Lukka Daku of Chambal: चंबल के बीहड़ में एक से एक नामी डकैत हुए हैं. सभी डकैतों की अपनी अलग-अलग परस्थिति रही डकैत बनने की और आतंक फैलाने की. देश की आजादी से पहले लोकमन पंडित अग्रेजों और जमीदारों के जुल्म की वजह से डकैतों की गैंग में शामिल हो गया और कई अंग्रेज अफसरों और जमीदारों के साथ लूटपाट की. देश आजाद हो गया तो डकैत की गैंग ने भी खूब जश्न मनाया कि देश के आजाद होने से उन्हें भी मुख्य धारा से जोड़कर न्याय मिलेगा. लेकिन देश के आजाद होने के बाद भी उन्हें बागी ही माना गया और डकैतों की गैंग लूटपाट ही करती रही . 


लोकमन दीक्षित का जन्म मध्य प्रदेश के भिंड जिले के बहुआ गांव में हुआ था. गांव के कुछ रसूखदार लोग लोकमन दीक्षित के परिवार पर जुल्म करते थे. एक दिन गांव के दबंगों ने लोकमन दीक्षित के पिता को चंबल नदी में फेंक दिया. पिता के साथ दबंगों द्वारा किया गया बर्ताव बेटे से सहन नहीं हुआ और लोकमन पंडित हथियार लेकर चंबल के बीहड़ में कूद गया और डकैत बन गया. चंबल के कुख्यात डकैत मान की गैंग में शामिल होने के बाद डकैत पंडित लोकमन दीक्षित उर्फ लोकू ने अपने दुश्मनों से बदला लिया. डाकू मान सिंह की गैंग का सबसे तेज तर्रार सदस्य लोकमन पंडित था. डाकू मान सिंह की गैंग का सेनापति की तरह लोकमन पंडित काम करता था. 


लुक्का को बनाया गया सरदार
1955 में डाकू मान सिंह की तबियत बिगड़ने पर लोकमन दीक्षित को गैंग का सरदार घोषित किया गया. डाकू लोकमन दीक्षित के अपनी गैंग के नियम कायदे हुआ करते थे. गैंग के अन्य सदस्य भी उसी तरह नियम की पलना करते हुए लूटपाट करते थे. लोकमन पंडित डकैत जरूर था लेकिन लेकिन बहुत ही भावुक इंसान भी था. डाकू लोकमन पंडित का 1955 से 1960 तक चंबल के बीहड़ में आतंक चरम पर था लोग डाकू लोकमन पंडित के नाम से थर - थर कांपते थे. आगरा से ग्वालियर जाने में लोग डरते थे. लोकमन दीक्षित की गैंग डकैती के वक्त उस घर की किसी भी महिला को हाथ तक नहीं  लगाते थे किसी बहन बेटी के गहने नहीं लूटते थे और किसी महिला के गले से मंगलसूत्र को हाथ लगाते थे. 


रिक्शे वाले ने बदली जिंदगी 
एक दिन डाकू लोकमन पंडित की भिड़ंत एक रिक्शे वाले से हो गई. रिक्शेवाले ने लोकमन पंडित में टक्कर मार दी दोनों के बीच कहासुनी हो गई और रिक्शे वाले ने रिक्शे से उतर कर लोकमन के लात मर दी और आगे बढ़ गया. लोगों के डर की वजह से पंडित लोकमन रिक्शे वाले से कुछ नहीं बोला अगर वह अपनी ताकत दिखाता तो उसे डर था की लोग उसे पहचान जाएंगे और पुलिस के हवाले कर देंगे. यहीं से डाकू लोकमन की जिंदगी में नया मोड़ आया और उसके दिमाग में एक बात घर कर गई कि यह बुरे काम का ही नतीजा है जो में एक रिक्शे वाले से लात खाकर भी कुछ नहीं कर सकता. 


डाकू लोकमन दीक्षित के बड़े बेटे सतीश की मौत कैंसर की बीमारी से हो गई थी और छोटे  बेटे अशोक की सड़क दुर्घटना में मौत हुई. यहीं से लोकमन दीक्षित टूट गया और आचार्य विनोवा भावे के सामने हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर दिया. आत्मसमर्पण करने के बाद उम्रकैद की सजा पूरी की और अपने परिवार के साथ जीवन गुजारा.


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