Lumpy Skin disease: लंपी वायरस का आयुर्वेद और होम्योपैथी से कर रहे ट्रीटमेंट, लड्डू खिलाकर कर हो रहा गायों का इलाज
Udaipur: आयुर्वेदिक विभाग की अधिकारी शोभा लाल औदीच्य ने कहा कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेदिकपद्धति कारगर है. जो जानवरों को उस बीमारी से लड़ने की क्षमता देता है.
Udaipur News: राजस्थान(Rajasthan) में लंपी वायरस(Lumpy Virus) का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. इसके लिए राजस्थान सरकार(Rajasthan Governement) और जिला स्तर के प्रसाशनिक अधिकारी लगातार इसकी रोकथाम में लगे हुए हैं. रोग से ग्रसित गायों को आइसोलेशन सेंटर में अलग भी रखा जा रहा है. इन सभी के बीच आयुर्वेदिक विभाग गायों का अलग तरीके से उपचार कर रहा है. बड़ी बात यह कि इसमें एक पशु के सिर्फ 13 रुपए में उपचार हो रहा है. यह उपचार वैसा ही है जैसा कोरोना के समय इंसान ने आयुर्वेदिक पद्धति से अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई थी. चलिए जानते हैं यह सस्ता उपचार क्या है.
13 रुपए में लड्डू
आयुर्वेदिक विभाग की अधिकारी शोभा लाल औदीच्य ने कहा कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेदिकपद्धति कारगर है. जो जानवरों को उस बीमारी से लड़ने की क्षमता देता है. इसके तहत विभाग द्वारा आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार किया जा रहा है. इसमें एक जानवर के एक दिन के इलाज का 13-14 रुपये खर्च होता है. इसमें गिलोय, अश्वगंधा, हल्दी, अजवायन, सेगारी नामक, काली मिर्च, चारोली का चूर्ण बनाया जाता है और फिर शहद में घी या तेल मिलाकर लड्डू बना लिया जाता है. गाय को जब यह लड्डू खिला रहे हैं तो वह भी अच्छे से खा रही है.
होम्योपैथी पद्धति से भी उपचार
जिला कलेक्टर ताराचंद मीणा ने बताया कि चिकित्सकों ने अनुसार होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के अन्तर्गत आयोडाइड ऑफ पोटेशियम से बनने वाली काली आयोद दवा लम्पी वायरस के शुरूआती लक्षणों में कार्य करती है. यह दवा तब दी जानी चाहिए जब मवेशी के लम्प (गांठ) बनी हो अर्थात् संक्रमण तुरंत हुआ है. ऐसी स्थिति में इस दवा की एक डोज़ एक बार कि लिए पर्याप्त होती है. इसी प्रकार यूरेनियम नाइट्रीकम दवा उस स्थिति में दी जाती है जब बीमारी का कारण गन्दगी, पेशाब में दुर्गन्ध हो,अल्सर में बदबू हो, ऐसी स्थिति में इस दवा की एक डोज़ पर्याप्त होता है.
एसिड नाइट्रीक दवा की एक डोज़ मवेशी के मुंह व गले में छाले के लिए एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है. जब मवेशी के घाव में अत्यंत दुर्गन्ध हो और पाँवों में सूजन हो, ऐसी स्थिति में अमोनियम नाइट्रीकम दवा के एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है. जब मवेशी को सांस लेने में परेशानी हो तथा मवेशी की स्थिति गंभीर हो, ऐसी स्थिति में नाइट्रोजिनम ऑक्सीजिनेटम दवा की एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है. जब मवेशी के मुंह व नाक से लार बह रही हो तथा चलने फिरने में कम्पन हो तो अमाइल नाइट्रोसम की इस दवा का एक डोज़ पर्याप्त होता है.
इसके साथ ही जब मवेशी को तेज़ बुखार हो, लिम्फ ग्रंथियों में सूजन हो , मुंह से बहुत लार आ रहा हो, नाक व आँख से जलन करने वाला पानी आ रहा हो और मवेशी के शरीर पर कई अंगों में बड़े घाव हो जिसमें से मवाद आ रहा हो तब उन्हें मर्करी ग्रुप दवा दी जाती है. इसके अलावा जब मवेशी को तेज बुखार हो, त्वचा पर बड़ी-बड़ी गांठें हों, ग्रंथियों में सूजन हो, नाक से हरा गाढ़ा पानी आ रहा हो और घाव हो, तब थूजा दवा का उपयोग करना चाहिए. जब मवेशी के शरीर पर बड़े-बड़े मवाद वाले घाव हो गए हों, तब वेरियोलिनम दवा लाभकारी है एवं यह वायरस संक्रमण रोकने की एक महत्वपूर्ण औषधि है. यह सभी होम्योपैथी की दवा एक बार ही दी जानी चाहिए एवं सिर्फ एक ही प्रकार की दवा देनी चाहिए. दवा की 5-10 बूंद मवेशी के लिए पर्याप्त होती है.
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