंपरा थी. जो अब बंद की जा चुकी है. मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का विधिवत निर्माण महाराजा अजीत सिंह ने करवाया था. मारवाड़ के राठौड़ वंश के चिन्ह चील पक्षी को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं. राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीले मंडराती रहेगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी.


मां ने लोगों का बचाया था बमबारी से


भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 1971 की लड़ाई के दौरान जोधपुर शहर पर भी पाकिस्तान की सेना ने बमबारी की थी. जोधपुर में जितने भी बम गिरे कोई भी नहीं फटा क्योकि मां चामुंडा ने जोधपुर को अपने आंचल का कवच बना हुआ था. उस दौरान मां चामुंडा में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं में अपने घर के बाहर मेहंदी के हाथ के छापे लगाएं क्योंकि लोगों का मानना था कि मां चामुंडा ने जितने भी बम अपने हाथों व आंचल में लिए मां के हाथ भी जले होंगे तो उस को ठंडक पहुंचे. इसलिए मेहंदी लगाई गई.


300 लोगों ने गंवाई थी जान


किले में 9 अगस्त 1867 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरने के कारण चामुंडा मंदिर का आसपास का क्षेत्र छोटे-छोटे कणों में होकर उड़ गया था, लेकिन मां की मूर्ति अडिग रही इसलिए एक बार पुणे मंदिर को बनाया गया. साल 2008 में नवरात्रे के वक्त एक दुर्घटना हुई जिसमें कई 300 लोगों की जान गई.ये सभी युवा जो नवरात्रा के दिन मां चामुंडा के दर्शन के लिए पहुंचे थे. बताया जाता है कि भीड़-भाड़ के चलते दम घुटने से उन लोगों की जान चली गई थी.


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