Baran News: बारां के डॉक्टर ने गंभीर बीमारी से बचाने के लिए बदल दिया पूरा ब्लड, नवजात को मिली नई जिंदगी
इस बीमारी का इलाज सिर्फ मेडिकल कॉलेज स्तर पर ही होता है. लेकिन बारां जिले के शिशु रोग विशेषज्ञ ने हिम्मत दिखाकर सरकारी अस्पताल में यह संभव कर दिखाया है.
Baran News: राजस्थान के बारां जिले के एक सरकारी अस्पताल में एक डॉक्टर ने गंभीर बीमारी पीलिया से बचाने के लिए एक नवजात का पूरा ब्लड बदलकर उसे नया जीवन दान दिया है. डॉक्टरों का कहना है कि अगर वह ब्लड नहीं बदलते तो हाई रिस्क पीलिया से 24 घंटे में नवजात की जान चली जाती. क्योंकि नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव था और संतान का पॉजिटिव ऐसे में शरीर में घातक एंटीबॉडी बन रही थी. जो पीलिया रोग को तेजी से शरीर में बढ़ाती है.
अगर पीलिया की चपेट में आने से पूरा शरीर पीला पढ़कर नवजात की अधिकतम 24 घंटे के अंदर ही मौत हो जाती है. हालांकि इस का उपचार मेडिकल कॉलेज स्तर पर ही होता है. लेकिन बारां जिले के शिशु रोग विशेषज्ञ ने हिम्मत दिखाकर सरकारी अस्पताल में यह संभव कर दिखाया है. कुछ घंटों में नवजात का पूरा ब्लड बदलकर उसे जीवनदान दिया है. ब्लड बदलने के बाद नवजात पूरी तरह से स्वस्थ है. नवजात 6 दिनों तक डॉक्टरों की देखरेख में रहेगा बाद में उसे डिस्चार्ज कर दिया जाएगा.
पीलिया के लक्षण नजर आने पर एक्टिव हुए डॉक्टर
बारां के शहीद राजमल मीणा राजकीय जिला अस्पताल की एमसीएच विंग में जिले के मऊ निवासी सरिता ने 23 सितंबर की रात्रि को नवजात को जन्म दिया था. सुबह करीब 8 बजे अस्पताल में कार्यरत शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर देवेंद्र मीणा को दिखाया तो नवजात के पीलिया के लक्षण नजर आए. केस स्टडी को देखकर डॉक्टर मीणा ने उसे ब्लड का इंतजाम करने को कहा. नवजात को तत्काल रूप से भर्ती करवाया गया और डॉक्टरों की टीम ने नवजात को भर्ती कर करीब 470 एमएलडी बदल दिया. डॉ देवेंद्र मीणा ने बताया कि अगर वह ऐसा नहीं करते तो नवजात की 24 घंटे के भीतर जान चली जाती. डॉक्टर देवेंद्र मीणा इससे पहले भी इसी तकनीक के माध्यम से तीन नवजातों की जान बचा चुके हैं.
100 बच्चों में से एक में होता है ऐसा मामला
एबीपी न्यूज़ से बातचीत करते हुए शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर देवेंद्र मीणा ने बताया कि ऐसे मामले तो पीलिया ग्रसित बच्चों में से एक के होते हैं, जिसका उपचार मेडिकल स्तर पर ही संभव होता है. क्योंकि छोटे अस्पतालों में डॉक्टर रिस्क नहीं लेना चाहता. लेकिन पूर्व में तीन मामलों में ब्लड बदलकर बच्चों की जान बचाई तो अनुभव के आधार पर इस नवजात का भी ब्लड बदलकर उसे नया जीवनदान दिया है. डॉक्टर देवेंद्र मीणा ने बताया कि मां का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव और नवजात का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव होता है तो नवजात में घटक एंटीबॉडी यानी रोग प्रतिरोधकता बनती है जिससे पीलिया बढ़कर कुछ घंटों में शरीर का खून खराब कर देता है जिससे नवजात की जान चली जाती है.
इस तकनीक से होता है उपचार
शहीद राजमल मीणा जिला अस्पताल के पीएमओ सतीश अग्रवाल ने बताया कि नवजात में बीमारी का पता लगते ही उसके ब्लड को पूरी तरह से दूसरे ब्लड में बदला जाता है. इस प्रक्रिया को डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है. जिस एंटीबॉडी की वजह से नवजात में पीलिया बढ़ रहा था, वह बच्चे के खून में मौजूद रहता है. इसके इलाज के लिए पहले आईवीईजी इंजेक्शन लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज स्तर पर होने वाले इस इलाज को लेकर हमारे जिला अस्पताल के डॉक्टरों की हिम्मत वह परिजनों की सहमति से बारां में कर पा रहे हैं. हमारा उद्देश्य से जिंदगी बचाना है.
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