Dholpur News: धौलपुर के मनोज ने अनाथ होकर भी नहीं मानी हार, मेहनत कर बने डॉक्टर, पहली सैलरी गरीब बच्चों को दान की
Rajasthan News: डॉक्टर मनोज का कहना है कि सफलता के लिए सिर्फ कल्पना ही नहीं, सार्थक कर्म भी जरूरी है. सीढ़ियों को देखते रहना पर्याप्त नहीं, सीढ़ियों पर चढ़ना भी जरूरी है.
Rajasthan News: राजस्थान के धौलपुर (Dholpur) के डॉक्टर मनोज कुमार मीना उस युवा का नाम है जिसने जीवन की तमाम विपरीत परिस्थितियों को मात देकर सफलता की इबारत लिखी. डॉक्टर बन अपनी पहली सैलरी 'सोच बदलो गांव बदलो' टीम द्वारा संचालित उत्थान कोचिंग संस्थान सरमथुरा में पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों के लिए दान की है. डॉक्टर मनोज मीना की जीवनी अपने आप में एक सफलता संघर्ष की दास्तां है. मनोज का जन्म धौलपुर के सरमथुरा–करौली डांग क्षेत्र के एक पथरीले पठार की चोटी पर बसे छोटे से गांव भूरेकापुरा के एक गरीब मजदूर किसान रामगोपाल मीना के घर में हुआ था. इस क्षेत्र में रोजी-रोटी का एकमात्र साधन खनन कार्य है अतः मनोज के पिता खनन मिस्त्री होने से सिलिकोसिस बीमारी के शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई. उस वक्त मनोज की उम्र लगभग आठ साल रही होगी.
विपरीत परिस्थितियों में हासिल की मंजिल
अब एक लाचार विधवा मां पर इस नन्हीं सी जिन्दगी और दो बहनों के पालन पोषण की जिम्मेदारी आ गई. मनोज के पिता तीन भाई थे जिनमें से ताऊ पूर्व में ही सिलिकोसिस के शिकार हो गए. अब तीनों परिवारों के जीवन निर्वाह का भार मनोज के चाचा रमेशचन्द को उठाने पर अनायास ही विवश होना पड़ा. हम सोच सकते हैं कि ऐसे में दो वक्त की रोटी जुटाना आसान काम नहीं रहा होगा. हालांकि, मनोज बचपन से ही प्रतिभाशाली छात्र रहे और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद भी पथरीली चट्टानों की तरह, आत्मीय भावनाओं पर पत्थर रखकर अपने चाचा रमेश चन्द के ख्वाबों को पूरा करते हुए अपनी मंजिल को हासिल किया. वर्तमान में मनोज सफदरजंग, दिल्ली में मेडिकल विभाग में डॉक्टर के पद आसीन हुए हैं.
युवाओं को दी यह सलाह
वहीं डॉक्टर मनोज का कहना है कि सफलता के लिए सिर्फ कल्पना ही नहीं, सार्थक कर्म भी जरूरी है. सीढ़ियों को देखते रहना पर्याप्त नहीं, सीढ़ियों पर चढ़ना भी जरूरी है. ईश्वर ने मुझे एक अनाथ परिवार दिया और मेरी जिन्दगी को यतीम की सौगात दी, लेकिन उसी रब ने मुझ यतीम की पतवार एक नेक व रहम दिल इन्सान मेरे चाचा रमेश के हाथों में खेवन के लिए सौंप दी. मैंने भी अपने कष्टों को कर्म की धारा में पिरोकर मुकाम हासिल करने का लक्ष्य साधा. 'सोच बदलो गांव बदलो' टीम की विचारधारा और मानवीय श्रेष्ठता की पूंजी को नमन करते हुई सामाजिक उत्थान में अग्रणी भूमिका के कर्मठ कार्यकर्ताओं से प्रेरित होकर अपनी पहली सैलरी को उत्थान कोचिंग सरमथुरा को समर्पित करता हूं. डॉक्टर मनोज कुमार मीना हमारे युवाओं की बदलती सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह निर्णय सोच बदलो गांव बदलो मुहिम के वैचारिक प्रयासों का परिणाम है.