Rajasthan Right To Health Bill: विधानसभा सत्र में 'राइट टू हेल्थ बिल' पेश होने से पहले डॉक्टरों ने मोर्चा खोल दिया है. राजस्थान आईएमए ने डॉक्टरों के सुझाव को बिल में शामिल करने की मांग की है. प्रमुख चिकित्सा शिक्षा सचिव के साथ वार्ता में आईएमए ने डॉक्टरों का पक्ष रखा और बिल में सुझाव को शामिल करने की मांग की. उसने चेतावनी दी है कि सुझाव को शामिल नहीं करने पर सरकार को तीखा विरोध झेलना पड़ेगा. आईएमए ने विरोध में रविवार को सुबह 8 से शाम 8 बजे तक चिकित्सा सेवाओं को सांकेतिक रूप से बंद का आह्वान किया गया है.
आनन-फानन हुआ प्रवर समिति बनी का गठन
राजस्थान आईएमए के पूर्व अध्यक्ष अशोक शारदा ने राइट टू हेल्थ बिल का स्वागत किया. उन्होंने कहा पूर्व में भी बिल विधानसभा के पटल पर रखा गया था. कमियों पर चर्चा के बाद राज्य सरकार ने बिल को प्रवर समिति में भेजना तय किया. आइएमए ने बिल में सुधारों को लेकर चिकित्सा विभाग को प्रारूप दिया था. 5 माह बीतने के बाद भी अभी तक ना तो प्रवर समिति बनी और ना ही दिए गए सुझावों पर कोई कार्रवाई हुई.
अब अचानक विधानसभा से बिल पास करवाने की मुहिम के तहत आनन-फानन प्रवर समिति बनी और आईएमए के विरोध को देखते हुए डॉक्टरों के साथ मीटिंग भी की गई. राज्य सरकार ने चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा की अध्यक्षता में 15 विधायकों की प्रवर समिति का गठन किया है. डॉक्टरों ने वार्ता के दौरान अधिकारियों को बिल की खामियां बताई और चेतावनी दी कि बिल को पास करने से पहले हितों का ध्यान नहीं रखा गया तो मजबूरन आंदोलन करने को बाध्य होना पड़ेगा.
डॉक्टरों को राइट टू हेल्थ बिल पर क्यों आपत्ति?
- निजी अस्पतालों में मुफ्त आपातकालीन इलाज करना अनिवार्य
- मेडिकल इमरजेंसी की कोई परिभाषा नहीं दी गई है
- सुविधा का लाभ उठाने के लिए मरीज लक्षणों को मेडिकल इमरजेंसी घोषित करेंगे
- मुफ्त आपातकालीन इलाज शुल्क प्रतिपूर्ति / भुगतान प्रक्रिया का उल्लेख नहीं
- निजी स्वास्थ्य प्रदाता, ऐसी सेवाओं की लागत को स्वयं वहन नहीं कर सकते हैं
- सभी प्रकार के चिकित्सा आपातकालीन रोगियों का इलाज करना अनिवार्य
- एमबीबीएस डॉक्टर प्रसूति या हार्ट अटैक के मरीज का इलाज कैसे करेगा
- सड़क दुर्घटना के मरीजों को मुफ्त परिवहन, मुफ्त इलाज और मुफ्त बीमा देना
- दूर-दराज के निजी अस्पताल कैसे एंबुलेंस की व्यवस्था करेंगे
- एंबुलेंस प्रदान करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से एजेंसियों का कर्तव्य होना चाहिए
- उचित रेफरल और परिवहन में वाहन, उपकरण, दवाएं, प्रशिक्षित कर्मचारी की लागत आती है
- निजी अस्पताल ऐसी सेवाओं का खर्च वहन नहीं कर सकते
- निजी अस्पतालों में मुफ्त ओपीडी और इलाज करना अनिवार्य
- निजी अस्पतालों पर मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का बोझ नहीं डाला जा सकता है
- राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण या जिला स्वास्थ्य प्राधिकरण को शिकायतों की जांच करने की शक्तियां
- समिति में ग्राम प्रधान और अन्य स्थानीय प्रतिनिधि डॉक्टरों के खिलाफ पक्षपाती हो सकते हैं
- डॉक्टरों और अस्पतालों को कोई अधिकार नहीं
- कार्यस्थल पर शारीरिक सुरक्षा और सुरक्षा का अधिकार नहीं
- सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने के बाद भी प्रतिकूल परिणाम से सुरक्षा का अधिकार नहीं
- डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की रोकथाम का कोई प्रावधान नहीं
- रोगियों और परिचारकों की तरफ से हिंसा के लिए कानून में सजा का प्रावधान नहीं
- तर्कहीन और अनुचित पैकेज दरें ठीक से गुणवत्तापूर्ण उपचार करना असंभव
सेवारत चिकित्सक संघ के महासचिव डॉ. दुर्गाशंकर सैनी का कहना है कि बिल से राजस्थान में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गिरावट और गायब होने का दीर्घकालिक प्रभाव होगा. राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं में शामिल होने के लिए निजी अस्पतालों पर अप्रत्यक्ष रूप से बाध्यता सहित कई और बिंदु व्यावहारिक नहीं हैं. डॉक्टर-रोगी संबंध और सामंजस्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. विशेषज्ञ डॉक्टरों के अन्य राज्यों में पलायन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा और आखिरकार आम जनता को नुकसान होगा.