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Bharatpur: गंगा मां के मंदिर में श्रद्धालुओं की असीम आस्था, गंगा दशहरे पर उमड़ता है भक्तों का सैलाब, जानें इतिहास
राजस्थान के भरतपुर में उत्तर भारत का एकमात्र गंगा मां का मंदिर स्थित है. ऐतिहासिक गंगा मैया मंदिर को संतानोत्पत्ति के बाद महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में बनवाया था.
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श्री गंगा मां मंदिर, भरतपुर
भरतपुर: आज गंगा दशहरा पूरे देश में मनाया जा रहा है क्योंकि आज के दिन ही गंगा मैया का उद्गम पृथ्वी पर हुआ था. आज के दिन गंगा स्नान करना और दान दक्षिणा करना बेहद शुभ माना जाता है. वैसे पूरे उत्तर भारत में गंगा मैया का एकमात्र मंदिर राजस्थान के भरतपुर में स्थित है. कहा जाता है कि संतान नहीं होने पर भरतपुर के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने हरिद्वार जाकर गंगा मैया से मन्नत मांगी थी की उनकी कोई संतान नहीं है. जिसके हाद गंगा मां ने उनकी पुकार सुनी और जब संतान हो गई तो महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में भरतपुर में गंगा मैया के मंदिर का निर्माण का कार्य शुरू कराया था. तब से लेकर आज तक गंगा मैया के मंदिर में भक्तों को सुबह और शाम गंगा जल प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
मंदिर में 1937 में गंगा मैया की मूर्ति पदस्थापित की गई थी
बता दें कि राजस्थान के भरतपुर जिले में गंगा माता का काफी महत्व है. आज गंगा दशहरा का पर्व है और इसकी महत्ता राजस्थान के भरतपुर में ऐतिहासिक काल से रही है. यहां के राजाओं में गंगा मैया के प्रति अथाह श्रद्धा और भक्ति थी. जिसके चलते भरतपुर के महाराजा बलबंत सिंह ने 1845 में यहां गंगा मैया के मंदिर की नींव रखी और उसके बाद पांच पीढ़ियों तक मंदिर बनाने का काम चलता रहा. अंतिम शासक महाराजा सवाई वृजेन्द्र सिंह के कार्यकाल में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ था. उन्होंने मंदिर के पूर्ण बनने पर यहां 1937 में गंगा मैया की मूर्ति पदस्थापित की थी. गंगा मैया के मंदिर में रोज सुबह और शाम को पूजा अर्चना व आरती की जाती है. गंगा मैया को गंगा जल से स्नान कराया जाता है फिर उस गंगा जल को प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटा जाता है.
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मंदिर में गंगा जल रखने के लिये बना है अलग से हौज
मंदिर में गंगा जल के लिए एक हौज बना हुआ है जिसमे 15 हजार लीटर गंगा जल भरता है जो हर वर्ष गंगा नदी से यहां लाया जाता है. यह जल करीब एक वर्ष तक प्रसाद वितरण में चलता है फिर जब हौज में एक फुट गंगा जल शेष रहता है तो फिर से गंगा नदी से गंगा जल मंगवाया जाता है.
लोहागढ़ किले के सामने ही गंगा मां के भव्य मन्दिर का निर्माण क्यों हुआ
भरतपुर के राजा बलवंत सिंह ने उनके पुत्र के जन्म होने पर गंगा मां के मंदिर का निर्माण लोहागढ़ किले के बिलकुल सामने कराया था जिससे सुबह के समय रोजाना जागने पर राजाओं व् रानी को सबसे पहले महल से ही गंगा मैया के दर्शन हो सकें. यहां के राजाओं में गंगा मैया के प्रति विशेष श्रध्दा थी. कहा जाता है की गंगा दशहरा के दिन गंगा मैया का पृथ्वी पर पदार्पण हुआ था जिसके चलते आज के दिन हर वर्ष गंगा दशहरा मनाया जाता है.
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गंगा मैया मंदिर के महंत का क्या कहना है
गंगा मां मन्दिर के महन्त माधवेन्द्र शर्मा,ने बताया की भरतपुर में गंगा दशहरा बड़े ही धूम - धाम से मनाया जाता है. आज के दिन तरह - तरह के दान किये जाते हैं. गरीबों को दान कर पुण्य प्राप्त करते है. महन्त ने कहा की चाहे कोई कितनी भी दूर हो गंगा महारानी के नाम लेने से और गंगा जल का प्रसाद ग्रहण करने से ही उसका उद्धार हो जाता है. उन्होंने बताया की भरतपुर के जितने भी राजा हुये उनके इष्ट बदलते रहे है किसी राजा के बिहारी जी ईष्ट रहे तो किसी राजा की कैला देवी रही तो किसी ने लक्ष्मण जी को अपना ईष्ट माना. भरतपुर के महाराजा बलवन्त सिंह के संतान नहीं होती थी तो महाराजा बलवन्त सिंह ने हरिद्वार जाकर मन्नत मांगी थी की अगर मेरी संतान हो जाएगी तो में अपने राज्य में आपका भव्य मंदिर का निर्माण कराऊंगा. महाराजा बलवन्त सिंह के पुत्र जसवन्त सिंह का जन्म हुआ तो महाराजा बलवंत सिंह ने 1845 में इस गंगा मंदिर की नींव लगवाई थी.
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मुस्लिम कलाकार ने बनाया था माँ की मूर्ति को
महंत ने बताया की गंगा मैया की मूर्ति को एक मुस्लमान कलाकार ने बनाया था. मूर्ति का निर्माण होने बाद कालकर ने मूर्ति को महराजा बलवंत सिंह को दिखाया तो महाराजा बलवन्त सिंह ने गंगा मां की मूर्ति को पूरा बता दिया लेकिन किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया की गंगा मां की मूर्ति के नाक और कान में आभूषण पहनाने के लिए छिद्र नहीं किये गए थे. जब मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का समय आया तब उस मुस्लमान कलाकार को बुलाया गया की मां की मूर्ति के नाक और कान पर छिद्र कर दिए जाए. मुस्लिम कालाकार को कहा गया था कि सोने की अशर्फी एक छिद्र करने पर दिए जाएंगे तो उस मुस्लमान कलाकार ने कहा चाहे आप एक हजार अशर्फी दे दें मैं अब मां की मूर्ति पर टांकी नहीं चलाऊंगा मैंने इन्हे अपनी मां मान लिया है. गंगा मां में मुस्लमान कलाकार की श्रद्धा देखकर हर कोई हैरान रह गया था.
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शंभू भद्रएडिटोरियल इंचार्ज, हरिभूमि, हरियाणा
Opinion