Rajasthan News: राजस्थान में इसी साल चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियां आदिवासी वोटर्स को रिझाने के लिए अपना पूरा दमखम लगा रही हैं. लेकिन इसमें बीजेपी को दक्षिणी राजस्थान अपने हाथ से जाने का खतरा सता रहा है. इसका एक बड़ा उदाहरण मंगलवार को ही सामने आया. जब उदयपुर सांसद अर्जुन लाल मीणा, पूर्व मंत्री धनसिंह रावत और पूर्व मंत्री चुन्नी लाल गरासिया ने दिल्ली में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने एक ज्ञापन भी दिया, जिसमें साफ नजर आ रहा है कि दक्षिणी राजस्थान बीजेपी के हाथों से जाने का डर उनको सता रहा है. जानते हैं वह ज्ञापन क्या है और इस ज्ञापन पर एबीपी न्यूज़ से अर्जुन लाल मीणा ने क्या कहा.
'आदिवासी हमसे मुहं ना मोड़ लें'
अर्जुन राम मेघवाल को दिए ज्ञापन में बताया गया कि राजस्थान प्रदेश के आने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दक्षिणी राजस्थान के बीजेपी आदिवासी नेताओं ने केंद्र में अपनी बात रखी. दिल्ली में केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से मुलाकात कर आने वाले विधानसभा चुनाव में दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, क्षेत्र में आदिवासीयों के राजनैतिक भविष्य को लेकर अपनी बात को रखा.
प्रदेश से गए नेताओं ने मंत्री मेघवाल को अवगत कराया कि पिछले कई वर्षों से आदिवासी समाज राजनीतिक उपेक्षाओं का शिकार हो रहा हैं, इस क्षेत्र में कोई भी बड़ा औद्योगिक केंद्र आज तक स्थापित नहीं हुआ, जिसकी वजह से आदिवासीयों में बेरोजगारी निरंतर बढ़ रही है. जिससे इस समाज में भारी रोष है. आने वाल चुनावों में आदिवासी समाज देश की स्थापित राजनीतिक पार्टीयों से कहीं मुहं न मोड़ ले इसलिए राजनीतिक और सामाजिक समरसता बनाये रखने के लिए समय रहते समाधान कर लेना चाहिये और केंद्र को अतिशीघ्र आदिवासी समाज से बात कर उनको समाज की मुख्य धारा और सामाजिक समरसता से जुड़ा रहे.
'यही स्थिति रही तो बदल सकते हैं परिणाम'
अर्जुनलाल मीणा द्वारा इस मामले में प्रेस नोट भी जारी किया गया. इस पर एबीपी ने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कहा कि उदयपुर संभाग में 28 सिटें है, इनमें आदिवासी सीटों पर बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) का काफी प्रभाव है. अभी यह सिर्फ 28 में से 2 विधायक हैं, लेकिन ऐसी ही स्थिति रही तो और भी ज्यादा आ सकते हैं. क्योंकि वहां की स्थानीय पार्टियां उन्हें गुमराह कर रही है. वह गलत को सही साबित करने और तुले हुए हैं. ऐसे में आदिवासी क्या चाहते हैं और उनकी क्या सोच है इसके बारे में जानना होगा. जनजाति मंत्रालय का विभाग इनके लिए काम करता है. उनकी शासन में भागीदार करनी होगी. क्योंकि आज भी आदिवासी क्षेत्र की वही हालात है जो पहले थी. इन क्षेत्र के लिए सभी को मिलकर काम करता पड़ेगा.
छात्र संघ चुनाव में दिखी थी एकजुटता
अभी बीटीपी के दो विधायक हैं जो चौरासी विधानसभा और सागवाड़ा विधानसभा से हैं, लेकिन अब डर इस बात का है कि बीटीपी के साथ ही भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा खड़ा हुआ है, जिसने कुछ माह पहले हुए छात्रसंघ चुनाव में अपनी एकजुटता दिखाई थी. यहां भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा ने 20 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी और एबीवीपी-एनएसयूआई के सूपड़ा साफ कर दिया था. इस चुनाव ने आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी को संदेश दे दिया था. आदिवासी क्षेत्र की सिटें आज भी दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए चुनौती बनी हुई हैं.
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