BSF Vehicle: देश में पहली बार रेगिस्तान में सीमा सुरक्षा बल द्वारा ऊंटों के साथ-साथ सैंड स्कूटर से देश की सीमाओं की रक्षा करनी शुरू की गई. राजस्थान के थार रेगिस्तान में जैसलमेर के शाहगढ़ इलाके में उंचे-उंचे रेतीले धोरों (शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स) से लगती पाकिस्तान की सीमा पर सीमा सुरक्षा बल इन सैंड स्कूटर के माध्यम से गश्त करती है. दरअसल ऊंट इतनी तेज गति से रेगिस्तान में किसी का पीछा नहीं कर सकते हैं. ऐसे में अमेरिकी कंपनी पोलारिस के ये 2 सैंड स्कूटर 4×4 गियर पावर में 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से धोरों पर भागते हैं. 


सैंड स्कूटर पर 4 से 6 जवान सवार हो सकते हैं
सीमा के एक कोने से दूसरी जगह का घंटों का सफर मिनटों में तय हो जाता है. जवान ऊंटों के साथ-साथ सैंड स्कूटर से देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं. इन सैंड स्कूटर पर 4 से 6 जवान अपने सामान और हथियार के साथ सवारी कर सकते हैं. इसमें लगी तेज लाइट से रात में भी गश्त करने में आसानी रहती है. पश्चिमी राजस्थान से जुड़े भारत-पाकिस्तान की दुर्गम सरहद पर रेतिले टीलों का समंदर है. थार के इंटरनेशनल बॉर्डर की सुरक्षा, सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ करती है. यहां बीएसएफ रेगिस्तान के जहाज यानि ऊंट की मदद से सरहद पर निगरानी रखती है. 


40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं सैंड स्कूटर
सरहद पर घुसपैठ आदि को रोकने और घुसपैठियों का तेज गति से पीछा करने में जब ऊंट नाकाम होता है तब काम आता है रेत के समंदर को हवा की रफ्तार से दौड़ने वाला सैंड स्कूटर. भारत की पहली रक्षा पंक्ति सीमा सुरक्षा बल के हाथ में है. ये सैंड स्कूटर रेत के समंदर में भी 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं. हाल ही में सीमा सुरक्षा बल ने ट्वीट करके इन सैंड स्कूटर की तारीफ की है. सैंड स्कूटर के जरिए घुसपैठियों पर नकेल कसी जा रही है.


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सैंड स्कूटर के बारे में बीएसएफ ने ट्विटर पर लिखा
बीएसएफ राजस्थान के ट्विटर पर लिखा 'थार' के अथाह रेगिस्तान में भारत-पाकिस्तान सरहद पर BSF की पेट्रोलिंग की स्पीड बढ़ाने में मदद करता है सैंड स्कूटर. हालांकि ऐसा नहीं है कि यहां ऊंटों से गश्त करना बंद कर दिया गया है, बल्कि ऊंट तो इनकी मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है, लेकिन सरहद पर तेज गति से भागने और पीछा करने में एक ओर जहां ऊंट नाकाफी साबित होता है, वहीं इन सैंड स्कूटर की मदद से वो काम बहुत जल्दी हो जाता है जिससे देश की सुरक्षा में सेंध नहीं लग पाती है.


1966 में ऊंटों के BSF में शामिल किया गया 
भारत-पाकिस्तान की सरहदी सीमा पर रेगिस्तान में ऊंटों से गश्त होती आई है. साल 1966 में ऊंटों को ट्रेनिंग देकर BSF को सौंपे गए थे. तभी से लेकर आज तक रेगिस्तान के दुर्गम इलाकों में जवानों के आने-जाने और गश्त पेट्रोलिंग आदि में सबसे ज्यादा ऊंट ही काम आते हैं. मगर सीमा के दुर्गम इलाकों में जहां रेगिस्तान में चलना भी दूभर है वहां घुसपैठ की आशंका के चलते तेज गति से भागकर एक जगह से दूसरी जगह जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था. तब साल 2015 में बीएसएफ ने इन दुर्गम इलाकों के लिए अमेरिकी कंपनी पोलारिस से 36-36 लाख की कीमत में 2 सैंड स्कूटर खरीदे थे.


2015 में BSF के इलाकों में स्कूटर दिए जाने की कवायद शुरू
गौरतलब है कि BSF के जवानों को सरहद की सुरक्षा के दौरान विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था और पेट्रोलिंग को बेहतर बनाने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से साल 2015 में BSF के सभी इलाकों में स्कूटर दिए जाने की कवायद शुरू की थी. विपरीत हालातों में सीमा पर जवानों को मिल रही नित नई चुनौतियां को देखते हुए केंद्र सरकार ने ये निर्णय लिया.


72 लाख में खरीदे 2 सैंड स्कूटर  
सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था को और ज्यादा मजबूत करने, सीमा पर तस्करों और घुसपैठियों को पीछा कर पकड़ने के साथ-साथ सरहद की रखवाली में और ज्यादा पैनापन लाने के लिये केन्द्र सरकार ने सुरक्षा बलों को चार पहियों के विदेशी स्कूटर और विदेश गाड़ियां मुहैया करवाने की योजना बनाई. अमेरिका, चीन सहित कुछ विदेशी कंपनियों के चार पहियों के स्पेशल स्कूटर और स्पेशल गाड़ियों के ट्रायल लिए थे. इसके बाद अमेरिकी कंपनी पोलारिस का ट्रायल सफल रहने पर 2 सैंड स्कूटर की खरीद करीब 72 लाख रुपए में की गई. अब ये दोनों सैंड स्कूटर सीमा सुरक्षा बल की विशाल फौज में जवान के रूप में जैसलमेर के शाहगढ़ बल्ज के रेतीले धोरों पर लगातार चल रहे हैं.


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