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No Newspaper Day: आखिर क्यों अधूरी है आज की सुबह? जानिए- न्यूज पेपर पढ़ने वाले शौकीनों से

कल गणतंत्र दिवस पर न्यूज पेपर नहीं छपने से लोगों के घरों में सुबह न्यूज पेपर नहीं पहुंच सका. ऐसे में सालों से न्यूज पेपर पढ़ने वालों का कहना है कि अखबार तो हर दिन छपना ही चाहिए.

Rajasthan News: राजस्थान में अखबार पढ़ने वालों की संख्या बेहद अधिक है. बढ़ती उम्र के साथ लोगों का समय अखबार के लिए भी बढ़ता चला जाता है. एक बड़ा वर्ग अखबार से ही सुबह की शुरूआत करता है और जब तक न्यूज पेपर वाला नहीं आ जाता तब तक वह बाहर ही टहलते रहते हैं. कुछ लोग चाय व पान की दुकन पर न्यूज पेपर को तलाश करते हैं. जिस दिन न्यूज पेपर नहीं आता उस दिन सुबह का समय बेचेनी भरा रहता है. लगता है कुछ अधुरा है. किसी भी चीज को लंबे समय तक करने से उसकी लत लग जाती है, चाय हो हो या न्यूज पेपर सुबह तो चाहिए ही. कल गणतंत्र दिवस पर न्यूज पेपर नहीं छपने से लोगों के घरों में सुबह न्यूज पेपर नहीं पहुंच सका. ऐसे में जब सुबह एबीपी न्यूज ने कुछ सालों से न्यूज पेपर पढ़ने वालों से बात की तो उनका कहना है कि अखबार तो छापना ही चाहिए. छोटा छापे या बड़ा, लेकिन न्यूज पेपर के बिना देश दुनिया की सटीक जानकारी नहीं मिलती.

खासियस बार-बार पढ़ सकते हैं
 40 साल के हरिमोहन का कहना है कि मुझे अखबार पढ़ते करीब 50 साल से अधिक हो गए. जिस दिन अखबार नहीं आता पेट दर्द होता है. मन विचलित रहता है, इधर से उधर भटकता रहता हूं. एक बार सरसरी नजर से पढ़ता हूं और उसके बाद दिन में फ्री होकर तसल्ली से न्यूज पेपर की हर खबर, लेख, व देश की हस्तियों की बातों को गौर से पढ़ता हूं. सोशल मीडिया पर वो भाव नहीं आते जो न्यूज पेपर में आते हैं. हम न्यूज पेपर को कहीं भी ले जाकर कभी भी पढ़ सकते हैं. अखबार की जानकारियां ही हमें अपडेट रखने के साथ नई जानकारियां देती है.

आंदोलन की शुरूआत करता है न्यूज पेपर
हमने देखा है आजादी के पहले से न्यूज पेपर की भूमिका आंदोलन में सबसे अधिक रही है. कोई भी घोटाला उजागर करना हो या सरकार की गलत नीतियां हो या योजनाएं जब न्यूज पेपर में आती है तो कई संगठन विरोध में खड़े हो जाते हैं. जिस कारण सरकार को भी पीछे हटना पड़ता है. कुछ समस्याओं को लेकर जब खबर प्रकाशित होती है तो वह आंदोलन भी खड़े कर देती है. वहीं जब शहर, गांव कस्बे की समस्या पेपर में आती है तो उसका भी समाधान हो जाता है. यही खासियत है कि हमें सुबह तो न्यूज पेपर चाहिए ही.

फिल्मों का शौक और शोक संदेश
केवल न्यूज पेपर ही है जिसमें शोक संदेश आते हैं. कई लोगों की शुरूआत ही शोक संदेश से होती है. इसमें कोटा की शाइन इंडिया फाउंडेशन सुबह 6 बजे न्यूज पेपर में ये देखते हैं कि आज कितने लोगों की अंतिम यात्रा निकलने वाली है. साथ ही वह नेत्रदान के लिए प्रेरित करने उनके घर पहुंचते हैं, रिश्तेदारों से सम्पर्क कर नेत्रदान के लिए प्रेरित करते हैं. वहीं कई लोगों को फिल्मों का शौक रहता है तो वह नए कलाकारों की नई स्टाइल, पहनावा, लुक और आने वाली फिल्मों की जानकारी रखना चाहते हैं.

एक लाइन की भी खबर होती है
अखबार की एक और खासियत यह भी होती है कि वो लोगों को पढ़ने पर मजबूर करती है. शहर में हजारों की संख्या में अलग-अलग संगठन कुछ ना कुछ गतिविधियां करते हैं, चाहे पौधोरोपण हो या ज्ञापन देना या अपनी मिटिंग, खेल, उत्सव या घटनाक्रम, एक लाइन भी यदि न्यूज पेपर में आती है तो उसे बार-बार देखते हैं. सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. न्यूज पेपर ही है जिसमें एक लाइन भी छप जाती है तो उर्जा का संचार हो जाता है.

साल में 6 दिन नहीं आता न्यूज पेपर
आपकों ये खबर इसलिए बताई जा रही है ताकी न्यूज पेपर और खबरों का महत्व पता चल सके. हालांकि सभी जानते है कि हमारे जीवन में खबरों का कितना महत्व होता है. न्यूज पेपर में आने वाली न्यूज का महत्व और अधिक बढ़ जाता है जब उसमें हमारी खबर आती है. टीवी पर हर व्यक्ति की खबर नहीं आ सकती. हर व्यक्ति की पहुंच सोशल मीडिया तक नहीं होती. कई लोगों को लिखना नहीं आता तो किसी को मोबाइल चलाना नहीं आता, लेकिन प्रिंट मीडिया की पहुंच आसान है. साल में न्यूज पेपर आज ही की तरह 6 दिन नहीं आता जिसमें साल की शुरूआत में गणतंत्र दिवस, दो दिन होली, एक दिन स्वतंत्रता दिवस और दो दिन दिवाली के बाद न्यूज पेपर नहीं आता है. बाकी न्यूज पेपर साल के 359 दिन आता है. कोई भी मौसम हो कैसा भी समय हो कोविड हो, भूकंप हो या कैसी ही आपदा हो न्यूज पेपर रुकने वाला नहीं है.

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