Rajasthan News: 1971 के युद्ध में पाकिस्तान (Pakistan) पर भारत की जीत में राष्ट्र के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए राजस्थान (Rajasthan) सरकार और भारतीय सेना (Indian Army) की ओर से रणभूमि श्रद्धांजलि यात्रा की शुरुआत की गई है. इस यात्रा में वो भारतीय सेना के वीर जवान भी शामिल है जिन्होंने 1971 का युद्ध के दौरान लड़ाई लड़ी थी. इस दौरान सेना के रियल हीरो अपनी खुद की कहानी खुद की जुबानी सुनाएंगे. रणभूमि श्रद्धांजलि यात्रा की पहल के साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. आज मेहरानगढ़ से इस यात्रा की शुरुआत की गई साथ ही इस युद्ध के दौरान अपना अप्रतिम शौर्य प्रदर्शित करने वाले जांबाज भारतीय सैनिकों की बहादुरी के किस्सों को याद किया गया.


वीरता की गवाही देता टैंक


1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान कोणार्क कोर की टुकड़ियों ने लोंगेवाला, पर्वत अली, छाछरो'और खिनसर की शानदार लड़ाई लड़ी. कोणार्क कोर के सैनिकों की वीरता के परिणामस्वरूप डेजर्ट सेक्टर में पाकिस्तानी क्षेत्र के बड़े इलाकों पर कब्जा हो गया. हमारे सैनिकों के इस वीरतापूर्ण कार्य की गवाही के तौर पर, एक पकड़ा गया पाक शर्मन टैंक जोधपुर मिलिट्री स्टेशन के मुख्य द्वार पर प्रदर्शित है.


पाकिस्तानी सेना को किया भागने पर मजबूर


रिटायर्ड सूबेदार मेजर चंनन सिंह ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि किस तरह से पर्वत अली पाकिस्तानी ट्रेनिंग सेंटर पर फतह हासिल का हमें आदेश मिला था. इसके बाद वाहेगुरु जी की फतेह वाहेगुरु जी का खालसा, भारत माता की जय के जयकारे लगाते हुए हमारा जवान पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े और उन्हें भागने को मजबूर किया. उस दौरान हजारों की संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा गया. आज भी वो मंजर याद आता है तो हमें बहुत खुशी होती है कि हमारे देश के लिए हमने वो लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की आज हम लोगों को 50 साल बाद उसी जगह पर जाने का मौका मिल रहा है.


Bharatpur News: भरतपुर में हिस्ट्रीशीटर की हत्या, 7 गोलियां मारकर फरार हुए बदमाश , परिजनों ने अस्पताल में किया हंगामा


युद्ध में कई भारतीय जवान भी हुए थे शहीद


वहीं रिटायर्ड सुखधर सिंह ने एबीपी न्यूज़ से बताया कि देश के लिए मर मिटने का जज्बा आज भी हर नौजवान में है. वैसा ही हमारे अंदर भी भरा हुआ था 1971 के युद्ध में पाकिस्तान ने पहले भारत पर अटैक किया हमारी भी तैयारी चल रही थी हमें जैसे ही आदेश मिला तो हम लोग पर्वत अली पहुंचे और रात में ऑपरेशन शुरू किया. इस ऑपरेशन में कई भारतीय जवान भी शहीद हुए. लेकिन हमारी जीत हुई थी.  आज 50 साल बाद हमें मौका मिला है उसी जगह पर जाने का जहां पर हमने लड़ाई लड़ी और जीत हासिल हुई.


उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में, लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी के नेतृत्व में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने हथियार डाल दिए और भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत अरोड़ा के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया. ये किसी भी लड़ाई में सैनिकों का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था और परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ. पूरे राष्ट्र को भारतीय सशस्त्र बलों के इस महत्वपूर्ण कार्य पर गर्व है, इस शानदार विजय को मनाने के लिए प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है.


Kota News: महंगाई के चलते रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले हाइट की गई छोटी, अब होगी इतने फीट