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Beawar News: ब्यावर में सत्ता की इस कुर्सी का अनोखा है इतिहास, आज तक कोई सभापति पूरा नहीं कर सका पांच साल का कार्यकाल

Beawar Municipal Council: राजस्थान की पहली नगर परिषद ब्यावर में आज तक कोई सभापति पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. बीजेपी, कांग्रेस या किसी भी पार्टी का सभापति नहीं टिक पाया.

Rajasthan News: राजस्थान में ब्यावर नगर परिषद को प्रदेश की पहली नगर परिषद होने का गौरव प्राप्त है. वर्ष 1842 में स्थापित हुई इस नगर परिषद का इतिहास अनूठा रहा है. यहां आज तक कोई भी सभापति पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. बीजेपी या कांग्रेस किसी भी पार्टी का बोर्ड बना हो, सभापति पद पर बैठे नेता को या तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाया गया या वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया.

बीजेपी की एक महिला सभापति को पार्टी ने ही अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटाया तो एक महिला सभापति रिश्वत लेते पकड़ी गई. परिषद के इतिहास में पहली बार 2009 में सभापति का सीधा चुनाव जनता ने किया. तब कांग्रेस के डॉ. मुकेश मौर्य सभापति बने लेकिन भ्रष्टाचार में फंसने के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा और बीजेपी सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया. 

वर्तमान बीजेपी बोर्ड के सभापति के साथ भी ऐसा ही हुआ. ढाई साल पहले सभापति बने नरेश कनौजिया को राज्य सरकार ने पट्टे जारी करने में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप में शुक्रवार को सभापति पद से निलंबित कर दिया. गौरतलब है कि ब्यावर नगर परिषद की स्थापना से 28 नवंबर 1994 तक यहां प्रशासक नियुक्त रहे. इसके बाद बने सभी सभापतियों का कार्यकाल अधूरा रहा.

पहले सभापति ऐसे हटे

1994-1999: 29 नवंबर 1994 को पहली बार बीजेपी के डूंगरसिंह सांखला सभापति चुने गए. उनका कार्यकाल 9 मार्च 1999 तक रहा. वह इस्तीफा देकर हट गए. इसके बाद बीजेपी के कजोड़मल खंडेलवाल 10 मार्च से 29 अप्रैल 1999 तक कार्यवाहक सभापति रहे. 30 अप्रेल 1999 से 27 नवंबर 1999 तक कांग्रेस के मुकेश सोलंकी ने सभापति पद संभाला. 

1999-2004: 28 नवंबर 1999 को कांग्रेस के प्रमोद सांखला सभापति बने. 22 जुलाई 2004 तक वह पद पर रहे. उनका सरकार ने निलंबन कर दिया. 23 जुलाई 2004 से 27 नवंबर 2004 तक कांग्रेस की तारा झंवर सभापति रहीं.

5 साल में 4 महिला सभापति

ब्यावर नगर परिषद के इतिहास में वर्ष 2004 से 2009 के बीच अजीब हालात बने. तब सभापति की सीट दलित महिला के लिए आरक्षित थी. उस वक्त 5 साल के कार्यकाल में यहां 4 महिला सभापति बनीं. उस वक्त 28 नवंबर 2004 को बीजेपी की जयश्री जयपाल सभापति बनीं जो 30 मई 2007 तक सभापति रहीं. इसके बाद उन्हीं की पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटा दिया और रेखा जटिया को सभापति बनाया. 8 जून 2007 से 3 जुलाई 2007 तक बीजेपी की रेखा जटिया, 4 जुलाई 2007 से कांग्रेस की पार्वती जाग्रत और 20 मई 2009 से 25 नवंबर 2009 तक कांग्रेस की शांति डाबला सभापति रहीं.

निर्वाचन से चुने गए ये सभापति गए जेल

वर्ष 2009 में हुए राजस्थान निकाय चुनाव में पहली बार सभापति का सीधा निर्वाचन जनता ने किया. तब कांग्रेस के डॉ. मुकेश मौर्य सभापति चुने गए. वह 26 नवंबर 2009 से 20 मई 2014 तक इस पद पर रहे. भ्रष्टाचार के आरोप में सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया. वह जेल भी गए. उनके बाद 22 मई 2014 से 17 नवंबर 2014 तक बीजेपी के लेखराज कंवरिया सभापति रहे.

इन महिला सभापति को भी हुई जेल

26 नवंबर 2014 को बीजेपी की सभापति बबीता चौहान ने परिषद की सत्ता संभाली. वह 8 अगस्त 2018 को रिश्वत लेती पकड़ी गईं. एसीबी टीम ने उनके पति बीजेपी नेता नरेंद्र चौहान और बिचौलिए शिवप्रसाद को भी गिरफ्तार किया. इसके बाद 30 अगस्त 2018 से 25 दिसंबर 2018 तक बीजेपी की शशि सोलंकी कार्यवाहक सभापति रहीं. इनकी समयावधि पूरी होने पर कांग्रेस सूबे की सत्ता में आई.

सरकार ने सभापति पद पर 60 दिन के लिए कांग्रेस की कमला दगदी का मनोनयन किया. वह 3 जनवरी 2019 से 5 मार्च 2019 तक सभापति रहीं. इनके दिन पूरे होने पर कांग्रेस की मेमूना बानो का मनोनयन किया. वह एक दिन ही सभापति रहीं. कोर्ट से स्टे के आधार पर सभापति बबीता चौहान ने फिर से पदभार संभाल लिया. 8 मार्च 2019 से 27 अगस्त 2019 तक सभापति रहने के बाद सरकार ने उनका निलंबन कर कमला दगदी का मनोनयन किया.

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अब इन्हें हटाया गया

वर्ष 2019 नवंबर में चुनाव के बाद परिषद में बीजेपी का बोर्ड बना. सभापति पद पर नरेश कनौजिया की ताजपोशी हुई. 26 नवंबर 2019 को उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया था और 17 जून 2022 को सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया. वह करीब ढाई साल ही सभापति रहे.

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