Rajasthan में एक किलो गाय के गोबर की कीमत 15 हजार रुपए, सुनकर दंग रह गए लोग
Kota: आईआईटियन डॉक्टर सत्य प्रकाश वर्मा ने कृषि महोत्सव में बताया कि वह गोबर को खरीद कर उससे कई तरह के केमिकल बनाते हैं. इस केमिकल के जरिए सेना के जवानों की वर्दी भी बन सकती है.
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Rajasthan News: कोटा में आयोजित हो रहे कृषि महोत्सव में देश के एक से बढकर एक स्टार्टअप्स आए हैं. इनमें एक स्टॉल चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां बताया जा रहा है एक किलो गोबर को ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो उसकी कीमत 15 हजार तक पहुंच जाती है. इसमें निकलने वाले पदार्थ चौंकाने वाले कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. ये दावा आईआईटियन डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा ने किया है. इन्होंने कहा कि वो गोबर से केमिकल बनाकर विभिन्न रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. इन्होंने एक वेबसाइट भी बना रखी है, 'गोबर वाला डॉट कॉम' जो गोबर के फायदे बता रही है. इनके अनुसार एक किलो गोबर की कीमत सही मायने में अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर 15 हजार तक पहुंच जाती है.
आईआईटियन डॉक्टर सत्य प्रकाश वर्मा ने बताया कि वह गोबर को खरीद कर उससे कई तरह के केमिकल बनाते हैं. इस केमिकल के जरिए सेना के जवानों की वर्दी भी बन सकती है. डॉ. सत्य प्रकाश ने दावा किया है कि नैनोसैलूलोज के जरिए वे फाइबर बना रहे हैं, जिसका उपयोग सैनिकों की वर्दी बनाने में किया जा रहा है. इसमें हेलमेट से लेकर जूतें तक शामिल हैं. उनका दावा है कि ये यूनिफॉर्म आमतौर पर सैनिकों की वर्दी से काफी कम वजनी व ज्यादा मजबूत भी होती हैं. ये पसीने को भी सोख लेती है. इसके अलावा अगर सैनिक घायल हो जाता है, तो इस यूनिफार्म की वजह से ब्लड क्लॉटिंग आसानी से हो जाती है. इस तरह यह एक टिशू रीजेनरेशन शुरू कर देती है. इससे जवान के जिंदा रहने की मियाद बढ़ जाती है.
वाटर प्रूफ वैदिक पेंट भी बना रहे
डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा ने कहा कि इस अल्फा नैनोसैलूलोज का उपयोग वैदिक पेंट बनाने में किया जाता है. ये तीन तरह की पेंटिंग में उपयोग में लिए जाते हैं. इनमें वॉल पुट्टी, वॉल प्राइमर और इमर्शन होता है. इसे प्लास्टिक पेंट भी कहा जाता है. वॉल पुट्टी करने के बाद किसी तरह की पेंट की आवश्यकता नहीं रहेगी और लम्बे समय तक यह खराब भी नहीं होता है. सबसे बड़ी बात ये वॉटर प्रुफ होता है. बायो फर्टिलाइजर बनाने में भी नैनोसैलूलोज का उपयोग किया जाता है. इसके जरिए रेगिस्तान की रेतीली जमीन को भी उपजाऊ बनाया जा रहा है. नैनोसैलूलोज की निश्चित मात्रा को रेगिस्तान की मिट्टी पर डाला जाता है. इसके बाद वह जमने लायक हो जाती है.
रेगिस्तान भी बन रहा उपजाऊ
उन्होंने कहा कि गोबर से केमिकल प्रोसेस के जरिए नैनोसैलूलोज तैयार कर रहे हैं. यह हजारों रुपये किलो बिक रहा है. इसके कई अन्य उपयोग भी हो रहे हैं. उनका दावा है कि नैनोसैलूलोज निकालने के बाद गोबर में बचने वाला लिक्विड एक गोंद की तरह हो जाता है, जिसे लिग्निन कहते हैं. यह लिग्निन प्लाई बनाने के काम में लिया जाता है और 45 रुपये किलो तक बिकता है. उनका कहना है कि उन्होंने लम्बे समय तक शोध किया उसके बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं. एक किलो गोबर से करीब 6 से 8 और 10 ग्राम तक भी नैनोसैलूलोज निकाला जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट में नैनोसैलूलोज की कीमत 10 से लेकर 40 डॉलर प्रति ग्राम है. इस हिसाब से देखा जाए तो करीब एक किलो गोबर से से 20 हजार रुपये की आय हो सकती है.
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