Rajasthan News: जोधपुर की धरती पर करीब 10 साल बाद श्री तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य महाश्रमण अपने साधु-साथियों की धवल सेना के साथ पहुंच चुके हैं. इनके आदर सत्कार में हर धर्म जाति के लोग तैयार थे. जोधपुर में आचार्य और उनके साथ सभी साथियों को जैन समाज द्वारा रातानाडा अजीत कॉलोनी से यात्रा के साथ स्वागत सत्कार करते हुए चोरड़िया भवन ले जाया गया. इस बीच रास्ते में जगह-जगह उनका जोरदार स्वागत किया गया. वहीं रास्ते में जगह-जगह आशीर्वाद लेने उमड़ी भीड़ से आचार्य भी अपने नाम के अनुरूप ना केवल मिल रहे थे बल्कि उनको आशीर्वाद भी दे रहे थे.


धवल सेना के आगे ध्वज और उनके पीछे महिला मंडल व युवाओं की टीम जयघोष के साथ कदमताल करते हुए चल रही थी. 52 हजार से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा के दौरान आचार्य एक करोड़ से अधिक लोगों को प्रेरणा देकर नशामुक्ति का संकल्प कराया. जातीय भेदभाव को दूर करने, बाल पीढ़ी के संस्कार निर्माण व आम जनता के ह्रदय परिवर्तन पर विशेष बल देते हैं. धवल सेना, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, प्राणायाम, कायोत्सर्ग, महाप्राण ध्वनि आदि के प्रयोग करा शांतिमय जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं.


राजस्थान से पुराना नाता
आचार्य महाश्रमण ने आयोजित धर्म सभा में कहा कि तेरापंथ नामकरण का इतिहास जोधपुर से जुड़ा हुआ है. आचार्य तुलसी ने दो बार यहां पर चतुर्मास किया था उनमें से एक चतुर्मास में मैं भी शामिल था. जोधपुर की धरती पर आना मुझे भी अच्छा लगता है. यहां के लोगों में बौद्धिकता के भाव के साथ भाव शुद्धि रहे तो वर्तमान जीवन के साथ-साथ आगे का जीवन भी अच्छा हो सकता है. आचार्य ने कहा कि आदमी स्वयं के मंगल की कामना करता है और दूसरों के प्रति भी मंगल की कामना करता है, लेकिन स्वस्थ में सर्वोच्च तक मंगल धर्म को ही बताया गया है क्योंकि जो अहिंसा संयम और रूप में धर्म की आराधना करता है उसका सदैव मंगल होता है.


इन तीन बातों को अपनाएं- आचार्य
यह तीनों बातें जिस किसी ने अपना ली उसकी आत्मा भी साफ रहती है, उसका जीवन भी बहुत अच्छा रहता है. आचार्य महाश्रमण का संदेश पूरी दुनिया के लिए है जिसमें किसी भी जाति व समाज से भेदभाव नहीं करें, संप्रदाय को लेकर दंगा, फसाद, हिंसा, हत्या इसमें भाग नहीं लेना चाहिए. नैतिकता जो भी कार्य करें उसमें आदमी को इमानदारी रखना जरूरी है किसी के साथ धोखा नहीं करें. नशा मुक्ति शराब, सिगरेट, खैनी, गुटखा आदि नशीले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए. आचार्य महाश्रमण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारवें आचार्य है. इनका जन्म राजस्थान के चुरू जिले के सरदारशहर में हुआ था. 


12 सालों से कर रहें हैं पदयात्राएं
मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में आपने नवम् आचार्य राष्ट्रसंत तुलसी की अनुज्ञा से मुनि सुमेरमल 'लाडनू' द्वारा संयम पथ स्वीकार किया. अल्पायु में ही संस्कृत प्राकृत हिंदी व अंग्रेजी भाषा का अध्ययन कर आपने आगमों का अध्ययन किया. तीक्षण प्रतिभा और नेतृत्व कुशलता को देखकर 36 वर्ष की युवावस्था में आचार्य महाप्रज्ञ ने इनको युवाचार्य पद पर आसीन किया. 48 वर्ष की अवस्था में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य रूप से प्रतिष्ठित हुए. गत 12 वर्षों से यह जन उद्वार व मानव मात्र के कल्याण हेतु ससंघ, चरैवेति-चरैवेति के सूत्र को सार्थक करते हुये पदयात्रायें कर रहे हैं. 60 वर्ष की अवस्था में भी आचार्य अहिंसा और सत्य के संकल्प को लिए नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का प्रचार प्रसार कर रहे हैं.



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