Rajasthan News: 109 साल पहले हुए मानगढ़ हत्याकांड की चित्रकार ने कराई याद ताजा, जलियांवाला बाग से भी थी बड़ी घटना
एक कलाकार ने चित्र पर 109 साल पहले हुए वीभत्स हत्याकांड को उकेरा है. निर्मल यादव ने बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ हत्याकांड और वशिष्ठ ने सत्य अर्थ प्रकाश शीर्षक पर पेंटिंग बनाई.
Rajasthan News: एक कलाकार ने चित्र के जरिये 109 साल पहले हुए वीभत्स हत्याकांड की याद ताजा करा दी है. दिल्ली के राष्ट्रीय ललित कला अकादमी में 19 से 24 अप्रैल तक ऑनलाइन चित्रकला शिविर का आयोजन किया गया. शिविर का विषय आजादी के अमृत महोत्सव में स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर था. विषय के तहत चित्रकारों को चित्रकारी के माध्यम से स्थानीय गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों या घटनाओं को प्रदर्शित करना था. जिसकी इतिहास में नहीं के बराबर जानकारी मिलती है.
चित्रकार ने 109 साल पहले की घटना को उकेरा
शिविर में देशभर के 100 प्रख्यात चित्रकारों को चयनित किया गया. उदयपुर से चित्रकार डॉ निर्मल यादव और डॉ धर्मवीर वशिष्ठ का भी चयन हुआ. निर्मल यादव ने बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ हत्याकांड और वशिष्ठ ने सत्य अर्थ प्रकाश शीर्षक पर पेंटिंग बनाई. कलाकारों के चित्रों को ललित कला अकादमी की ओर से प्रदर्शित किया जाएगा. चित्रकार ने 1913 में बांसवाड़ा के मानगढ़ में हुए नृशंस हत्याकांड को दर्शाया है. हत्याकांड को राजस्थान का ‘जलियांवाला बाग’ भी कहा जाता है. राजस्थान के जलियांवाला बाग हत्याकांड में 1500 बेकसूर गुरुभक्त मारे गए.
दक्षिणी राजस्थान में हुआ था दर्दनाक हत्याकांड
13 अप्रैल, 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड को शायद ही कोई भारतीय नहीं जानता होगा. घटना भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की किताब का बहुत बड़ा अध्याय रही है. आम लोग घटना से प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में उतरने का फैसला किया. ब्रिटिश सरकार की माने तो हत्याकांड में 379 लोग मारे गए और 1200 से अधिक घायल हुए. लेकिन मृत्यु का आंकड़ा 1500 के आसपास तक था. ऐसा ही कुछ दर्दनाक और वीभत्स हत्याकांड दक्षिणी राजस्थान में भी हुआ था. लेकिन इतिहास के पन्नों में दूसरी घटनाओं की तरह जगह नहीं मिला. हत्याकांड जलियांवाला बाग में हुए हादसे से भी बड़ा था.
गोविन्द गुरु, एक सामाजिक कार्यकर्त्ता थे और आदिवासियों में अलख जगाने का काम करते थे. उन्होंने 1890 में एक आन्दोलन शुरू किया. उसका उद्देश्य था आदिवासी-भील कम्युनिटी को शाकाहार के प्रति जागरुक करना और आदिवासियों में फैले नशे की लत को दूर करना. आन्दोलन को भगत आंदोलन का नाम दिया गया. 17 नवम्बर, 1913 को मेजर हैमिलटन ने तीन अधिकारी और रजवाड़ों, सेनाओं के साथ मिलकर मानगढ़ पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया. उसके बाद दिखाता है कि शक्ति का होना कितना हानिकारक है. खच्चरों के ऊपर बंदूक लगा उन्हें पहाड़ी का चक्कर लगवाए गए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरे.
इस घटना में 1500 से भी ज्यादा लोगों की जान गई और न जाने कितने ही घायल हुए. गोविन्द गुरु को फिर से जेल में डाल दिया गया. चित्रकार ने बताया, "कृति में उस भीषण नरसंहार को दर्शाया है कि किस प्रकार ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके गोलियों की बौछारें की और उन बेकसूर आदिवासियों की लाशों के ढेर लगे. इस कृति के जरिए मैं दर्शक को उस समय के भयावह स्थिति का अहसास करा रहा हूँ कि किस बेरहमी से अंग्रेजी सत्ता इंसानियत पर हावी हुई."