Rajasthan News: चुनाव में किए गए नेताओं के वादे तो अधूरे रहते हीं हैं, लेकिन जब सैकड़ों लोगों के जीवन से जुड़ी बात हो और करोड़ों रुपये डूब रहे हों तो भी नेताओं का आश्वासन मन को झकझोर देता है. किसानों की बात हो तो सभी राजनीतिक दल किसानों पर राजनीति करने के लिए सबसे आगे रहते हैं, लेकिन जब किसानों की समस्या का समाधान करने की बात आए तो पल्ला झाड़कर अपने आश्वासन के बाद इतिश्री कर ली जाती है. हाड़ौती में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. यहां सैकडों किसानों का हजारों मीट्रिक टन लहसुन इस समय खराब होने के कगार पर है, लेकिन नेताओं द्वारा किए गए वादे अभी भी अधूरे ही हैं. सरकारी विभागों में आदेश तक नहीं पहुंचे हैं. 


किसानों को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी और प्रदेश के यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने एक सुर में कहा था कि किसानों के लहसुन की खरीद होगी, किसान इन बयानों और वादों के आधार पर ही इंतजार करते रहे थे और आखिर अब लहसुन खराब होने की कगार पर पहुंच गया है, लेकिन इनका आदेश अभी तक विभागों के पास नहीं पहुंचा. इस लहसुन के चलते हाड़ौती के किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हो गया है.


राजस्थान सरकार ने शुरू नहीं की लहसुन की खरीद
मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के बावजूद राजस्थान सरकार ने लहसुन की खरीद शुरू नहीं की. लहसुन फेंकने की स्थिति में आ गया है, अधिकांश लहसुन खराब हो गया है, किसानों का कहना है कि हमने काफी इंतजार सरकार का कर लिया, हम सोच रहे थे कि खरीद शुरू हो जाए, लेकिन अब कोड़ियों के भाव बेचना मजबूरी हो गया है. लहसुन वजन में भी कम हो गया है, नेता केवल आश्वासन ही देते रहे हैं. अब हम किस के पास जाएं कोई हमारी बात नहीं सुन रहा है. मंडी में पूरे दाम नहीं मिल रहे हैं, हमारी लागत भी नहीं निकल रही है.


विभागों के पास नहीं पहुंचा आदेश
राज्य सरकार ने 46,830 मीट्रिक टन लहसुन की खरीद 2957 रुपए क्विंटल पर की जाएगी इसका भरोसा दिलाया था, जबकि केंद्र सरकार ने 106000 मीट्रिक लहसुन खरीद की स्वीकृति दी थी, इसमें कोटा जिले में 13 हजार 500, कोटा व सांगोद, झालावाड़ में 8830 खानपुर व भवानीमंडी, बारां में 13700 व छीपाबड़ौद, प्रतापगढ़ में 5000 मिट्रिक टन लहसुन खरीद की घोषणा की गई थी, वहीं बूंदी में 4000, केशवरायपाटन और जोधपुर में 1800 मीट्रिक टन खरीद केन्द्र पर करने की घोषणा की गई थी, हालांकि यह आदेश सरकारी खरीद कंपनी की राजफेड के पास नहीं पहुंचा, जिसके चलते उन्होंने खरीद की तैयारियां भी शुरू नहीं की थी.


नेताओं के ऐसे मिले आश्वासन
अप्रैल में जैसे ही नई फसल मंडी में आना शुरू हुई, उसके दाम धीरे धीरे कम हो गए, यहां तक कि 1 से 2 रुपए किलो भी माल बिका है, इसी मांग को लेकर किसानों ने 2 मई को कोटा दौरे पर आए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से मुलाकात की थी, उन्होंने मार्केट इंटरवेंशन स्कीम पर लहसुन खरीद शुरू करवाने का आश्वासन दिया था, उन्होंने 3 मई को इस संबंध में कृषि मंत्री लालचंद कटारिया से बातचीत की और लहसुन खरीद का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने के लिए कहा, जिसे 7 दिन में केंद्र सरकार से स्वीकृत करवा देने का दावा भी किया.


राज्य सरकार ने यह प्रस्ताव नहीं भेजे, ऐसे में  दोबारा बातचीत की, जिसके बाद मई महीने में ही केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेज दिए गए. 30 मई को कोटा दौरे पर आए केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा राज्य सरकार की तरफ से प्रस्ताव मिला है, लेकिन वह आधा-अधूरा होने पर राजस्थान सरकार को वापस लौटाने की जगह उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों से ही दुरुस्त करवाया. राजस्थान समेत सभी राज्यों को निर्देश जारी हुए, इसके बाद 15 जून को प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भाग लेने के लिए कोटा आए कैलाश चौधरी ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि प्रस्ताव आने के 1 हफ्ते के अंदर ही हमने राज्य सरकार को लहसुन खरीद के निर्देश दे दिए थे, लेकिन राजफेड के जरिए राज्य सरकार ने खरीद शुरू नहीं की. 


दावे बहुत लेकिन सब खोखले
वहीं राजस्थान जनसंपर्क विभाग ने यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल का बयान जारी किया, जिसमें राजस्थान में लहसुन खरीद की घोषणा की गई थी. इसमें बताया था कि मंत्री धारीवाल ने किसानों की समस्या व उत्पादित लहसुन के बरसात के दौरान खराब होने की संभावना को देखते हुए मुख्यमंत्री के समक्ष किसानों की बात रखी थी, जिसके तहत 46830 मीट्रिक टन लहसुन की खरीद प्रदेश में होने का दावा किया था लेकिन वह भी खोखला निकला, अब किसान मायूस, मजबूर और आर्थिक तंगी से गुजर रहा है.


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