Muharram 2022: इस्लाम धर्म के मुताबिक नए साल की शुरुआत मोहर्रम के महीने से होती है. इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम समाज के लोग हर साल मोहर्रम का जुलूस निकालते हैं. मोहर्रम पर मुसलमान खास तौर पर शिया मुसलमान पैगंबर मोहम्मद के नवासे की शहादत का गम मनाते हैं.


दो साल बाद निकलेंगे ताजिये
मोहर्रम इंतेजामिया कमेटी अध्यक्ष पप्पू पहलवान ने बताया कि वैश्विक कोरोना महामारी के कारण बीते दो साल मोहर्रम का जुलूस नहीं निकाला जा सका. इस साल मोहर्रम पर ताजियों के जुलूस को लेकर तैयारियां हो रही है. मुस्लिम कौम के लोग अलग-अलग इलाकों में सतरंगी ताजियों का निर्माण करने में जुटे हैं. कारीगरों की मदद से दिन-रात एक करके मेहनत और लगन के साथ सुंदर ताजिये बनाए जा रहे हैं. कहीं थर्माकोल तो कहीं रंगीन पेपर पर सजावटी सामान से नक्काशीनुमा डिजाइन बनाई जा रही है. इन ताजियों की खूबसूरती देखते ही बन रही है. मोहम्मद हारून, अकरम खान, हसन खान, अफजल, रशीद, अहमद ताजियों का निर्माण कर रहे हैं.


तीन भाग में बन रहे ताजिये
ताजियों का निर्माण कर रहे मोहम्मद हारून ने बताया कि एक ताजिया तीन हिस्सों में बनाया जाता है. सबसे ऊपरी भाग गुंबद कहलाता है. इसकी आकृति दरगाह या मस्जिद के गुंबद की तरह होती है. मध्य भाग को रोजा कहते हैं. तीसरा भाग तख्त कहलाता है. ताजियों की लंबाई करीब 15 से 17 फीट है. हर कारीगर अपनी बेहतरीन कारीगरी के जरिए अपने ताजिये की खूबसूरती बढ़ाने में चार चांद लगा रहे हैं.


9 अगस्त को कर्बला में करेंगे सैराब
मोहर्रम इंतेजामिया कमेटी अध्यक्ष पप्पू पहलवान ने बताया कि मोहर्रम का सिलसिला इस्लामी तारीख के अनुसार 7 मोहर्रम से अलम के जुलूस से शुरू होता है. इसके बाद 8 मोहर्रम को मेंहदी का जुलूस, 9 मोहर्रम को शहादत की रात व 10 मोहर्रम को ताजियों का जुलूस निकाला जाएगा. सभी ताजिये अपने-अपने मुकाम से ले जाकर कर्बला में सैराब किए जाएंगे. अंग्रेजी महीने की तारीख के मुताबिक, आगामी 6 अगस्त को अलम के जुलूस से शुरूआत होगी. 7 अगस्त को मेहंदी, 8 को शहादत की रात व 9 अगस्त को जुलूस के बाद ताजिये कर्बला में सैराब किए जाएंगे.


इसलिए कहते हैं गम का महीना
सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 72 साथियों के साथ शहीद कर दिया गया था. मोहर्रम में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का गम मनाते हैं. गिरिया (रोना) करते हैं. क्योंकि इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद के नवासे की शहादत हुई थी, इसीलिए इस महीने को गम का महीना कहा जाता है.


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