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Rajasthan News: राजस्थान के बारां में प्रसिद्ध है डोल यात्रा मेला, जानें क्या है इतिहास

Bundi News: राजस्थान एवं पड़ोसी मध्य प्रदेश के दूरदराज क्षेत्रों तक ख्याति प्राप्त कर चुके बारां के लोकजीवन का प्रतीक, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत प्रसिद्ध डोल मेला शुरू होने वाला है

Bundi News: राजस्थान (Rajasthan) के हाड़ौती संभाग के बारां जिले(Baran District) को अनाज का कटोरा कहें या पांच नदियों को बहाने वाला मिनी पंजाब.  भगवान विग्रह की डोल शोभा यात्रा को देखकर हाड़ौती की मथुरा कहें या लोकपर्व तेजा दशमी को देखकर लोक संस्कृति का प्रतीक रामदेवर कहें.  इन सभी का मिलाजुला रूप कोटा-बारां, भोपाल, जबलपुर रेल लाइन के बीच स्थित यह क्षेत्र है. पार्वती, परवन और कालीसिंध सहित कुछ अन्य छोटी नदियों के मैदानों के बीच स्थित यह क्षेत्र विभिन्न आपदाओं के बाद भी लड़ना जानता है.  

पर्व त्यौहारों  के माहौल में संघर्षों को भूलकर मधुर मुस्कान बिखेरना जानता है. हाड़ौती का ही नहीं राजस्थान एवं पड़ौसी मध्य प्रदेश के दूरदराज क्षेत्रों तक ख्याति प्राप्त कर चुके बारां के लोकजीवन का प्रतीक, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत प्रसिद्ध डोल मेला शुरू होने वाला है. इस वर्ष भी भाद्रपद शुक्ला जलझूलनी ग्यारस को शहर के विभिन्न पांच दर्ज मन्दिरों के विमानों (डोल) में विराजे भगवान की निकलने वाली शोभायात्रा के साथ 7 सितम्बर से शुरु हो जाएगा. एक पखवाड़े तक चलने वाले इस मेले को भव्यता देने की जिम्मेदारी नगर परिषद ले रही है.आज मंगलवार को बारां शहर समेत पूरे राजस्थान में डोल यात्रा निकाली जाएगी, जिसके साथ मेले की शुरुआत होगी.

बारां में डोल मेला कब से लगता है

बड़े-बुजुर्ग बस इतना कहते हैं कि उन्होने जबव से होश संभाला  है तब से डोल मेला देख रहे हैं. वे बताते हैं कि 80-90 साल पहले बारां का यह डोल मेला केवल दो-तीन दिनों के लिए ही लगता था.  गांव की दुकानों का इस्तेमाल हाट जैसे स्टालों, टेंटों में किया जाता था. लेकिन समय के साथ यहां के लोगों की श्रद्धा बढ़ती गई और आज यह मेला एक पखवाड़े तक लगता है. कहा जाता है कि इस मेले में कोटा संभाग के अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कई नगर क्षेत्रों के व्यापारी इस मेले से खरीद-फरोख्त के लिए आते हैं. इतिहासकार पुरुषोत्तम पारीक बताते हैं कि बूंदी का पहला तीज मेला शुरू होता है. इसके साथ ही राजस्थान में शोभा यात्रा और मेले शुरू हो जाते हैं. बूंदी के तीज मेले के ठीक बाद बारां का डोल मेला आता है और फिर पुष्कर का प्रसिद्ध मेला शुरू होता है.

बारां के डोल मेले का आकर्षण देव विमानों की शोभायात्रा 

मेले का अपना एक आकर्षण है, लेकिन बारां के डोल मेले का आकर्षण शहर भर के देव विमान (डोल) की विभिन्न जातियों के मंदिरों से  गाजे-बाजों से निकलने वाली शोभायात्रा होती है. इस शोभयात्रा को देखने के लिए लाखों पुरुष, महिलाएं, बच्चे, युवा की भी भीड़ का उमड़ता सैलाब होता है. विमानों की शोभयात्रा के सामने भजन कीर्तन की मण्डलियां होती हैं. उसके आगे सहस्त्रो युवकों एवं अखाड़ेबाजों के मल्ल तथा शारीरिक कौशल के अनूठे हैरत अंगेज कर देने वालें करतबों को देखकर तो दर्शनार्थी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं. कहा जाता है कि अखाड़ों के करतब दिखाने की यह परंपरा डोल मेले से शुरू हुई थी. इसका उद्भव 1940-42 काल का बताया जाता है.

दर्शनार्थियों की भीड़ का सैलाब 

डोल शोभा यात्रा के दौरान बारां शहर के बाजारों तथा मकानों, दुकानों की छतों पर काफी तादाद में जन समूह शोभा यात्रा के दर्शनार्थ एकत्र हो जाता है. बाजारों में तो तिलभर भी जगह नहीं होती. धक्का मुक्की, भीड़ की रेलमपेल बनी रहती है. बुजुर्गवार बताते हैं कि श्रीजी एवं रघुनाथ जी के विमान गले मिलने के बाद जब रघुनाथ मन्दिर का विमान आगे हो जाता है तो स्वतः रास्ता भी हो जाता है. इसे लोग भगवान की कृपा मानते हैं फिर अन्य मन्दिरों के विमान कतारबद्ध पीछे चलते हैं. शोभा यात्रा में उंच-नीच की निरर्थक भावना किसी के मन में परिलक्षित नहीं होती.

डोल मेला का यह है इतिहास 

बारां में स्थित कल्याणराय जी का मंदिर श्रीजी, जहां से शोभायात्रा  शुरू होता है, वह 600-700 साल पुराना बताया जाता है. इतिहास में उल्लेख है कि बूंदी के महाराव सुरजन हाड़ा ने अकबर को रणथंभौर का किला सौंप दिया था. उस समय वहां से 2 देव मूर्तियों को लाया गया था, उनमें एक रंगनाथ जी की तथा दूसरी कल्याणराय जी की थी. रंगनाथ जी की मूर्ति को बूंदी में स्थापित किया गया और कल्याणराय जी की मूर्ति को बारां लाया गया था. बूंदी की तत्कालीन रानी ने यहां श्रीजी का मंदिर बनवाया और मूर्ति को यहां स्थापित किया.

मन्दिर से सटी है मस्जिद, देती है साम्प्रदायिक सद्भाव का पैगाम

कल्याणराय के श्रीजी मंदिर के बगल में एक मस्जिद भी है, जो जामा मस्जिद के नाम से प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि इस मस्जिद को मंदिर के वर्षों बाद बूंदी की रानी ने बनवाया था. उस समय बारां जिले का शाहबाद उपखण्ड औरंगजेब की छावनी था. रानी को इस बात का अंदेशा था कि मुस्लिम सम्राट उनके परिवार द्वारा बनवाए गए श्रीजी के मंदिर को नुकसान पहुंचाएगा. इसलिए उन्होंने मंदिर की रक्षा के लिए उक्त मस्जिद का निर्माण कराया. आज यह मंदिर-मस्जिद डोल मेला और शोभायात्रा के दौरान  साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी देता है.

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