Udaipur News: पैराडाइज फ्लाई कैचर के अनोखे व्यवहार का हुआ अध्ययन, कई चौंकाने वाले तथ्य आए सामने
राजस्थान के उदयपुर में पैराडाइज फ्लाई कैचर पक्षी के प्रजाति पर रिसर्च किया गया है. जिसमें पैराडाइज फ्लाई कैचर के एक घोसले में चिक्स की देखभाल दो अलग-अलग नर पक्षी करते हुए देखे जा रहे हैं.
Rajasthan News: उदयपुर में एक पक्षी की प्रजाति पर रिसर्च हुआ जिसमें एक नहीं दो नर पक्षी पिता जैसे बच्चों की देखभाल कर रहे हैं. यह तथ्य पैराडाइज फ्लाई कैचर (Paradise fly Catcher) पक्षी के सामने आए हैं. जहां पर खूबसूरत पक्षी पैराडाइज फ्लाई कैचर के एक घोसले में चिक्स की देखभाल दो अलग-अलग नर पक्षी करते हुए देखे जा रहे हैं. उदयपुर के पक्षीविद देवेंद्र मिस्त्री ने इस पक्षी के अनूठे व्यवहार का यह अध्ययन किया है.
पारिवारिक संबंध और सौहार्द का परिचय
पक्षियों के व्यवहार आदि पर शोध कर रहे विशेषज्ञ देवेंद्र मिस्त्री ने दूधराज, सुल्तान बुलबुल और इंडियन पैराडाइज फ्लाई कैचर नाम से पहचाने जाने वाले इस पक्षी के कई दिलचस्प व्यवहारों का अध्ययन किया है. जिसमें यह व्यवहार काफी प्रेरक और अनूठा लगा. पक्षियों की सहकारिता और आपसी सौहार्द के साथ ही पारिवारिक बंधन मिलकर संघर्ष कर जीवन को बचाने की कला को प्रदर्शित करता है.
देवेंद्र ने दूधराज पक्षी के कई घोसले, बच्चों और इनके प्रजनन स्थल के आसपास अन्य पक्षियों के व्यवहार का कई जिलों में अध्ययन किया. जिसमें यह देखा गया कि घाटी वाले, बरसाती धारा या नालो या नदी किनारे के आसपास घने पेड़ हो. चाहे कम चौड़े पत्ते वाले या कटीले पेड़ों युक्त हो वहां पर यह पक्षी मानसून पूर्व आ जाते हैं और अपने प्रजनन स्थलों पर अधिकार कर घोंसले बनाते हैं. इसके साथ ही कुछ दूरी पर दूसरे दूधराज या अन्य प्रजाति के पक्षी भी घोंसले बनाते हैं.
खूबसूरती और सहकारिता की शानदार मिसाल
पक्षी विशेषज्ञ देवेंद्र मिस्त्री ने बताया कि नर दूधराज काफी सुंदर सिर काला चोटीदार कलंगी चटख और आंखों की आईरिंग नीली सफेद पेट और बाकी शरीर गर्दन के नीचे का सुनहरा तांबई रंग पूछ में दो अत्यधिक लंबे पंख निकले होते हैं. जो लगभग एक फीट होते हैं. लगभग 4 साल के बाद नर चटख दूध की तरह सफेद हो जाता है इसीलिए इसका नाम दूधराज हुआ. मादा दूधराज का रंग यथावत रहता है. दूधराज का वैज्ञानिक नाम टर्फसिफोन पेराडिसी हैं.
यह तथ्य आए सामने
देवेंद्र ने बताया कि यहां उदयपुर के वन हनुमान, पिछोला और बांकी के कटीले वृक्षों के कुंजो में देखा गया कि जब घोसले में बच्चे भूख से चिल्लाने लगते हैं. तो अन्य नर घोंसले के बच्चों को कीट पतंगे खिलाते है, अर्थात एक ही घोंसले के बच्चों को दो अलग-अलग नर पक्षी जिसमें एक सफेद रंग का व एक अन्य तांबाई भूरे रंग का नर भोजन सामग्री चूजे को खिला रहे थे. इसी तरह एक मादा को वह अन्य दो नर भोजन की सामग्री दे रहे थे ताकि घोंसला छोड़ चुके बच्चों को भोजन तुरंत सुरक्षित समय में दे सके. भोजन स्पर्धा में अन्य पक्षी हमला कर भोजन सामग्री छीन लेते हैं और चूजों को या घोंसला छोड़ चुके किशोर दूधराज को भी हमला कर भगा देते हैं जिसमें वे अन्य शिकारी पक्षी और नेस्ट रोवर पक्षियों की नजरों में आ जाते है. अतः दूसरा नर दूधराज पक्षी रक्षा करने के लिए घोंसले के आसपास रहता है. इस तरह का सहयोग और परस्पर मेलजोल से सुरक्षा और चेतावनी के व्यवहार और इस तरह के आवास स्थलों आदि से जीवों का सामूहिक विकास होता है. इससे जैव विविधता व खाद्य श्रृंखला भी बनी रहती है. पक्षी यहां वर्षभर रहते हैं लेकिन मानसून से पूर्व प्रजनन हेतु भारी संख्या में भारत और दक्षिण भारत आदि स्थानों से यहां आते हैं और राजस्थान के अन्य भागों में भी फैल जाते हैं. देवेन्द्र मिस्त्री के अनुसार इन पक्षियों के प्राकृतिक पर्यावास व इस प्रकार देव वन व बांकी जैसे जंगलों का संरक्षण होना चाहिए.