Rajasthan News: भारतीय किसान संघ (Bharatiya Kisan Sangh) के अखिल भारतीय जैविक प्रमुख और 2019 में जैविक कृषि में भारत सरकार के पद्मश्री (Padma Shri) पुरस्कार से सम्मानित हुकुमचंद पाटीदार (Hukumchand Patidar) पश्चिमी राजस्थान (West Rajasthan) के दौरे पर हैं. इस दौरान उन्होंने किसानों के लिए जैविक कृषि की आवश्यकता और देश में जैविक कृषि की स्थिति के साथ-साथ भविष्य पर चर्चा की. पद्मश्री हुकुमचंद पाटीदार ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत करते हुए कहा कि देश में रासायनिक खेती से कृषि भूमि बंजर हो जाएगी, जिससे देश मे भयावह हालात बनने की संभवनाएं बन चुकी हैं. खाने-पीने की कमी हो जाएगी.

 

उन्होंने कहा कि देश में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोगों और कीट नियंत्रकों के अत्यधिक उपयोग से जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा लागातार घट रही है. जहरीले रसायनों के प्रयोग से कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियां बढ़ गई हैं. लगातार रसायन पद्धति अपनाने से मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा घटती जा रही है, जो मृदा में आवश्यक न्यूनतम मानक से 18 गुणा तक कम हो गई है. उपजाऊ मिट्टी में जैविक कार्बन की न्यूनतम मात्रा कम से कम 0.90 प्रतिशत आवश्यक है. देश में  2016 में चले सॉयल हेल्थ कार्ड अभियान के तहत 6 करोड़ के लगभग हुए मिट्टी जांच परीक्षणों की रिपोर्ट में उपलब्ध जैविक कार्बन की मात्रा केवल 0.05 प्रतिशत पाई गई है.

 

'बड़े खाद्यान्न संकट में आ सकता है देश'

 

हुकुमचंद पाटीदार ने कहा कि साल 2016 के बाद भी मृदा में जैविक कार्बन बढ़ाने को लेकर कोई व्यापक प्रयास नहीं हुए हैं. ऐसे में ये स्तर गिरता जा रहा है. अब इसमें 0.01- 0.02 प्रतिशत की कमी धरती को पूरी तरह बंजर कर सकती है, जिससे जमीन में बीजों का अंकुरण बंद हो सकता है और देश बड़े खाद्यान्न संकट में आ सकता है. अमेरिका की एक संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट ने भी अपनी रिपोर्ट में भारत में वर्तमान कृषि पद्धति को नहीं सुधारा गया तो 2030 तक मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा खतरनाक स्तर तक गिर करके 0.025 प्रतिशत के स्तर तक आ सकती है, जो बीजों के अंकुरण में अक्षम होगी.

 

इस वजह से घाटे का कारण बन रही है खेती 

 

उन्होंने कहा कि जैविक कार्बन की मात्रा घटने से जमीन को बंजर होने से बचाने का एक मात्र उपाय गौ आधारित जैविक कृषि पद्धति है. इसके अतिरिक्त मृदा को सुधारने का कोई रास्ता कृषि वैज्ञानिकों के पास भी उपलब्ध नहीं है. गौ आधारित जैविक कृषि में गौवंश के पंचगव्य, गौ मूत्र, गोबर और जमीन पर उपलब्ध फसल अवशेष से उपलब्ध जीवाश्म से जैविक कार्बन को बढ़ाने में मदद मिल सकती है. रसायन के कारण खेती बाजार आधारित हो गई, जिससे फसल उत्पादन लागत बढ़ने से खेती घाटे का कारण बन रही है. रासायनिक पद्धति से गेहूं उत्पादन करने पर उसकी प्रति किलो लागत 30 रुपये आती है.

 


 

'5 से 6 प्रतिशत हिस्से में ही होती है जैविक कृषि'

 

पद्मश्री पाटीदार ने कहा कि अगर इसे जैविक कृषि पद्धति से उत्पादित किया जाए, तो इसकी लागत 11 रुपये किलो तक घटाई जा सकती है. इससे फसल उत्पादन लागत घटने और जैविक पद्धति से उत्पादित फसल की गुणवत्ता अच्छी होने से उसका बेहतर मूल्य मिलने से किसानों आय में वृद्धि हो सकती है. इससे खेती की और किसानों के घटने रुझान की समस्या का समाधान हो सकता है. देश में अभी तक प्रमाणिक रूप से केवल 5 से 6 प्रतिशत हिस्से में ही जैविक कृषि होती है. भारतीय किसान संघ गौ आधारित जैविक कृषि के प्रोत्साहन के लिए जागरूकता अभियान चला कर रसायन के दुष्प्रभाव और जैविक कृषि के प्रति फैले भ्रम को दूर करने के प्रयास कर रहा है.

 

1500 से ज्यादा किसानों को दिया गया जैविक कृषि का प्रशिक्षण

 

उन्होंने आगे कहा कि इसके लिए तहसील से लेकर जिलों स्तर पर किसानों को जैविक खेती में प्रशिक्षित करने का कार्य कर रहा है. अभी पश्चिमी राजस्थान के सभी जिलों में जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुए हैं, जिसमें 1500 से ज्यादा किसानों को जैविक कृषि का प्रशिक्षण प्रदान किया है. कृषक उत्पादन संगठनों के माध्यम से फसलों के विपणन के लिए भी प्रयास किए जाएंगे. सरकार की ओर से जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने को लेकर कार्यक्रम बन रहे हैं, लेकिन अभी सरकारें दिशा निर्धारित नहीं कर पा रही हैं. एक ओर सरकार को वर्तमान रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर कृषि प्रणाली से मिट्टी में घटते जैविक कार्बन के कारण धरती के बंजर होने से गंभीर खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने की आशंका है.

 

झालावाड़ के रहने हैं हुकुमचंद पाटीदार 

 

हुकुमचंद पाटीदार ने कहा कि दूसरी ओर सरकार के समक्ष एकदम से रसायन का उपयोग बंद करने से मिट्टी में कार्बन मात्रा का आदर्श स्तर बनने तक एक बारगी घटने वाले फसल उत्पादन से देश के समक्ष तात्कालिक रूप से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्न संकट की भी चुनौती है. ऐसे में सरकार को मध्यवर्ती रास्ता अपनाते हुए रसायन के प्रयोग को कम करते हुए, कम रसायन के उपयोग वाले क्षेत्रों में जैविक कृषि शुरू करके अलग-अलग चरणों में जैविक कृषि की ओर बढ़ने की आवश्यकता है. आपको बता दें कि हुकुमचंद पाटीदार झालावाड़ जिले के रहने वाले हैं.

 

जैविक कृषि से संबंधित कई किए हैं कई अनुसंधान

 

इन्होंने जिले में मानासर गांव स्थित वहां श्री विवेकानंद जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र पूर्ण जैविक पद्धति से फसल उत्पादन लेने और जैविक कृषि से संबंधित कई अनुसंधान किए. इससे इन्होंने फसल की उत्पादन लागत घटाने, जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाने सहित कृषि से आमदनी बढ़ाने में सफलता प्राप्त की है. इनके प्रयासों से जिले के मानासर गांव में किसानों को जैविक खेती अपनाने में प्रशिक्षित करने और क्षेत्र में दर्जनों गांवों को जैविक कृषि की ओर प्रोत्साहित करने का कार्य किया.