Ajmer News: बाबा खाटू श्याम (Baba Khatu Shyam) जी के बारे में कहा जाता है कि हारे का सहारा श्याम हमारा. इसकी धार्मिक मान्यता भी है कि बाबा श्याम के नाम लेने और दर्शन भर से ही सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाता है. बाबा के भक्तों की आस्था है कि वह पदयात्रा करके बाबा के दर्शन को जाते हैं. पदयात्रा के दौरान 25 साल की आरती टांक के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उसकी जिंदगी ही बदल गई वो दिन था 5 सितंबर 2013 का, जब वो खाटूश्याम जी की पदयात्रा कर रही थीं. रात के करीब आठ बज रहे थे, तभी एक मोटरसाइकिल पर तीन लड़के आए और आरती को परेशान करने लगे, उसके साथ छेड़छाड़ करने लगे. 


रात के अंधेरे में उसकी मदद करने वाला वहां कोई नहीं था. न ही आरती को बचने का कोई उपाय सूझ रहा था. बदहवास आरती बेहद घबरा गई थीं.सुनसान सड़क पर नजर दौड़ाईं, लेकिन दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया.आरती ने बाबा खाटू श्याम जी को मदद के लिए याद किया तभी अचानक से एक दूधवाला गाड़ी पर आता दिखा तो उसे देखकर तीनों बदमाश वहां से भाग खड़े हुए उसके बाद आरती सुरक्षित धर्मशाला पहुंच गईं. इस घटना ने आरती के दिल और दिमाग पर इतना गहरा असर छोड़ा कि वह तन, मन, धन से बाबा खाटूश्याम की भक्ति में लीन हो गईं. 2015 के बाद से उसने अपनी नौकरी छोड़कर खाटूश्याम में ही अपना डेरा डाल लिया. आज यहां का हर शख्स आरती को 'मीरा' कहता है. पिछले सात साल से वह अपने घर तक नहीं गईं है.


बाबा खाटू श्याम जी की मीरा यानि आरती की चर्चा आज हम इसलिए कर रहे है क्योंकि देवउठनी एकादशी को उन्होंने रींगस से खाटूश्याम तक रोजाना पदयात्रा कर फाल्गुनी मेले की एकादशी तक बाबा श्याम को 5100 ध्वज चढ़ाने का संकल्प लिया है.अपना संकल्प पूरा करने के लिए वो रोजाना 17 किलोमीटर की तीन पदयात्राएं करेंगी. 4 नवंबर को यात्रा शुरू करने से पहले  34 साल की आरती ने बताया, बाबा खाटूश्याम की आराधना करने के लिए वह रोज 50-60 किलो वजन उठाकर रींगस से खाटूश्याम तक 17 किलोमीटर पैदल चलती हैं.' आरती बाबा श्याम के धाम खाटू में रहकर भक्ति में ऐसी डूबीं कि घर-परिवार, रिश्ते-नाते सब छोड़ दिया. सरकारी अस्पताल में संविदा पर नौकरी कर रही थीं, वह भी छोड़ दी.न रहने का ठिकाना और न खाने-पीने का. एक ही धुन है- बाबा श्याम से साक्षात मिलना है. संकल्प लेने के बाद वे एक दिन में कभी-कभी रींगस से खाटू श्याम की 3 यात्राएं करती हैं. आरती बाबा श्याम की इतनी बड़ी भक्त हैं तो लोग भी उनका आदर करते हैं. खाटू श्याम से रींगस तक आरती को जानने वाले लोग इनसे खाने-पीने, रहने का पैसा नहीं लेते. बस में सफर करती हैं तो कंडक्टर टिकट नहीं काटता. खाटू नगरी में दुकान से जरूरत का कुछ सामान खरीदती हैं तो दुकानदार पैसे नहीं लेते हैं.


अजमेर की आरती ने 7 साल से रिश्ते-नाते और नौकरी छोड़ी
अजमेर की रहने वाली आरती पिछले 7 साल से अपने घर नहीं गई. भाई, बहनों की शादी तक में भी नहीं गई. पिता राम स्वरूप अजमेर जिला और सेशन कोर्ट में यूडीसी के पद पर कार्यरत थे. 6 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. आरती की मां निर्मला टाक गृहणी हैं. आरती की दो बहनें हैं, दोनों की शादी हो चुकी है. उनके तीन भाई भी हैं. एक की शादी हो चुकी है और दो अविवाहित हैं. भाई निजी कंपनियों और शादी इवेंट का कार्य करते हैं. खुद आरती एमए तक पढ़ी हैं. वह 2012 में जवाहर लाल नेहरू हॉस्पिटल अजमेर में संविदा पर कार्यरत थीं. 2009 में पहली बार खाटू श्याम आई थी. इसके बाद 2013 में आईं.इसी बीच उनका रुझान भक्ति भाव की ओर हो गया. आरती अब खाटू में ही रहकर श्याम की भक्ति करती हैं और रोजाना रींगस से खाटू श्याम तक 17 किमी की पदयात्रा कर बाबा को ध्वजा चढ़ाती हैं. कभी 21 तो कभी 51 ध्वजा लेकर वो पदयात्रा में नाचते-गाते चलती हैं.रास्ते में चलते लोग भी आरती के साथ चल पड़ते हैं.


104 दिन में पूरा करना होगा संकल्प 
देवउठनी एकादशी 4 नवंबर की थी. फाल्गुनी एकादशी 16 फरवरी 2023 की होगी. इस तरह आरती को यह संकल्प 104 दिन में पूरा करना होगा. इसके लिए उसे रोजाना रींगस से खाटू धाम तक की 17 किलोमीटर की तीन-तीन पदयात्रा करनी होंगी. ती रींगस से पदयात्रा कर खाटू आती हैं, वापसी में बस में बैठकर रींगस जाती हैं. फिर खाटू के लिए पैदल चल पड़ती हैं. एक बार में वे 21 से 51 ध्वज लेकर बाबा श्याम को चढ़ाती हैं. उनकी इस कठिन तपस्या के कारण लोग उन्हें श्याम की मीरा कहने लगे हैं. देवउठनी एकादशी से फाल्गुनी एकादशी इसलिए  खास दिन है क्योंकि एकादशी को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवता निंद्रा से जागते हैं. फाल्गुनी एकादशी को देवता अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं.


राजस्थान के सीकर में खाटूश्याम का मंदिर, भारत में कृष्ण भगवान के मंदिरों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. खाटू श्याम जी का वार्षिक मेला हर वर्ष फाल्गुन माह में लगता है. यह अमूमन फरवरी या मार्च में आता है.यह मेला षष्ठी से द्वादशी तक करीब 8 दिन भरता है. इसमें मुख्य मेला फाल्गुन एकादशी को होता है. माना जाता है कि इसी दिन श्याम प्रभु का मस्तक प्रकट हुआ था.इस दिन देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करते हैं. आरती ने कार्तिक एकादशी से अपनी यात्रा शुरू की है, यह तिथि भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस दिन खाटूश्याम जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है. खाटूश्याम जी को कलियुग कृष्णावतार भी कहा जाता है.


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