Kota News: अगर सांप घर में दिखाई दे तो हम उसे डंडों से मारते हैं और अगर वही सांप शिवलिंग पर दिखाई दे तो दूध की कटोरी लिए कतार में खड़े रहते हैं. ये भय की कैसी आस्था है, सांपों का जीवन भी सभी जीव की तरह ही होता है, जंगल से सांप जब घरों की और आ रहे हैं तो समझो वहां भी मनुष्य का बसेरा हो चला है, ऐसे में इन्हें बचाने का बीड़ा किसी को तो उठाना ही होगा. और कोटा में ऐसा ही काम हो रहा है, जहां हजारों सांपो को मरने से बचाया जा चुका है, हम बात कर रहे हैं कोटा के पर्यावरण प्रेमियों की जो अब तक हजारों सांपों को पकड़कर जंगल में छोड चुके हैं. कोटा की चंबल नदी अपने प्राकृतिक सौंदय के लिए जानी जाती है. वहीं दूसरी ओर जहरीले जीव जंतु भी अपना बसेरा करते हैं. चंबल के तट पर दर्जनों जहरीले व सामान्य सांपों का बसेरा है.
कोटा यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जा रहा रेप्टीलियन साइंस
भारत में कोटा एक मात्र शहर हैं, जहां सांपों का ज्ञान दिया जा रहा है. कोटा यूनिवर्सिटी में रेप्टीलियन साइंस सब्जेक्ट पढाया जा रहा है, जिसमें बीस स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे हैं. यहां सांपों की प्रजातियां, उनका मानव जीवन पर प्रभा, जहर का असर, सांपों की जीवन शैली सहित कई तरह से स्टूडेंट्स को पढाया जा रहा है.
10 साल से हो रहा बचाने का काम
कोटा में लंबे समय से सांपों को मारा नहीं जा रहा बल्कि बचाया जा रहा है, कोटा में करीब 10 साल से भी अधिक समय से सांपों को बचाने की मुहीम चल रही है. जब भी किसी के घर में सांप आता है वह पर्यावरण प्रेमियों, कंट्रोल रूप या स्थानीय जनप्रतिनिधि को फोन करते हैं और वहां से पर्यावरण प्रेमी को सूचना होती है. इसके बाद वहां से सांप को सुरक्षित पकड़कर जंगल में रिलीज कर दिया जाता है.
हाड़ौती में पाई जाने वाली सांपों की प्रजातियां
पर्यावरण प्रेमी व स्नेक केचर गोंविद शर्मा बताते हैं कि कोटा के आसपास घना जंगल हैं. चंबल की गोद में भी कई प्रजातियों के सांप का जीवन फल फूल रहा है, ऐसे में हाड़ौती में कई प्रजातियां जैं जिसमें से सर्वाधिक कोबरा पाया जाता है, जो जंगल के साथ घरों में भी अपना बसेरा बना लेता है. इसके साथ ही जहरिले सांपों में करेत, रसल वाइपर, सो स्केल वाइपर, अजगर, मोनिटर लिजार्ड शामिल हैं, इसके साथ ही कम जहरिले व सामान्य सांपों में वुल्स, टेनकेट, कोनिकल, धामन (रेड स्नेक), बेंडड खुकरी, दूमई, शामिल हैं, इसके साथ ही एक बार यहां किंग कोबरा भी निकल चुका है. वहीं गोयरा, गोयरी, डेंडू, भी यहां पाए जाते हैं.
सांप के काटने के बाद सिरिंज से खींचते हैं जहर
कोटा में सांपों का लम्बा इतिहास रहा है, यहां डॉ. विनोद महोबिया द्वारा सांपों पर काफी रिसर्च किए गए. कोटा राजकीय महाविद्यालय में प्रोफेसर रहे डॉ. विनोद महोबिया से कई लोगों ने सांपों का ज्ञान लिया और उनके ही द्वारा कोटा में सांप के काटने के बाद व्यक्ति को बचाने क लिए सिरिंज तकनीक अपनाई गई, जिसमें सिरिंज का आगे का हिस्सा हटाकर जहां सांप ने काटा है वहां से ब्लड को खींचा जाता है, ताकी जहर वापस सिरिंज में आ जाए. ऐसा करने से लोगों के जीवन को बचाया भी गया. 1995 में इस तकनीक का प्रयोग किया गया जो कारगर रहा, जिसके बाद से ही यहां सांप के काटने के बाद व्यक्ति स्वयं भी इस तकनीक से लोगों को बचा सकता है.
चूहों को खाने आते हैं शहर में
बरसात के दिनों में सांपों के बिल में पानी भर जाता है, जिसके बाद ये बिल से बाहर आ जाते हैं. साथ ही भोजन की तलाश में ये बस्तियों की और आने लगते हैं, जहां इनका पसंदीदा भोजन चूहा है, जिसको खाने के लिए ये शहर की और आ जातें हैं, इसके साथ ही कई जीव जंतु भी ये खाते हैं.
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