Rajasthan News: इस खुफिया गुफा में था महाराणा प्रताप का शस्त्रागार, भूल भुलैया से कम नहीं हैं यहां के रास्ते
Udaipur Mayra Caves: महाराणा प्रताप (Maharana Pratap)ने मायरा की गुफा को हथियार रखने के लिए इस्तेमाल किया था. ये किसी भूल भुलैया से कम नहीं है और यहां जाना भी आसान नहीं है.
Rajasthan Udaipur Mayra Caves: मेवाड़ (Mewar) अपनी वीरता और शौर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है, यहां महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) जैसे वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है. महाराणा प्रताप की एक ऐतिहासिक जगह मायरा की गुफा (Mayra Caves) के बारे में बेहद कम लोग ही जानते हैं. वीर प्रताप ने महल छोड़कर इस गुफा में अपना शस्त्रागार बनाया था और यहीं युद्ध की रणनीति बनाई थी. ये गुफा उदयपुर (Udaipur) शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर गोगुन्दा तहसील के पास है. ये किसी भूल भुलैया से कम नहीं है और यहां जाना भी आसान नहीं है.
महाराणा प्रताप ने ली थी प्रतिज्ञा
लोग बताते हैं कि दिल्ली के तख्त पर अकबर का शासन था और उसकी रणनीति थी कि वो सभी राजा-महाराजाओं को अपने आधीन कर राजस्थान पर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था. वहीं, मेवाड़ को मुगलों के आतंक से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने ये प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, वो महलों को छोड़ जंगलों में रहेंगे. इसीलिए महाराणा प्रताप ने इस गुफा को अपना शस्त्रागार बनाने के लिए चुना था.
दिखाई नहीं देता अंदर जाने का मार्ग
कहा जाता है कि इस गुफा की कुछ ऐसी खासियतें थी, जिसे देखकर भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप ने इसे खुफिया मंत्रणाओं के लिए चुना था. इस गुफा में जाने के तीन अलग-अलग रास्ते हैं, जो किसी भूल भुलैया से कम नहीं हैं, जिसकी रचना टेढ़ी-मेढ़ी है. जिसे समझ पाना शत्रुओं के लिए असंभव बात थी. यहां तक की इस गुफा को बाहर से देखने पर इसके अंदर जाने का मार्ग दिखाई ही नहीं देता. यही वजह थी कि, महाराणा प्रताप ने इस जगह को हथियार रखने के लिए इस्तेमाल किया था.
रसोई और अश्वशाला भी है
लोग ये भी बताते हैं कि मायरा की गुफा में अश्वशाला और रसोई घर भी है. अश्वशाला में चेतक को बांधा जाता था, इसलिए इसे आज भी पूजा जाता है. पास ही मां हिंगलाज का स्थान है. हल्दी घाटी युद्ध से पहले और बाद में भी यही स्थान महाराणा प्रताप का शस्त्रागार और शरण स्थली रही. 1572 से 1597 के दौर में वीर प्रताप के साथ इस स्थल को पहचान मिली. ये गुफा चारों तरफ से पहाड़ों से घिरी हुई है. 4 किलोमीटर कच्चा रास्ता तय करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है. यहां काफी कम संख्या में पर्यटक आते हैं और साधु संत अपनी तपस्या करते हैं.
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