Ukraine-Russia Crisis: रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का असर अब भारत में भी नजर आने लगा है. बढ़ती महंगाई के आगे आम आदमी के घर बनाने का सपना टूटता नजर आ रहा है. लोहे के सरिए की जनवरी 2022 से लगाकर मार्च 2022  यानि मात्र 3 महीने में लोहे के सरिए कीमतें दुगनी हो चुकी है. लोहे के सरिए की कीमत अब आसमान को छू रही है. लोहे के सरिए का ईमपोर्ट विदेशों से होता है. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण शिपमेंट भी कई गुन महंगा हो गया है. बाजार से रॉ मेटेरियल एकदम गायब हो गया है. जिसके चलते लगातार कीमतें बढ़ रही है. अगर यह युद्ध और आगे चला तो दो से 3 गुना कीमतें और बढ़ने का अनुमान है. सभी तरह के विकास कार्य भी इस महंगाई के चलते ठप होते नजर आ रहे हैं. बड़े-बड़े ठेकेदारों ने अपने काम की स्पीड को कम कर दिया है या फिर उन्हें कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया है.


और बढ़ सकते हैं दाम


जोधपुर के खंडेलवाल मार्केटिंग लोहे के सरिए के व्यापारी विकास खंडेलवाल ने बताया कि जनवरी 2022 के दौरान लोहे के सरिए 42 से 46 हजार प्रति टन थी जिसकी फरवरी 2022 में कीमतें 20 फीसदी बढ़ गई और ₹55000 से ₹57000 प्रति टन पर जा पहुंची. फरवरी में 20 फीसदी के करीब फिर बढ़ी जिसके कारण 55000 से लगाकर ₹68000 प्रति टन की कीमत हुई. मार्च 2022 की शुरुआत में 67 से ₹77 हजार प्रति टन हो गई. युद्ध को 13 दिन हुए हैं. आज मौजूदा स्थिति में 90 हजार प्रति टन की कीमत हो गई है जो कि डबल कीमत मानी जा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि देश में लोहे का इंपोर्ट किया जाता है. युद्ध के कारण शिपमेंट महंगे हो गए हैं और रॉ मेटेरियल बाजार से गायब हो गया है. जिसके चलते आने वाले दिनों में और कीमतें बढ़ने का अंदेशा है. उद्यमियों की सांसें उखड़ने लगी है. करोड़ों रुपए के आर्डर कंपनियों ने ले रखी है लेकिन तैयार माल कैसे डिलीवरी करना है इसका लोहे पर आधारित इकाइयों के पास कोई हल नहीं है.


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विकास के सारे काम ठप 


मकान और बिल्डिंग निर्माण का काम करने वाले ठेकेदार राकेश भाटी ने बताया कि हम ठेकेदारों ने काम को बंद कर दिया है क्योंकि लोहे के सरिए की कीमत जो हमने लगा रखी थी उससे दोगुनी कीमत में बाजार से खरीद कर हम कैसे लगाएं. स्थिति ऐसी हो रही है कि बाजार से माल बिल्कुल गायब हो रहा है. इस महंगाई के चलते हमारे जो रेगुलर स्टाफ हैं वह भी हमको छोड़कर चले गए हैं. बिल्डिंग में मकान निर्माण का काम करने वाले राकेश भाटी ने बताया कि जो भी निर्माण का काम होता है वह एक-दो दिन का नहीं होता है बल्कि 6 महीने या साल भर चलता है. ऐसे में विकास के सारे काम भी ठप हो गए हैं.


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