Rajasthan Assembly Election 2023: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने चुनावी साल में ब्रह्मास्त्र छोड़ा है. उन्होंने राजस्थान (Rajasthan) में नए जिले और संभाग बनाने की मांग पूरी कर दी है. इसमें सबसे ज्यादा चर्चा बांसवाड़ा जिले को नया संभाग बनाने की हो रही है क्योंकि भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी, तीनों ही पार्टियां आदिवासी वोटर्स को रिझाने के लिए कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं.


भाजपा और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सहित  दोनों पार्टियों के कई मंत्री और नेता पिछले एक साल में यहां कई दौर कर चुके हैं. बड़ी चर्चा यह भी हो रही है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित नहीं किया और चार राज्यों को इसका जिम्मा दिया था. वहीं आदिवासी क्षेत्र की बांसवाड़ा को संभाग बनाने की मांग सीएम गहलोत ने अब पूरी कर दी. अब कांग्रेस सीएम गहलोत की इस घोषणा का फायदा आने वाले चुनाव में उठाने की कोशिश करेगी.


जनता को यह होगा फायदा


अभी उदयपुर संभाग में राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले आते हैं. इसमें सबसे ज्यादा दूर प्रतापगढ़ जिला है. उदयपुर से यहां की दूरी करीब 220 किलोमीटर है. उदयपुर से यहां आने के लिए करीब 4 घंटे लगते है. वहीं बांसवाड़ा करीब 156 किमी जहां जाने के लिए 3 घंटे लगते हैं. वहीं यहां से डूंगरपुर 105 किमी है. जहां जाने के लिए 2 घंटे लगते हैं.


बांसवाड़ा के संभाग बनने के बाद प्रतापगढ़ और डुंगरपुर  इसमें आ जाएंगे. उदयपुर जिले की तहसील सलूम्बर जो अब नया जिला बन चुका है. वो भी बांसवाड़ा संभाग में आ सकता है. ऐसे में सभी जिलों की संभागीय मुख्यालय से दूरी कम हो जाएगी. इसमें प्रतापगढ़ से बांसवाड़ा संभागीय मुख्यालय मात्र 90 किमी हो जाएगा. वहीं बांसवाड़ा से डूंगरपुर भी 100 किमी ही है. ऐसे में संभागीय मुख्यालय जाना आसान हो जाएगा. इससे लोगों को फायदा होगा. 


जनजातीय क्षेत्र के काम करने के लिए उदयपुर में जनजातीय क्षेत्रीय कार्यालय है. यहां आयुक्त बैठते हैं. बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर जनजातीय क्षेत्र के रूप में घोषित है. यहां संभाग की 80 फिसदी आदिवासी आबादी रहती है. ऐसे में सवाल ये भी है कि बंसवाड़ा के संभाग बन जाने के बाद क्या उदयपुर का जनजातीय क्षेत्रीय विभाग कार्यालय यहां आ जाएगा. या फिर यहां एक और जनजातीय मुख्यालय बनेगा जहां आयुक्त बैठेंगे. उदयपुर में अब चित्तौड़गढ़ और राजसमन्द जिले ही रहेंगे. जो तीनों ही पूरे जनजातीय क्षेत्र नहीं हैं. 


उदयपुर संभाग की राजनीतिक स्थिति


उदयपुर संभाग में अभी 28 विधानसभा सिटें हैं. इनमें से 14 भाजपा, 11 कांग्रेस, 2 बीटीपी और एक अन्य के पास है. बांसवाड़ा संभाग बन जाने के बाद यहां की कुल 11 सिटें मेवाड़ की राजनीति से अलग हो जाएंगी. इसमें बांसवाड़ा की 5, डूंगरपुर की 4 और प्रतापगढ़ की 2 सिटें हैं. इनमें 5 पर कांग्रेस का राज है. हालांकि यह भी बात है कि आदिवासी क्षेत्र के जन प्रतिनिधि समेत यहां के निवासी भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं. घोषणा के बाद बीटीपी के विधायक तो मीडिया के सामने आकर यह कह चुके हैं कि हम संभाग की नहीं, अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस इसका फायदा चुनाव में किस तरह उठाती है.