Udaipur News: आपने ये कहावत जरूर सुनी होगी कि असली भारत गांवों में बसता है लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव ले चलेंगे जिसमें पूरा का पूरा भारत बसता है, यानी पूरे भारत की सभ्यता और संस्कृति यहीं मिल जाए. जी हां, ऐसा एक गांव झीलों की नगरी उदयपुर में है.  इस गांव में आपको लगभग पूरे भारत की सभ्यता और संस्कृति देखने को मिल जाएगी. खास बात यह है कि 21 दिसम्बर से हर साल की तरह यहां 10 दिन के मेले की शुरुआत भी होने वाली है. हर दिन यहां हजारों की संख्या में स्थानीय और पर्यटक आते हैं और इस संस्कृति और सभ्यता को निहारते हैं. 


महज 33 साल पुराना है ये गांव
शिल्पग्राम नामक इस गांव की स्थापना 1989 में यानी 33 साल पहले हुई थी.  यहां देश के प्रमुख राज्यों की संस्कृति दिखाई गई है साथ ही यहां उनकी सभ्यता की झलक के रूप में झोपड़ियां भी बनाई हुई हैं. यही नहीं यहां उन्हीं राज्यों के कलाकार भी रहते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा वेतन भी दिया जाता है क्योंकि ये कलाकार यहां अपनी कला की प्रस्तुतियां देते हैं. यहां गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, नागालैंड, राजस्थान की झोपड़ियां बनी हुई हैं. इन राज्यों सहित झारखंड, असम, कश्मीर तक के कलाकार यहां आए हैं जो कल से अपनी प्रस्तुति देंगे.


गुजरात की रेबारी बंबी झोपड़ी


गुजरात के कच्छ जिले के वांड गांव में रेबारी जाति के लोग रहते हैं. विस्तृत चारागाह भूमि वाले क्षेत्र के यह रेबारी पशुपालक हैं जो वर्षा ऋतु के अलावा खानाबदोश जीवन जीते हैं. खानाबदोश जीवन जीने वाले यह रेबारी सरल सामान्य लेकिन सुंदर झोपड़ी बनाते हैं. आकार में गोल झोपड़ी में शंकु आकार के छप्पर को आधार देने के लिए एक लकड़ी लगाते हैं. गोलाकार तंबू जैसी लगने वाली यह झोपड़ी चिकनी मिट्टी, ईट और घास द्वारा बनती है.


गोवा की कुम्हार झोपड़ी
बिचोलिम गोवा की मृण कला का प्रसिद्ध केंद्र है. यहां विशेष रूप से जानवरों की आकृतियां, घरेलू उपयोग के बर्तन और बोलती प्रतिमाएं झोपड़ी पर बनाई जाती हैं. खुला बरामदा सामान रखने और काम करने के लिए काम में आता है. घर के पीछे बर्तनों को पकाने के लिए भट्टी बनाई जाती हैं.


 गुजरात की पेठापुर हवेली




पेठापुर गुजरात की राजधानी गांधीनगर के पास है. यह छोटा कस्बा है जो छपाई के ब्लॉक बनाने के लिए प्रसिद्ध है. 100 साल पुराना दो मंजिला आवाज पेठापुर से लाया गया है. यह हवेली क्षेत्र के काष्ठ शिल्प का अनुपम उदाहरण है. जो ठोस लकड़ी के 407 दरवाजों में देखने को मिलता है. 


कोल्हापुर महाराष्ट्र 




दक्षिणी महाराष्ट्र में स्थित कोल्हापुर अपने चर्म उद्योग के लिए विख्यात है. यह झोपड़ी कोल्हापुर के चर्म कलाकारों की है. मिट्टी और पत्थर के छोटे टुकड़े की कुटाई कर दीवार बनाई जाती है. इस वर्गाकार झोपड़ी में पहला कमरा चप्पल बनाने और उससे संबंधित सामान रखने में के काम में आता है. शेष दो कमरे घरेलू उपयोग में काम आते हैं.


 गोवा की ईसाई झोपड़ी




 यह ईसाई झोपड़ी है जो इसके सामने लगे क्रॉस से पहचानी जाती है. ग्रामीण ईसाई व हिंदुओं के रहन-सहन व दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं में समानता पाई जाती है क्योंकि इनकी उत्पत्ति का स्त्रोत एक ही है. यह कमरा 5 भागों में विभाजित है इसमें रसोई बैठक कक्ष, दो शयन कक्ष और बाहरी रसोई. उसकी दीवारों पर नारियल के पत्ते बड़ी सफाई से बांधे जाते हैं जो इन्हें बारिश से सुरक्षित रखते हैं.


राजस्थान के रामा की झोपड़ी




पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले के थार रेगिस्तान के बीच रामा गांव बसा हुआ है. यह झोपड़ी रामा गांव के भील परिवार के आवास के प्रतिरूप में दर्शाई गई है. चार दीवारों के बीच में बसे इस घर में एक मुख्य द्वार हैं, तीन तरफ सर्दी-गर्मी में उपयोग आने वाले कमरे-रसोई है. दीवारें पत्थर पर मिट्टी की लिपाई करके बनाई जाती है. छत केर की लकड़ी से बनाई जाती है. संयुक्त परिवार होने के कारण घर बड़े आकार की होती है.


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