Gangaur Puja Rajasthan: विवाहित स्त्रियों के लिए देवों के देव महादेव और शक्ति रूपा पार्वती से अखण्ड सौभाग्य का वर व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गणगौर (Gangaur) व्रत-उत्सव वर्ष भर में श्रेष्ठ है. चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया 4 अप्रैल को गणगौर पर्व मनाया जाएगा. पंडित सुरेश श्रीमाली ने बताया कि इसी दिन महादेव ने पार्वती को तथा पार्वती ने सभी विवाहित स्त्रियों को सौभाग्य का वर-आशीर्वाद दिया था.


वैसे होली के दूसरे दिन यानी चैत्र कृष्ण की प्रतिपदा से कुमारी, नव विवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती है. चैत्र शुक्ल द्वितीया को सिंजारा मनाया जाता है, इस दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं. फिर दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं. गौरी पूजन का यह त्यौहार भारत के सभी प्रदेशों में थोड़े-बहुत नाम भेद से पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाता है. राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्यौहार है. जयपुर में गणगौर पर विशेष कार्यक्रम होता है जिसमें गणगौर की सवारी देखने देश-विदेश के हजारों लोग आते हैं.


कुंवारी को मिले योग्य पति, विवाहिता को सौभाग्य
भारतीय हिंदु स्त्रियों के इस विशेष त्यौहार पर सुहागिने, नवविवाहिताएं अपने सौभाग्य, पति को अनुराग-प्रेम पाने तथा कुवारी लड़कियां वांछित योग्य पति मिलने की कामना पूर्ति के लिए दोपहर तक व्रत करती हैं. व्रत धारण से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं. इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी, चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है.


फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर उनकी स्थापना की जाती है और सुहाग की वस्तुएं-कांच की चूडिय़ां, महावर, सिंदूर, रोली, मेहन्दी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़ाया जाता है. चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन कर सुहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है. फिर भोग लगाने के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है. कथा के बाद गौरी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं. गौरीजी का पूजन दोपहर को होता है. इसके बाद एक बार ही भोजन कर व्रत का पारण किया जाता है. विशेष बात यह कि पुरूषों के लिए गणगौर का प्रसाद वर्जित है.


चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से होता है आरंभ
विवाहिताएं ससुराल में भी गणगौर का उद्यापन करती हैं, अपनी सास को कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है. साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं तथा दक्षिणा दी जाती है. व्यावल वर्ष यानी विवाह वाले वर्ष की गणगौर को प्रत्येक विवाहिता अपनी छः, आठ, दस अन्य अविवाहिताओं के वरणपूर्वक साथ लेकर ईसरगौर की पूजा करती हैं. उस सौभाग्यवती विवाहिता को मिलाकर कुल लड़कियों की संख्या सात, नौ या ग्यारह तक हो सकती है. यह पूजाक्रम चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरभ होकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक रहता है.


इस दिन प्रातःकाल की पूजा के बाद तालाब, सरोवर, बावड़ी या कुएं पर जाकर मंगलगान सहित गणगौर की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है. गणगौर की विदाई अथवा विसर्जन का दृश्य देखने योग्य होता है. उस समय कन्याएं एवं विवाहिताएं वस्त्राभूषणों को धारण कर सुसज्जित हो उसमें भाग लेती हैं. ईसर-गणगौर की प्रतिमाओं को जल में विसर्जित किया जाता है.


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