Rajasthan News: अपने गुरुकुल की नाबालिग छात्रा के साथ यौन दुराचार के दोषी आसाराम पिछले नौ साल से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं. उन्हें पॉक्सो एक्ट के तहत 2018 में अंतिम सांस तक कारावास की सजा सुनाई गई थी. आसाराम के खिलाफ जमानत पाने के लिए फर्जी दस्तावेज पेश करने का मामला कोर्ट विचाराधीन है. दरअसल, इस मामले की सुनवाई चल रही हैं. इस मामले में जोधपुर की सीजेएम मेट्रो कोर्ट में गुरुवार को आसाराम पर आरोप तय करेगी. इस मामले में वो आज अदालत में पेश होगा. आसाराम पर जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में जोधपुर जेल डिस्पेंसरी का फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट पेश करने का आरोप है. 


आसाराम के पैरोकार रवि राय की ओर से आसाराम को जमानत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पेश की गई थी. इसमें जोधपुर सेंट्रल जेल की डिस्पेंसरी का फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट पेश किया गया था. उस सर्टिफिकेट में आसाराम की कई गंभीर बीमारियों का जिक्र किया गया था.साल 2017 में सर्टिफिकेट की सुप्रीम कोर्ट ने जांच करवाई तो जांच में यह फर्जी पाया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जोधपुर के रातानाडा पुलिस थाने में आसाराम के पैरोकार रवि को मुख्य आरोपी मानते हुए मामला दर्ज करवाया गया. इस मामले में आसाराम को भी आरोपी बनाया गया है. आसाराम की तरफ से कहां गया कि इस पूरे मामले में मेरी कोई भूमिका नहीं है. रवि राय से मेरी ना तो साक्षात और ना ही फोन के जरिए कोई बात या मुलाकात हुई है. सात ही उन्होंने कहा न ही मैंने उसे सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर करने को अधिकृत किया है.


इन धाराओं में मामला दर्ज
जोधपुर सेंट्रल जेल से जुड़े कई दस्तावेज रवि राय के दिल्ली स्थित आवास से ही मिले हैं. आसाराम ने कहा कि मेरा इस मामले से कोई लेना देना नहीं है. जेल में बंद आसाराम को जमानत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आसाराम के पैरोकार ने एक याचिका पेश की थी, जिसमें जोधपुर सेंट्रल जेल की डिस्पेंसरी का मेडिकल सर्टिफिकेट पेश किये गए थे, जो कि जांच में फर्जी पाये गये थे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के रातानाडा पुलिस थाने में आसाराम के पैरोकार रवि राय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 193, 196, 200, 201, 420, 465, 464, 468, 471 व 120बी में मुकदमा दर्ज किया गया. आसाराम को भी इस मामले में धारा 120बी में आरोपी बनाया गया है. आसाराम के पैरोकार और आसाराम के खिलाफ यह मामला साल 2017 में दर्ज किया गया था. यह मामला संज्ञीन अपराध की श्रेणी में आता है, जिसमें अधिकतम तीन से सात साल की सजा का प्रावधान है.



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