Jodhpur News: पश्चिमी राजस्थान में पानी की कमी के चलते किसानों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है ऐसे में हजारों वर्ष पुरानी तकनीक मटका थिम्बक पद्धति के जरिये बंजर जमीन पर भी पौधों के लिए संजीवनी का काम करती दिख रही है.
पर्यावरण दिवस पर खासतौर से इस तकनीक का पौधों को लगाने के साथ उन्हें बचाने के लिए काम ली जा रही है ग्रामीण क्षेत्र में खास तरकीब जोधपुर मरुस्थल में सूखते पौधों को अब मटकों से जीवनदान की उम्मीद बंधी है. पीपाड़ सिटी के तिलवासनी गांव में मटका थिम्बक पद्धाति से 300 पौधे लगाए गए, जिनमें से 250 पौधे भीषण गर्मी के बावजूद जीवित हैं.
कृषि विशेषज्ञों के मानना है कि अगर सही तरीके से इसका उपयोग करें तो पेड़-पौधे कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं. उल्लेखनीय है कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण भूमि भूजन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से लगाए गए परिजात के पौधे के पास भी मटका थिम्बक पद्धति का उपयोग किया गया.
ऐसे काम करता है मटका
पौधरोपण के बाद नियमित रूप से उसमें पानी देने में पुराना मटका कारगर है. अन्य पौधों की तुलना में मटके से सिंचाई की व्यवस्था वाला पौधा जल्दी बढ़ता है. इसमें पानी का भी अपव्यय नहीं होता है.
पौधा रोपते समय गड्ढा खोदने के दौरान पास ही एक गड्ढा और खोदा जाता है, जिसमें एक मटका रख देते हैं. इसमें नीचे की तरफ छेद करने होते हैं। इस मटके को भी पौधे की तरह मिट्टी से ढक दिया जाता है लेकिन मुंह खुला रखते हैं. जैसे-जैसे पौधा पानी लेता रहेगा, वैस-वैसे मटके में पानी कम होता जाएगा.
एक बार मटके को पानी से भर देंगे तो अगले पांच दिनों तक पौधे को पानी देने की जरूरत नहीं होगी. मटके के छेद से पानी धीरे-धीरे रिसते हुए पौधों की जड़ों में पहुंचता है.
हजारों साल पुरानी है मटका थिम्बक
ग्रामीण क्षेत्रो में भले ही यह पद्धति अपनाई गई है लेकिन यह हजारों साल पुरानी है. चीन में इस प्रक्रिया से पौधरोपण और खेती करने का चलन 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है तो अफ्रीका में चार साल पहले से लोग इसका उपयोग खेतों में कर रहे हैं.
जोधपुर जिला कलेक्टर निकट हिमांशु गुप्ता ने ली रुचि भविष्य में बंजर ओर रेतीली भूमि पर इससे हरियाली की चादर नजर आएगी. जिला कलक्टर इसे ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देने में जुटे हैं. विकास अधिकारी गणपतलाल सुथार के अनुसार तिलवासनी के सरपंच अनिल बिश्नोई ने चरागाह में पौधारोपण के लिए मटका पद्धति की पहल की है.
कलेक्टर ने कहा मटका थिम्बक पद्धति से फल और सब्जियां भी उगाई जा सकती है. इसमें सबसे कम मात्रा में पानी की खपत होती है. यानी पानी की बचत की जा सकती है. मरुस्थल में अब इस तकनीक के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है.
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