Rajasthan News: हर किसी को शिक्षा की जरूरत है. जितने ज्यादा लोग शिक्षित होंगे उतना ही समाज का विकास होगा और समाज आगे बढ़ पाएगा. शिक्षा विभाग उन हजारों भामाशाह का कर्जदार रहेगा जिन्होंने अपनी कठोर मेहनत से जीवन भर की कमाई स्कूलों के विकास, विद्यार्थियों को शैक्षिक, खेलकूद सुविधाओं के लिए खर्च की है. इसी उद्देश्य से अपना पूरा जीवन शिक्षा को समर्पित करने वाले जायल गांव के पूर्णाराम गोदारा को हर कोई जगत मामा कहते हैं. आइए जानते हैं क्यों यहां के लोग उन्हें 'जगत मामा' कहते हैं.
बच्चों के पास होने पर बांटते थे रूपये
आज पूरी दुनिया जहां पैसे के पीछे दौड़ रही है वहीं जगत मामा ने बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए रुपए को पानी की तरह बहा दिया है. जगत मामा के सिर पर एक धुन सवार थी कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को सभी तरह की सुख सुविधाएं मिले. साथ ही बच्चों के पास होने पर बच्चों में रुपए बांटते थे और उनको हलवा-पूरी भी खिलाते थे.
उनके स्कूल में दाखिल होते ही बदल जाता था माहौलRajasthan
क्षेत्र के लोग बताते हैं कि सिर पर दूध के रंग का साफा, अपने हाथों में नोटों से भरा थैला दबाए जगत मामा जब लाठी के सहारे तेजी से चलते हैं तो हर कोई उन्हें साधारण व्यक्ति ही समझता है. लेकिन जगत मामा दिल के बड़े ही अमीर थे. प्यार के सागर से भरे रहते थे. उनके चेहरे पर झुर्रियां और सफेद बाल उनके बुढ़ापे की कहानी कहते हैं. लेकिन मामा के स्कूल में दाखिल होते ही उस विद्यालय का माहौल बदल जाता था.
पूर्णाराम गोदारा का देहांत 19 जनवरी को हो गया था
नागौर जिले जायल के राजोदा गांव के रहने वाले 90 वर्षीय पूर्णाराम गोदारा एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें आज हर कोई याद कर रहा है. क्योंकि पूर्णाराम गोदारा का देहांत 19 जनवरी को हो गया था. क्षेत्रवासी उन्हें जगत मामा के नाम से पुकारा करते थे. वह भी जिससे भी मिलते उसे भानु कहकर पुकारा करते थे.
बच्चों को देते थे प्रोत्साहन
हर कोई बच्चा जगत मामा से इतना प्यार करता था कि परीक्षा का परिणाम आते ही जगत मामा के पास सबसे पहले पहुंचता था क्योंकि, जगत मामा परीक्षा परिणाम देखने के बाद बच्चों को 100 रूपये और 500 रूपये के कड़क नोट देकर उन्हें प्रोत्साहन देते थे.
बच्चों और शिक्षा के लिए समर्पित रहा जीवन
राजोद गांव के रहने वाले पूर्णाराम गोदारा को जगत मामा के नाम से जाना जाता है. इनका पूरा जीवन ही बच्चों और शिक्षा को समर्पित रहा. उनके एक भाई और दो बहनें थी. पूर्णाराम की शादी होने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि मेरा जीवन तो बच्चों और शिक्षा को समर्पित है और वह अपनी पत्नी को लेकर भी नहीं आए. अकेले ही अपना पूरा जीवन शिक्षा और बच्चों के बीच बिताया.
25 साल की उम्र में 300 बीघा जमीन दान की थी
जब वह 25 साल के हुआ करते थे तो उस दौरान उन्होंने अपनी 300 बीघा जमीन मवेशियों के लिए दान कर दी थी. बच्चों की शिक्षा के लिए कई दानदाताओं के पास जाकर रुपए अर्जित करते थे. वो उस पैसे को स्कूलों में विकास कार्यों और बच्चों में बांट देते थे.
ये भी पढ़ें-
Rajasthan के राज्यपाल कलराज मिश्र का ट्विटर अकाउंट हैक, अरबी भाषा में किया गया ट्वीट