Alwar News: रणथंभौर से एयरलिफ्ट कर सरिस्का लाये जाने वाले पहले टाइगर की हत्या मामले में 12 साल बाद फैसला आया है. दरअसल सरिस्का वन क्षेत्र में 2010 में टाइगर एसटी वन की हत्या के तीन आरोपियो को राजगढ़ एसीजेएम कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. वहीं इस मामले में अब वन प्रशासन उच्च न्यायालय में अपील करेगा.
क्या है मामला
बता दें कि 2005 में जब सरिस्का में शिकारियों द्वारा बाघों का सफाया कर दिया गया था तब सरिस्का में पर्यटकों का आना लगभग बंद हो गया था. सरिस्का को पुनः जिंदा करने के लिए रणथंभौर से बाघों को शिफ्ट करने की कवायद शुरू हुई. जिसके तहत रणथंभौर से ट्रेंक्यूलाईज कर बाघों को हेलीकॉप्टर से शिफ्ट करने का अभिनव प्रयोग किया गया था. यह अपने आप मे देश मे पहला प्रयोग था जो सफल भी हुआ. यहां सबसे पहले शिफ्ट किये टाइगर का नाम एसटी वन दिया गया था. उसके बाद एक-एक कर कई बाघों को शिफ्ट किया गया. लेकिन एक बड़ा झटका तब लगा जब सरिस्का में कुछ दिन बाद एक बुरी खबर आई कि टाइगर एसटी वन की हत्या कर दी गयी.
14 नवम्बर 2010 को हुई थी बाघ की हत्या
14 नवम्बर 2010 को वन विभाग के अधिकारियों को बाघ राजौर क्षेत्र के काला खेड़ा में खेत मे मृत अवस्था मे पड़ा मिला था. बाघ की हत्या के लिए एक भैंस पर जहर लगाकर खाने के लिए छोड़ दिया गया था. जिसे खाने से बाघ की मौत हो गयी थी. मौके पर पहुंची टीम ने जांच की और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत धारा 9 , 27 ,29 ,32 ,39 ,49 , 49 बी व 51 में मामला दर्ज किया था. घटना के करीब एक माह बाद सरिस्का प्रशासन ने बाघ के शिकार और उसकी मूंछ का बाल काटकर अपने पास रखने के आरोप में टहला क्षेत्र के मित्रावट निवासी प्रसादी पुत्र रामसहाय गुर्जर (55) भगवाना पुत्र रामसहाय गुर्जर (70) व कैलाश पुत्र किशना गुर्जर(30) के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर इन्हें गिरफ्तार किया था ,
तीनों आरोपियो को संदेह का लाभ देते हुए किया गया बरी
वहीं इस मामले में कोर्ट ने तीनों आरोपियो को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. दरअसल बाघ की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघ की मूछ के बाल गायब होने का जिक्र नही था जबकि गिरफ्तार तीनो आरोपियो को बाघ एसटी वन के मूंछ के बाल बरामदगी के आधार पर दोषी मानते हुए चालान पेश किया था. सीजेएम न्यायधीश चित्राशी सिंह ने मेडिकल बोर्ड की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बाघ की मूंछ के बाल का जिक्र न होने के चलते तीनो आरोपियो को दोष मुक्त कर दिया. वहीं
वन विभाग प्रशासन अब इस मामले में उच्च न्यायलय में अपील करेगा.
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