Udaipur News: राजस्थान में 24 जून से स्कूल खुल चुके हैं. माता-पिता अपने बच्चों के भविष्य की पहली सीढ़ी यानी स्कूल में प्रवेश के लिए दौड़भाग कर रहे हैं. राज्य सरकार द्वारा 24 जून से हर साल की तरफ प्रवेशोत्सव भी शुरू किया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल से जुड़ पाएं. लेकिन इसी उत्सव के दौरान एक चौंकाने वाली स्थिति सामने आई है. इसमें नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की वर्ष 2019-21 की एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें राजस्थान में छह साल तक की 36.5 प्रतिशत बच्चियां ऐसी हैं, जिन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा, जबकि आजकल बच्चों का तीन साल की उम्र में ही माता-पिता प्रवेश दिला देते हैं. हालांकि पिछले पांच साल में छह प्रतिशत सुधार हुआ है.


शहरी क्षेत्र में भी जागरूकता का अभाव
यह तो आमतौर पर देखा जाता है कि ग्रामीण की तुलना में शहर के लोग कई ज्यादा जागरूक रहते हैं, फिर चाहे शिक्षा हो या कुछ और. लेकिन नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बालिका शिक्षा में ग्रामीण तो हैं ही लेकिन शहर भी पिछड़े हुए हैं. अब भी शहरों क्षेत्रों में 23 फीसदी ऐसी बच्चियां है, जिन्होंने स्कूल नहीं देखा. साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में 41 फीसदी बच्चियां हैं, जो स्कूल नहीं जा रही हैं. प्रदेश का यह औसत राष्ट्रीय औसत से आठ फीसदी कम हैं. देश में 71.8 फीसदी बच्चियां स्कूल जा रही हैं, जिसमें शहरी क्षेत्र की 82.5 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र की 66.8 फीसदी बालिकाएं हैं.


राज्य सरकार की करोड़ों की योजना नहीं आ रही काम
राज्य सरकार ने बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल करोड़ों की 8 पुरस्कार की योजनाएं चलाई हुई हैं. जो इस प्रकार हैं. 
गार्गी पुरस्कार 2428.25 लाख रुपए. 
बालिका प्रोत्साहन 8745.95 लाख रुपए.
शारीरिक अक्षमता युक्त बालिकाओं के लिए आर्थिक पुरस्कार 74.30 लाख रुपए.
मूक-बधिर व दृष्टिहीन बालिकाओं के लिए आर्थिक संबलता पुरस्कार 6.39 लाख रुपए.
आपकी बेटी योजना: 437.61 लाख.
इंदिरा प्रियदर्शिनी अवाई 2395.41 लाख.
विदेश में स्नातक की शिक्षा सुविधा: 50 लाख रुपए.
मुख्यमंत्री हमारी बेटियां योजना 340.23 लाख रुपए.
आर्थिक पिछड़ा वर्ग की बेटियों की स्कूटी योजना 350 लाख रुपए.


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