राजस्थान प्राच्य विद्या पीठ में प्राचीन, दुर्लभ, सचित्र हस्तलिखित 1लाख 24 हजार ग्रंथों का अमूल्य संग्रह है. वर्षों तक यह खजाना आम व्यक्ति की पहुंच से दूर करता था, परन्तु अब इस दुर्लभ सांस्कृतिक धरोहर की पहुंच आम-जन तक हो सके इसको लेकर एक आर्ट गैलेरी में इन ग्रंथों व चित्रों को सुसज्जित किया गया है. राजस्थान प्राच्यां विद्यापीठ जोधपुर निदेशालय में 41 हजार पांडुलिपि उपलब्ध है राजस्थान के भरतपुर, जयपुर कोटा ,उदयपुर सहित छह जगह केंद्र खोले गए हैं या यूं कहें कि एक अमूल्य खजाना जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर तह पौराणिक पांडुलिपियों में ज्ञान का ऐसा भंडार है. जो कि अब आम लोगों तक पहुंचेगा शोधकर्ता इस पर काम करके इसको आगे बढ़ा सकते हैं इस गैलरी में स्वर्ग से नर्क तक की चित्रण, 324 फीट लंबी सचित्र जन्मपत्रिका व सबसे पुराना ग्रंथ 1154 ईस्वी का धवानी लोचन उपलब्ध है हाथियों की चिकित्सा पद्धति को लेकर भी इस पांडुलिपि बनी हुई है जिसमें बताया गया कि कौन सा हाथी किस राजा के लिए शुभ है और किस हाथी को कैसा भोजन देना चाहिए कौनसी जाति का हाथी है इसका भी पूरा विवरण है.


लघुचित्र शैलियों के कई ग्रन्थ भी हैं संग्रहालय में है सुरक्षित
पाल राजपूत, पश्चिमी भारतीय, जम्मू कश्मीर, दक्षिण भारतीय तथा राजस्थान के स्थानीय शासकों के काल में पल्लवित स्थान विशेष की लघुचित्र शैलियों के कई ग्रन्थ विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित हैं. इसके अलावा द्वित्रिपचपाठात्मक दुर्लभ लेखन शैली के कई निदर्शन स्वरूप ग्रन्थ भी हैं. ताड़ भोज, काष्ठ, पट एवं कागदीय आधारों पर भी कई हस्तलेख हैं.


विश्वविख्यात आर्षरामायण एवं गीत गोविन्द, (मेवाड़ चित्र शैली के उत्कृष्ट निदर्शन), वि.सं. 1485 का कागदीय सोमसुन्दरसूरि के आदेश से लिखित चित्रित कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथा, उत्तराध्ययनसूत्र एवं लोकप्रकाशादि (पश्चिमी भारतीय शैली), चर्मपत्रीय आर्य महाविद्या (पाल शैली), सूक्ष्माक्षरीय भागवत गीता के कई नमूने, दक्षिणी भारतीय एवं उत्तर भारत की कतिपय शैलियों के निदर्शन हैं.




विभिन्न खरडा ग्रन्थों में जैन क्षमापनापत्र, जन्मपत्रियां, भागवत, भगवद्गीता एवं दुर्गामाहात्म्य आदि ग्रन्थ परिगणनीय हैं. एक जैन संघ द्वारा दूसरे संघ को संबोधित क्षमापनापरक विज्ञप्तिपत्र जहां तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं तो षट्चक्रनिरूपण जैसे योगपरक स्क्रोल कुण्डलिनी जागरण के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं. महत्वपूर्ण दुर्लभ ग्रन्थों में कागज पर उपलब्ध वि.स. 1204 का ध्वन्यालोकलोचन, ताड़पत्रीय वि.सं. 1158 की शतकवृत्ति, पृथ्वीराज रासो की धारणोज वाली लघु लेकिन प्रामाणिक प्रति के अलावा स्वर्णस्याही से आलेखित कल्पसूत्र अध्यात्मरामायण, अध्यात्मगीता एवं भगवद्गीतादि कई ग्रन्थ परिगणनीय हैं. सर्वतोभद्र यंत्र, गायत्री कामधेनु यन्त्र, गोपाल पूजन, सूर्यप्रताप यन्त्र, पीरनामा एवं कर्पूरचक्रादि आदि यन्त्र परिगणनीय हैं, जिनके नियमित पूजन एवं सिद्ध होने पर साधक को आयु, विद्या, यश, लक्ष्मी एवं शत्रु से विजय प्राप्त होती है. इन यन्त्रों में जैन, हिन्दू एवं फारसी मन्त्रों का दर्शन सन्निहित है.