Rajasthan News: शीतलाष्टमी मेला इस बार 24 मार्च को शाम 4.30 बजे ध्वजारोहण के साथ शुरू हो जाएगा. नागौरीगेट के बाहर कागा स्थित शीतला मंदिर में ऐतिहासिक शीतला माता मेले का उद्घाटन राजस्थान राज्य पशुधन विकास बोर्ड के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह सोलंकी, नगर निगम (उत्तर) क्षेत्र की महापौर कुन्ती परिहार, राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा, नगर निगम (दक्षिण) क्षेत्र महापौर वनिता सेठ व जसवन्त सिंह कच्छवाहा समाज सेवी और ट्रस्टी भारत सेवा संस्थान के मुख्य आतिथ्य में किया जाएगा. 


इसकी अध्यक्षता राज्य सभा सांसद राजेन्द्र गहलोत करेंगे. शीतला माता (कागा तीर्थ) ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल कछवाह ने बताया कि गाजे बाजों के साथ पहले पूज्य गणेश व माता शीतला के पूजन के बाद मंदिर शिखर पर ध्वजारोहण किया जाएगा. अष्टमी तिथि पर घरों में भी शीतला


शीतला माता को राजा ने जोधपुर से कर दिया निष्कासित 
पूरे देश में होली के सात दिन बाद सप्तमी को शीतला माता का पूजन किया जाता है, लेकिन जोधपुर में यह पूजा अष्टमी को होती है. जोधपुर में सदियों से दैवीय पूजन विधि विधान की अपेक्षा एक राजा के आदेशानुसार अब तक होता आ रहा है. माता निकलने (चेचक) की वजह से पुत्र की मृत्यु होने पर जोधपुर के तत्कालीन महाराजा विजय सिंह ने शीतला माता को जोधपुर शहर से निष्कासित कर दिया था. 


शीतला माता की पूजा सप्तमी की बजाय अष्टमी को
इसके बाद से अब तक जोधपुर में शीतला माता की पूजा अष्टमी को की जाती है. जोधपुर के तत्कालीन महाराजा विजय सिंह साल सत्रह सौ बावन (1752) में अपने पिता महाराजा बखत सिंह के निधन होने पर जोधपुर के महाराजा बने थे. इसके अगले वर्ष महाराजा राम सिंह ने उनसे सत्ता हथिया ली थी. इसके बाद में उनके निधन होने पर सत्रह सौ बहत्तर में एक बार फिर जोधपुर के महाराजा बने.


चेचक के प्रकोप से पुत्र की मौत पर दुखी थे महाराजा
इसके कुछ वर्ष बाद चेचक निकलने के कारण शीतला सप्तमी को उनके बड़े पुत्र का निधन हो गया. माता चेचक के प्रकोप से पुत्र की मौत से दुखी महाराजा ने शीतला माता के शहर से निष्कासन का आदेश जारी कर दिया. इस पर जूनी मंडी स्थित शीतला माता मंदिर से शीतला माता की प्रतिमा को उठाकर कागा की पहाडियों में पहुंचा दिया गया. जोधपुर में कागा क्षेत्र श्मशान स्थल था, इसके निकट ही एक बाग भी था. श्मशान के निकट पहाड़ी में माता की प्रतिमा को रखवा दिया गया. महाराजा का गुस्सा इससे भी शांत नहीं हुआ.


राजा ने नागौरी गेट को नमक से चुनवा दिया
नागौरी गेट को नमक से चुनवा दिया गया था. उन्होंने कागा की तरफ खुलने वाले नगर के द्वार नागौर गेट को लूण नमक से चुनवा दिया. कई लोग आज भी बोलचाल में इस द्वार को नागौर गेट के बजाय लूणिया दरवाजा कहते है. समय के साथ महाराजा का गुस्सा शांत अवश्य हुआ, लेकिन शीतला माता का निष्कासन रद्द नहीं हो पाया. कई साल बाद कागा की पहाडियों में शीतला माता की प्रतिमा के इर्द-गिर्द मंदिर का निर्माण कराया गया. तब से लेकर अब तक शहर के लोग सप्तमी की बजाय अष्टमी को शीतला माता की पूजा करते हैं.


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